वीर भोग्ये वसुन्धरा

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Dhananjay Gangey
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हे वीर आज जो तुम रणभूमि में पड़े हो कभी तुम्हारे चलने से धरती डोलती थी। तूमने रण में किसे धूल नहीं चटाई? विश्व को जिसने एक बाण में बांध दिया। जिससे शत्रु थर – थर कांपते थे।
हे वीर, योद्धा भी तुम्हारा नाम गर्व से लेते हैं।

हे शूरवीरो के मुकुटमणि, मैं तुम्हारी माँ को क्या जबाब दूँगा? अब वो मां कहने वाला रण बाँकुरा युद्ध भूमि के मिटटी का तिलक कर तुम्हारी कोख सुनी कर गया।

मैं तुम्हारी पत्नी को क्या उत्तर दूँगा जब पूछेगी कौन शूरमा है जिसने मेरे स्वामी को शस्त्रहीन कर दिया? पुत्र तुम अभी तो आये थे पिता के सम्मान के लिये तुम्हारे शत्रु भी तुम्हारा यशो गान करते नहीं थकते।

तुम धन्य हो पुत्र जो मेरे कुल के मणि बने। जब इतिहास से धूल झाड़ी जायेगी तुम फिर जीवित हो उठोगे।
तुम्हारे वीरगति प्राप्त शरीर को ये पिता प्रणाम करता है।

पुत्र, युगों युगांतर तक जब भी तुम्हारा जन्म हो तुम ही मेरे पुत्र बनाना ऐसा बचन दो इस कातर बूढ़े पिता को ताकि एक वीर पुत्र के पिता होने का सौभाग्य और समाजिक सारगर्भिता के उस सिद्धांत का मै प्रतिपादन कर सकूँ जिसके अनुसार:

पूत सपूत जने जननी, पितु मात कि बात को शीश चढ़ावे।

कुल की मरियाद रखे उर में, दिन रेन सदा प्रभु का गुण गावे।।

सत संगत सार गहे गुन को, फल चार धरा पर सहज ही पावे।

इस धरा पर धनाढ्य वही, सूत धन्य है धन्य जो लाल कहावे।।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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Usha
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4 years ago

Supper 👌👌

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