अफ्रीका : दो ध्रूवों की प्रयोगशाला

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Dhananjay Gangey
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अफ्रीका, एक ऐसा खूबसूरत महादीप है जिसे प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है लेकिन यूरोप, एशिया और अमेरिका की गिद्ध दृष्टि से बच नहीं पाया।


अफ्रीका प्राचीन समय से एक सनातन परंपरा संपन्न महाद्वीप रहा है जिसे अपनी मान्यताओं के साथ – साथ प्रकृति पर विश्वास था। अफ्रीका शब्द का उद्गम बर्बर भाषा के ‘इफ्री’ शब्द से हुआ है जिसका अर्थ है ‘गुफा’ इसीलिए इसे गुफा में रहने वालों का देश कहा गया।

समय के साथ रोमन साम्राज्य का विस्तार अफीका तक पहुंचा। चौथी सदी में एक्शन साम्राज्य के समय यहां ईसाई धर्म और सातवीं सदी में मुस्लिम धर्म लाया गया। आज के अफ्रीकी डेमोग्राफ में 45 फीसदी मुस्लिम, 40 फीसदी ईसाई और 15 फीसदी हिंदुओं सहित अन्य धर्म हैं।

आधुनिक लिखित इतिहास के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति होमो सीपियंस और होमो इरेक्ट्स यही से माने जाते हैं जो बाद में विकसित हो कर मानव बन गये। विकास (Evolution) की यह परिभाषा अंग्रेजों की दी हुई है वास्तविकता के धरातल पर बन्दर से मनुष्य का विकास संभव नहीं है। बड़ी बात यह है कि यदि विकास क्रम यह होता तो आज भी यह परिवर्तन जारी रहता लेकिन ऐसा कुछ नहीं है।

इस लेख में अफ्रीका महाद्वीप के उल्लेख का तात्पर्य यह है कि किस प्रकार से यह ध्रुवों की प्रयोगशाला के रूप इस्तेमाल होता रहा है और कैसे यह अंधकार का महादीप बन गया, कैसे इसकी मौलिकता को अपहृत किया गया, इस बात पर प्रकाश डाला जाए।

प्राकृतिक रूप से जीने वालों को लूटने के लिये ईसाइयों और मुस्लिमों ने यहां अपने – अपने टेंट गाड़े और फिर समय के घूमते चक्र के अनुसार यह खेमा बंदी में बदल गया। इस्लाम के पूर्व अफ्रीका का मुख्य व्यापारिक चौकी यमन था किंतु इस्लाम के साथ ही अफ्रीका की सीमा सीमित कर दी गयी।

दूसरी तरफ ईसाई पहले ही ऐसा प्रयास शुरू कर चुके थे। विदेशी पंथ अफ्रीका की धरती पर उगाये गये। अफ्रीका को निचोड़ने का काम विदेशी सत्तायें निरंतर करती रहीं जो अनवरत जारी है।

मध्यकाल में मोरक्को का यात्री इब्न-बत्तूता,  मुहम्मद बिन तुगलक के समय 14वीं सदी में भारत आया। उसने भारत के समाज, मौसम और फलों विशेषकर आम का विशद वर्णन अपनी पुस्तक “रेहला” में किया है।

समय के साथ पुर्तगाली और डचों ने अपनी कालोनियां बना लीं और उसके बाद आया ब्रिटिश और फ्रांसीसी दौर। कार्य वही था गुलाम बनाना और प्राकृतिक संसाधनों की चोरी।

आज अफ्रीका में यूरोपीय शासन का अंत हो चुका है और सभी 53 देश स्वतंत्र हैं लेकिन गरीबी जारी है। दो धुवों की जगह द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और रूस ने कमान संभाल ली।

शीत युद्ध के खत्म होने के साथ सोवियत यूनियन का पराभव हो गया। अमेरिका का एक छत्र राज हो गया और लेकिन ब्रिटिश और फ्रांसीसी प्रभाव कायम रहा। यह पूरा क्ष्रेत्र मिशनरियों के लिए सैरगाह की तरह रहा है।

