भारत न रुका है न थका है किन्तु उसका मन थका है, थकना मतलब ठहराव। देखा जा सकता है वो पिपासा वो अभिलाषा ज्ञान विज्ञान को लेकर नहीं है जो होनी चाहिए हम विचारों के आयातक पिछले कई सदियों से बने हुये है।
नूतन प्रयोग करने से कतराते है, नकल की आस भरे जीवन की गुलाटी लगाने की हिमाकत करने में हमें गुरेज नहीं है, हठधार्मिता तो आवरण ही बन गई। लोग कह रहे है कि “तुमसे नहीं होगा बेटा” हमें भी लगता है कि हमसे नहीं होगा। सकारात्मक संभावना विज्ञान की ओर ले जाती है, नकारात्मक संभावना कुछ नया करने से पहले ही उठे हुए प्रश्न का गला घोंट देती है।
भारत अपने मन के इलाज के लिये पूछ रहा था, मेरी समझ में नहीं आया कौन सा भेषज बताऊ? मैने कहा निराश मत हो सब के ठीक होने का समय आता है, आप का भी नये दशक के अंत तक कुछ न कुछ जरूर होगा। सही महा दशा आने वाली है।
मैं कहा कि एक इलाज और है तुम कृष्ण से क्यों नहीं पूछते हो जब कुरुक्षेत्र में अर्जुन के हाथ से गांडीव गिर गया था अर्जुन का मन अपनों के लिये व्याकुल हो उठा था, वह अपने वंश की लाशों पर हस्तिनापुर का सिंहासन नहीं पाना चाहता था। तब कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि धनंजय ये समस्या परिवार की नहीं रही है। अब तो वो सभी मन कुरुक्षेत्र में आ खड़े है।
आशा भी लगाये हैं कि न्याय मिलेगा उन नारियों को जिनके आत्मसम्मान को रोज रौंदा जा रहा है। राजा कह रहा है कि मेरी तो आंखे नहीं है। ऐसा राज जो नीति विहीन है तो राजनीति कैसे करेगा? तुम वो करो जो करने आये हो, लोग तो कुछ न कुछ कहेंगे ही। उनकी कुछ समस्या भी रहेगी।कृष्ण ने अर्जुन के मन को खड़ा किया। यह भी कहा तू युद्ध में मन लगा परिणाम में नहीं।
ये मन की चंचलता मन को स्थिर नहीं रहने देती है। मन ही बंधन का कारण है। मन की गति सूरज, चंद्रमा से तेज है। खाली मन अस्थिर-चित्त व्यक्ति नियंत्रण खो देता है वह आकांक्षाओं को पूरा करने में जब नाकाम हो जाता है तो अपने से हार जाता है।
हम चाहे तो वो सब कर सकते है जो करना चाहते है। भारत ने कहा इलाज सही है मैं अपने घर वालों से राय – मशविरा कर लूं तब देखता हूँ कि क्या हो सकता है?
Bhut badiya nav barat auor shashat barat ka nirman satyata par aadharit hona chahiye.
आशी❗प्रियं ब्रूयात