समस्याएं छोटी हों या बड़ी उनसे परेशानियाँ तो बढती ही हैं।
लेकिन समस्याएँ जैसी भी हों संवाद नहीं बंद होने चाहिए। एक विचारक ने कहा है कि हमारे जीवन की 90 प्रतिशत समस्याएं समाप्त हो जाएँ यदि लोग एक दुसरे के बारे में बोलने कि बजाय एक दुसरे से बोलना शुरू कर दें, यदि केवल इस छोटी बात को हम समझ पाए तो न केवल हमारा जीवन समस्या मुक्त होगा बल्कि हमारी छवि भी एक विनम्र इन्सान की बनेगी।
समस्याओं के बारे में मान्यता है कि करीब 50 फीसदी समस्याएँ हमारी स्वयं कि बनाई होती हैं अतः उनके बारे में हमें पता भी होता है और समस्याओं के इर्द गिर्द ही उसका समाधान होता है। आवश्यकता होती है शांत चित्त से विचार करने की, उनके बारे में सोचने की। लेकिन इसके अलावे 50 फीसदी वो समस्याएँ भी होती है जो स्वयं की नहीं बनाई होती हैं फिर भी उनके बारे में हमें पूर्वानुमान हो जाता है, छोटे छोटे संकेत बड़ी परेशानियों कि तरफ इशारा करते हैं, इस पर गोस्वामी तुलसी दास जी कि एक कथा इस प्रकार है :
श्री रामचरितमानस लिखने के दौरान तुलसीदास जी ने लिखा –
“सिया राम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी”
अर्थात “सब में राम हैं और हमें उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम करना चाहिये”, यह लिखने के उपरांत तुलसीदास जी जब अपने गाँव की तरफ जा रहे थे तो किसी बच्चे ने आवाज़ दी – महात्मा जी कृपया उधर से मत जाओ बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र भी पहन रखें है! तुलसीदास जी ने कहा- हूँ, कल का बच्चा हमें उपदेश दे रहा है? अभी तो लिखा था कि सबमें श्री राम हैं, उस बैल को प्रणाम करूँगा और चला जाऊंगा। लेकिन जैसे ही वे आगे बढे बैल ने उन्हें मारा और वे गिर पड़े, किसी तरह से वे वापस वहाँ जा पहुचे जहाँ श्री रामचरितमानस लिख रहे थे सीधा चौपाई पकड़ी और जैसे ही उसे फाड़ने जा रहे थे तभी नारद जी ने प्रगट हो कर कहा – तुलसीदास जी ये क्या कर रहे हैं? तुलसीदास जी ने क्रोधपूर्वक कहा – यह चौपाई गलत है, और उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया। नारद जी ने मुस्कुरा कर कहा – चौपाई तो एकदम सही है आपने बैल में तो भगवान को देखा पर बच्चे में क्यों नहीं देखा? आखिर उसमे भी तो भगवान थे, वे तो आपको रोक रहे थे पर आप ही नहीं माने।
कभी – कभी छोटी – छोटी घटनायें हमें बड़ी घटनाओं की ओर संकेत देती हैं अगर हम उन पर विचार कर आगे बढ़ें तो हम बड़ी दुर्घटनाओं का शिकार होने से बच सकतें हैं।