नयी सदी एक नये खिलाड़ी ‘चीन’ को लेकर आया। चीन ने अपने आर्थिक मुनाफे को अफ्रीका में इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम से प्रचारित कर प्राकृतिक संसाधनों की चोरी शुरू की। अफ्रीका के गरीब देश विरोध नहीं कर पा रहे हैं।

अफ्रीका यूरोप, अमेरिका और चीन का प्रैक्टिकल फील्ड है। दवा, नशा या कोई भी नए प्रयोग जैसी मर्जी हो करिये क्योकि वहां मनुष्य जीवन की कीमत एक बकरी और दो जून की रोटी से अधिक नहीं है।

अफ्रीका में खुशहाली की कुछ गिनी – चुनी जगहें ही हैं जिनमें दक्षिण अफ्रीका, मिस्र और अल्जीरिया को शामिल किया जा सकता है बाकी देश में मिलीशिया, आतंकवादी, समुद्री लुटेरे, मानव तस्कर, छोटी लड़कियों के व्यापारी सक्रिय हैं। बाकी जो पाप बचता है उसे सैनिक तानाशाह पूरा कर देता है। आये दिन छोटे – छोटे देश के अंदर से लेकर सीमा तक हिंसात्मक टकराव होते रहते हैं।

अफ्रीका महादीप को लूटने की जद्दोजहद में शक्तिशाली देश संलिप्त रहे हैं और इतना सब अफ्रीका के नाम पर करने के बाद भी धरातल पर उनके जीवन के बेहतरी का कोई प्रयास नहीं है।

पेट की भूख के लिए अफ्रीका के लोग हाथ बांधे खड़े हैं उनकी कोई भी आवाज विश्व में नहीं है। उसके हिस्से में दूसरों की सेवा लिख दी गई है क्योंकि काले लोग हैं। उनका दोष अफ्रीका का मूल निवासी होना है।

सम्पूर्ण विश्व में भारत ही ऐसा देश है जो शोषण की जगह पोषण और मानवीय मूल्यों का तरज़ीह देता है। भारत अगर विश्व की महाशक्ति और नेता बनता है तो उससे सबसे बड़ा लाभ बेजुबान देशों को आवाज के रूप में मिलेगी, उनकी बेहतरी लिए काम होगा। अफ्रीकी देशों को भारत पर पूरा भरोसा है।

मौर्य सम्राट बिन्दुसार के समय अर्थात ईसा से 300 वर्ष पूर्व अफ्रीका से सम्बन्ध स्थापित थे। मिस्र के नरेश टॉलमी फिलाडेल्फस ने डायनोसिस को दूत बना कर भेजा था।

सीरिया के शासक एण्टियोकस ने डायमेकस नामक राजदूत को बिंदुसार के दरबार में भेजा था। बिंदुसार ने सीरिया से मीठी मदिरा और सूखे अंजीर के बदले भारत से वहां दार्शनिक भेजने के लिये पत्र लिखा था।

प्राचीन अफ्रीकी लोगों ने खनन कर प्रसंस्कृत धातुओं का निर्माण किया। सोना चांदी, तांबा, कांस्य, लोहा और मिट्टी के बने सुंदर पात्र निर्मित किये।

रोम, भारत और अरब देशों के जहाज यहां से गुलामों, हाथीदांत, सोने, पन्ना, जानवरों की खाल, दरियाई घोड़े और अन्य विभिन्न जानवरों का आयात करते थे।

अक्सुमाइट साम्राज्य अफ्रीका में दूसरी शताब्दी में स्थापित हुआ जिसमें अरब देशों के हिस्से भी शामिल थे। अक्सुमाइट राजदूत मिश्र, अरब और भारत आदि देशों तक गये।

