भारत में 45 ट्रिलियन डॉलर (₹3,19,29,75,00,00,00,000.50/-) की लूट अंग्रेजों द्वारा अंग्रेजी शासन में की गई। भारत के दलित चिंतक ज्योतिबा फुले, पेरियार, भीमराव अंबेडकर के लिए विषय दलित था, अर्थव्यवस्था क्यों नहीं? षड्यंत्र बू नहीं आती आपको!
शुद्र को दलित किसने बनाया? दलित शब्द (डिप्रेस क्लास) 1902 में अंग्रेजों ने दिया जिसे उनके एजेंटों द्वारा खूब उछाला गया। अंबेडकर और पेरियार का विचार था कि दलित को हिन्दू जाति से अलग किया जाय, जिसमें वह सफल रहे। हीन भावना से ग्रसित अंबेडकर ने शुद्र होकर भी उच्चशिक्षा प्राप्त की। शुद्र के कारण उन्हें ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष भी बनाया गया लेकिन जिस दलित शुद्र की वो बात करते थे, क्या उस व्यवस्था में यह संभव था?
संविधान बनाने में योग्यता की बात करेगें तो सच्चाई यह है कि भारत के संविधान के 395 अनुच्छेदों में से 235 अनुच्छेद भारतीय संविधान अधिनियम 1935 से हैं बाकी सब अंग्रेजों के गुलाम रह चुके देशों से लिया गया है। अंग्रेजी कानून को क्यों स्वीकार किया जबकि उनके देश आज भी संवैधानिक राजतंत्र लागू है? फिर भी उसे लागू नहीं किया गया।
शुद्र जिनका भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा योगदान था वह इंजीनियरिंग से लेकर, चित्रकार, चर्मकार, स्थापत्यकार, शिल्पकार आदि थे। अंग्रेज का समय आते – आते वह शुद्र से दलित हो गया? भारत एक निर्यातक अर्थव्यवस्था से आयातक देश में परिवर्तित कर दिया गया।
विश्व प्रसिद्ध भारत के कपड़े और हस्तनिर्मित वस्त्रों की जगह भारत को रा-मेटेरियल का देश बनाया गया। अंग्रेजों ने ताक़वी दे कर, बुनकरों के हाथ काट लिए। मार्क्स ने कहा अंग्रेजों ने भारत के खड्डी और चरखे को तोड़ डाला।
बंगाल के लिए विलियम बैन्टिक ने कहा कि कलकत्ता के मैदान लोगों की हड्डियों से अटे पड़े हैं। इस पर अंबेडकर, फुले और पेरियार क्यों मौन थे? क्या उन्हें अर्थव्यवस्था की समझ नहीं थी? जबकि उनसे पूर्व दादाभाई नैरोजी ने इस पर विस्तार से लिखा था।
बुनकर को मजदूर बनाया गया जिससे कृषि पर अतिरिक्त भार पड़ा। कृषि जीविकोपार्जन का धंधा बन कर रह गयी। अंग्रेजों की कर व्यवस्था ने उन्हें गरीबी की दुष्चक्र में फंसा लिया। उस समय के बंगाल और बिहार की निलहे की दशा का वर्णन एक अंग्रेज करता है कि “वह खा न सकें इस लिए नील की खेती कराई जा रही है।”
किसी देश की सम्पन्नता उसकी अर्थव्यवस्था में निहित होती है। यदि वैश्विक जनसंख्या के बराबर भागीदारी होगी, अर्थात 17% की वैश्विक जनसंख्या होने पर विश्व व्यापार में भी 17% भागीदारी है तो वह देश सम्पन्न होगा। आज भारत की हिस्सेदारी बमुश्किल 2 फीसदी पर है।
अंबेडकर और पेरियार का एजेंडा वही था जो अंग्रेजों का था। भारत जब गुलाम था तो उस समय भी यह जातिवाद की राजनीति में लगे थे। अंबेडकर ने अंग्रेजों से यहां तक कहा था कि आप हमें ब्राह्मणों के भरोसे छोड़ कर नहीं जा सकते हैं। पहले हमें उनसे स्वतंत्रता दीजिये फिर भारत को स्वतंत्र करियेगा।
जात-पात की खाई को समाज से कहीं ज्यादा राजनीति ने गहरा कर दिया। भारत में नेता बनने की योग्यता है कि आप बड़ी जाति के नेता हो।
जब संविधान सबकी की सुरक्षा की गारंटी देता है तब दलित, आदिवासी, महिला और अल्पसंख्यक के लिए अलग कानून की जरूरत क्या थी?
अलग – अलग कानून से देश को जाति और वर्ग के खांचे में ढलने दिया गया, समाज तोड़ने के वृक्ष रोपे गये। समाजवादी नेता लोहिया ने इसीलिए कहा है कि राजनीति में जातियां ‘बीमा’ की तरह हैं।
फुले, पेरियार और अंबेडकर जैसे नेताओं ने मिलकर समाज को बांटने का कार्य किया है न कि समाज का स्तर उठाने का। अंग्रेजों द्वारा पैदा की गई समस्या को ब्राह्मणों के माथे मढ़ कर अंग्रेजों को साफ – साफ बचाने की साजिश हुई। शोर, शराबा, आंदोलन, चुनावी आरक्षण आदि ने मिलकर भारतीय समाज व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करके, अंग्रेजों की ‘उद्धारक’ की छवि बनाई। जिससे अंग्रेज लूट के बावजूद भी हमारे लिए सम्मानित और आदर्श बना रहा है।
राजनीतिक नफे – नुकसान के बीच जातिवादी राजनीति पर मोहर लगा दी गयी। फर्जी SC/ST कानून से कितने निरापराध सलाखों के पीछे दिन गिन रहे हैं। अंग्रेजों वाली लूट को काले अंग्रेज (नेता, अधिकारी आदि) आज भी जारी रखे हैं। आरक्षण का खेल जिसे अंग्रेजों से सत्ता मजबूत करने के लिए शुरू किया था वह प्रयोग आज नेता कुर्सी के लिए करने लगा।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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