एक ओर मैं ध्यान दिलाना चाहूंगा कि मनुस्मृति की आलोचना जब तब कुछ जो अपने को विचारक समझते हैं करते रहे हैं। यह उनकी नासमझी है लोकतंत्र और आधुनिकता के नाम पर विश्व मे जो व्यवस्था रोपी गई क्या वह लोगों की समस्या सुलझाने में सफल हुई? विश्व को या अंग्रेजों को समस्या मनुवाद से है क्योंकि यह एक वैज्ञानिक व्यवस्था है जो सब को चुनौती देता है इसमें मनुर बनाया जाता है।
जिसने संविधान का ड्राफ्ट बनाया, 200 अंग्रेजी के मिस्टेक किये उसे संविधान निर्माता कहा गया, इसे चुनाव और वोट की मजबूरी के रूप में खोजी पत्रकारिता ने क्यों नहीं रखा?
68 साल का संविधान 132 संशोधन यहाँ तक प्रस्तावना का मूल स्वभाव बदल दिया गया। यदि मनुस्मृति की एक दो श्लोक में समस्या थी या वो समझ से परे थी तो उसे बदल भी सकते थे।
रोहित बेमुला आत्महत्या की सेकुलर मीडिया विधवा हो गया था। वही मोमता बनर्जी पर आरोप लगा कर आत्महत्या करने वाले आईपीएस पर हंगामा क्यों नहीं बरपा? कोई कह रहा था वो उच्च वर्ग से आते थे। अखलाक के मामले को देश ने देखा गाय के मांस को खाने को फ़ूड राइट तक कहा गया, संसद में एक सांसद ने इसे सस्ता प्रोटीन तक कहा। जीवों जीवस्य भोजनं या जीवों जीवस्य जीवनं। कब तक बर्बरता की काली चादर ओढे रहेगें?
भारतीय संस्कृति को बदनाम किया गया उसके रक्षक ब्राह्मण और क्षत्रिय को समाजवाद के ढकोसले के कारण राक्षस का रूप देने का प्रयास किया गया। जिसे संस्कृत भाषा नहीं पता वो अंग्रेजी पिता की पुस्तक पढ़ के भारतीय शास्त्रों की आलोचना लिख दी। हिन्दू वही है जो हिन्दू शास्त्र माने, उसकी विधियों को स्वीकार करें। अपने मनमाने तरीके को अपने अनुसार करके आप हिन्दू कैसे हो सकते हो? हिन्दू जीवन पध्दति, शैली आप कह सकते हो क्या मुस्लिम, ईसाई और दलित बौद्ध से भी इसके बारे पूछा है आपने?
विश्व के अनेक देशों में देखने को मिला जब दमघोटू व्यवस्था थी तो जनमानस ने वहाँ क्रांति की अमेरिका, फ्रांस, रूस, चीन, जापान, तुर्की के उदाहरण हमारे सामने हैं तो भारत मे क्रांति क्यों नहीं हुई?
हमारी व्यवस्था का राजा हमारे पास नहीं था परतंत्रता हजार साल रही किन्तु उसे हमलोगों ने मानसिक स्तर तक नहीं जाने दिया उसका कारण हमारे शास्त्रों की शक्ति थी। भारत जैसे महान देश की व्यवस्था पर आलोचक सशंकित रहे हैं क्योंकि उन्हें भी किसी चरणों मे आस्था थी। रामचंद्र गुहा जैसे इतिहासकार इतिहास के माध्यम से एक परिवार के चरित्र को गढ़ने का प्रयास किया।
जातिवाद के प्रेत को संविधान लिखते समय क्यों खत्म नहीं किया मतलब साफ नेताओ ने अपने स्वार्थपूर्ति का रास्ता जाति में खोज निकाला। तोहमत ब्राह्मणों पर डाली।
भारतीय शिक्षा के पाठ्यक्रम में हिन्दू देवी, देवताओं लोप कर दिया गया। ब्राह्मण और क्षत्रिय के योगदान को किसी पुस्तक के माध्यम से कभी बताया गया हो ऐसा किसी ने नहीं पढ़ा होगा।
मीडिया और पत्रकार की क्या मजाल जो इस पर मुँह खोल दे नैरेटिव सेट कर दिया गया कि अंग्रेज सभ्य जाति थी मुगलों ने लूट नहीं की। वो क्षत्रियों ने दलितों की महिलाओं की आबरू लूटी थी।
ये कभी नहीं बताया गया जब भारतीय राजाओं का काफिला चला था और रुकने की जगह के बारे में पता चलता था कि एक दलित सुखलाल की बेटी का विवाह इसी गांव में हुआ है तो राजा कहता था कि काफिले को आगे रोकिये इस गांव में हमारे यहाँ की बेटी ब्याही है।
अपनी संस्कृति को समझे अपने लोगों को समझे गाली गलौज जो विदेशियों से जो सीख लिया उससे बाहर निकलिए। फिर देखिये भारतीय गुलिस्ता कितना खूबसूरत हो सकता है।
Sanskrit aur sanskrit samajh bahut kam hai logo me