12वीं सदी में माली जो पूर्व में घाना का सामन्त राज्य था, में एक बड़े साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी राजधानी टिम्बकटू थी इसके सुल्तान विश्व के सबसे अमीर व्यक्ति शासक मनसा मूसा थे जिनकी कुल सम्पत्ति 4 लाख मिलियन अमेरिकी डॉलर थी। यह रकम आज के भारत के संदर्भ में 2.5 लाख डॉलर स्वामित्व के मुकेश अम्बानी से लगभग 300 गुना अधिक थी।

अरियो और हाइलैंड्स का साम्राज्य, इथियोपिया में सोंगई पूर्वी अफ्रीका में, मेडागास्कर में इमेरिन, स्वाहिली साम्राज्य युगांडा क्षेत्र में, नूबिया और कार्थेज राज्य रहा। एक्सम शासन में 330 इस्वी में ईसाई धर्म का प्रवेश हुआ था।

पशुपालन में गाय, बकरी, भेड़ आदि का प्रयोग किया जाता था, कृषि में बाजरा, गेंहू, कपास आदि होती थी। फल में जामुन, नींबू, आबनूस आदि प्रचुर मात्र में होते थे।

अफ्रीकी लोग प्रकृति प्रेमी और मस्त थे किंतु ईसाई और मुस्लिम की ललचाई शातिर व्यवस्था ने अंधकार दीप और कालों का देश बना दिया।

अफ्रीका में धर्म देखें तो 85 फीसदी लोग मुस्लिम या ईसाई हैं और यही अशांति का कारण हैं। वास्तव में ये दोनों धर्म के स्तर पर असफल विचारधाराएं मात्र हैं। इन दोनों के लिए खुशहाली का मतलब यूरोप के चंद देश और अरब देश हैं।

मध्यकाल में मुस्लिमों की लूट से अफ्रीका उबर न पाया था कि आधुनिक काल में यूरोपीय ईसाइयों की लूट से बर्बाद हो गया, ये चालाक थे और उपनिवेश के साथ वहां व्यापार विकसित कर दिए जिससे शोषण आज भी बना हुआ है।

धर्म का सहारा लेकर अफ्रीकी सम्पदा की लगातार चोरी होती रही और मूलवासियों को यातनाएं मिलती रहीं। भारत के देर से पहुंचने से ये लूट, बर्बरता अभी तक चालू है। भारत पूरे अफ्रीका को सनातन संस्कृति से रोशन करे और इन प्राकृतिक लोगों को खुशहाल जीवन जीने की ओर ले चले।

एक बार डेंसमण्ड टूटू ने अंग्रेजों के लिए कहा था – उनके पास बाइबिल थी हमारे पास जमीन। जब उन्होंने बाइबिल की कहानी सुनाई तो आंख बंद हो गई। आंख खुली तो बाइबिल हमारे हाथ में थी जमीन उनके पास।

अलबरूनी गजनवी के लिए कहता है कि अल्लाह गजनवी को रहमत बख्शे जिसने भारत की हंसती – खेलती संस्कृति को उजाड़ दिया।

अफ्रीका की प्राकृतिक सुंदरता मनमोहक है। नदियों में नील जिसे अफ्रीका की जीवन रेखा कहा जाता है, बहुत सुंदर है। और भी कुछ महत्वपूर्ण नदियां हैं – जैम्बेजी, जूना, रुबका, लिंपोपो तथा शिबेली। कुछ प्यारी और बड़ी झीलें हैं – चाड, विक्टोरिया, वोल्टा आदि। पर्वतों में एटलस, किलमिंजारो, ड्रैकेन्सवर्ग, कैमरून और काला हारी महत्वपूर्ण हैं। कालाहारी और सहारा जैसे रेगिस्तान हैं तो वहीं सवाना जैसे घने वन भी हैं और भारत जैसी ही उष्णकटिबंधीय सदाबहार जलवायु। कर्क, विषुवत तथा मकर तीनों रेखा यहां से होकर गुजरती हैं।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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