अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

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भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ, विदेशी हुकूमत से आज़ादी मिली। 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान लागू हुआ। भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया। अभिव्यक्ति की स्‍वतंत्रता अपने भावों और विचारों को व्‍यक्‍त करने का एक राजनीतिक अधिकार है। इसके तहत कोई भी व्‍यक्ति न सिर्फ विचारों का प्रचार-प्रसार कर सकता है, बल्कि किसी भी तरह की सूचना का आदान-प्रदान करने का अधिकार रखता है।

विचार एवं अभिव्यक्ति मनुष्य के नैसर्गिक गुण हैं, जो उसे जन्म से प्राप्त होते हैं। वह इनका उपयोग भी अपने जन्मसिद्ध अधिकार की ही तरह करने की इच्छा रखता है। लेकिन क्या इच्छा रखने से या संवैधानिक रूप से अधिकार मिलने से क्या आप कुछ भी बोलने के अधिकारी बन जाते हैं? मनुष्य बोलना तो जन्म के 2-3 वर्षों बाद ही सीख जाता है लेकिन बोलना क्या है, या कहाँ बोलना है यह सीखने में जीवन निकल जाता है।

आज देश का एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग अपने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगने की बात करता है और तमाम दलीलें देता है। चाहें मामला दिल्ली के रामजस कॉलेज का हो या जामिया का या JNU का, स्टूडेंट्स कल्चरल प्रोग्राम के तहत होने वाले कार्यक्रमों में किस प्रकार अभिव्यक्ति की आज़ादी का माखौल बनाया जा रहा है यह शायद JNU के “भारत तेरे टुकड़े होंगे” नारे से समझा जा सकता है और जब प्रसाशन इसपर अंकुश लगता है तब अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगता नज़र आने लगता है। भारत में बढ़ते विदेशी NGOes और बढ़ती विदेशी मीडिया का असर कहें या लोगों के मन की कुंठा जहाँ “द सेक्रेड गेम्स” जैसे TV सीरीज इतने पसंद किए जाते हैं। हालाकिं यह लोगों की अपनी पसंद है और इसमें आप या हम अपनी पसंद नहीं थोप सकते लेकिन यह एक बड़े ही गंभीर विषय को जन्म देता है कि कहां जा रहा है आज का हिंदुस्तान? कहाँ जा रही है आज के लोगों कि सोच?

यह एक बड़ा ही माना हुआ नियम है कि आपके सारे अधिकार, सारी अभिव्यक्ति वहीं समाप्त हो जाती है जहाँ से अगले व्यक्ति की नाक शुरू होती है।

मतलब आप स्वतंत्र है, आपको बोलने के सारे अधिकार प्राप्त हैं लेकिन इस से सामने वाले को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए, सामने वाला इससे प्रभावित नहीं होना चाहिए। आप भारत में खड़े हो कर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाएंगे तो भारत के आम नागरिको को इस से कष्ट होगा और यह आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बिल्कुल नहीं मानी जायेगी।

आप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या प्रिंट मीडिया के माध्यम से अपनी व्यक्तिगत भड़ास नहीं निकाल सकते इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी बिल्कुल नहीं माना जायेगा। राजनीति के स्तर पर देखें तो यह लंबे समय से चला आ रहा है कि विपक्षी पार्टियां सत्तारूढ़ पार्टी और यहां तक की प्रधानमंत्री तक को कुछ भी बोलने से नहीं कतराती। क्या प्रधानमंत्री या सत्तारूढ़ पार्टी अपने से ही उस पद पर पहुँच जाते हैं? नहीं उन्हें लोकतंत्र का बहुमत प्राप्त होता है और उनके ऊपर किसी भी प्रकार का सवाल या अपशब्द सीधे उस जन तंत्र के लिए होता है जिसने उनको चुन कर भेजा है, इससे उन लोगों की भावनाएं आहत होती हैं।

राजनीतिक स्तर पर भी इस बात का ख्याल रखते हुए बोलना चाहिए। चाहें विपक्ष सत्तारूढ़ पार्टी को अपशब्द बोले या सत्तारूढ़ पार्टी विपक्ष को जनमत तो दोनों के साथ ही होता है, इसका विचार करके ही कुछ भी बोल जाए। आप बोलिये लेकिन ध्यान रखिये कि किसी को इससे कोई कष्ट न हो, राष्ट्र की गरिमा अक्षुण रहे और तभी यह सही मायनों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानी जायेगी।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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Chandan Sharma
Chandan Sharma
4 years ago

अत्यंत ही सुन्दर, सत्य और कलात्मक।। धन्यवाद।। @Chandan1Sharma

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