नवबौद्ध कितने बौद्ध

spot_img

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

नवबौद्ध की शुरुआत डॉ अंबेडकर से मानी जाती है जिन्होंने शुद्र वर्ग को दलित और वंचित बना दिया। शुद्र को अब अपने को शुद्र कहने में शर्म आने लगी है। वह अपनी महान संस्कृति, महान विरासत और सोशल इंजीनियरिंग के पूरे तंत्र को भूल गया है।

लोहे का बढ़िया कार्य करने वाले लौहकार, चमड़े का चर्मकार, सोने का स्वर्णकार, तंतु का तंतुकार, मूर्तिकार, शिल्पकार, रंगसाज उन्हें कहा गया जो अपनी विधा के महारथी थे। मेधाशक्ति, रक्षा प्रकल्प और वाणिज्य प्रकल्प छोड़ सभी आयाम समाज ने शूद्रों को सौंप दिया था।

यदि छुआछूत को देखें तो सनातन धर्म से उसका कोई सरोकार नहीं है, वायरस जनित बीमारियों का वर्णन सुश्रुत संहिता, चरक संहिता आदि में मिलता है। पांचवी सदी में दक्षिण भारत के पल्लव राजकुमार द्वारा चीन में फैली महामारी जिसका भारतीय चिकित्सा पद्धति से निराकरण किया गया था। इसके साथ ही साथ ही नारदपुराण, रामचरित मानस में भी ऐसा वर्णन है। आज कोरोना से बचाव सोसल डिस्टेंसिंग एक प्रकार की छुआछूत ही तो है। इन्ही वायरस जनित बीमारियों प्लेग, स्पेनिश फ्लू, चेचक आदि की विभीषिका समाज पहले भी देख चुका है।

अंग्रेजों ने हिन्दुओं की एकता तोड़ने के लिए ज्योतिबाफुले, पेरियार और अंबेडकर जैसे सुरक्षा वाल्ब को खड़ा किया। जिसने सम्पूर्ण शुद्र वर्ग को अस्पर्श घोषित करवाया। भारत की गुलामी और इन सभी समस्याओं का कारण अंग्रेजों को न मान अंग्रेजों की दी परिभाषा जातिवाद, दलित, सामंतवाद, ब्राह्मणवाद का कल्पित सिद्धांत गढ़ कर सभी समस्या के लिए मनुस्मृति और ब्राह्मण को ठहरा दिया।

अंग्रेजों ने बाटो और राज करो के सिद्धांत को सफल होते देखा। वहीं अंबेडकर और पेरियार के रूप में भी उन्हें राजनीतिक सफलता मिली। यह सरकारी नेता थे जो पश्चिम के सिद्धांत को भारतीय समाज में रोपित कर रहे थे जो अंग्रेजों के अनुकूल था।

पेरियार और अंबेडकर ने समस्या को विदेशी और सामाजिक न मानकर धार्मिक माना। पेरियार वामपंथी बन गये अंबेडकर ने हिन्दू धर्म छोड़ कर 1956 में बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। अम्बेडकर के इसी परिवर्तन को नवबौद्ध कहा गया। इससे सामाजिक और धार्मिक स्तर पर क्या सुधार हुआ यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन सामाजिक वैमनस्यता और सोशल डिस्टेंसिंग में जरुर बृद्धि हुई।

आज तो किसीका शुद्र वर्ग का प्रनिधित्व करने का सीधा अर्थ हुआ कि वह अपने को दलित नेता घोषित कर सनातन धर्म की कमियां गिनाते हुए बौद्ध बन जाए। दलित कौन बना? कैसे शब्द गढ़ा गया? उसका नारा ‘जय भीम’ हुआ। चूंकि नव – बौद्ध धार्मिकता की भावना से दूर राजनीति आकांक्षा लेकर आया है इस लिए लोकतंत्र में जनाधार बढ़ाने के लिए मुस्लिमों को जोड़ता है, अब ‘जय भीम’ के साथ ‘जय मीम’ भी जोड़ लेता है।

विचारणीय विषय है कि राजनीतिक सुधार के लिए सामाजिक सुधार की आवश्यकता होती है, सामाजिक सुधार का आधार धार्मिक सुधार होता है किन्तु सभी के मूल में आर्थिक सुधार है। हकीकत देखे तो आईएएस अधिकारी, इंजीनियर, डॉक्टर आदि शुद्र वर्ग के पेशे हैं किंतु पद प्रतिष्ठा और धन है तो यही पद आकर्षण का केंद्र हैं और सब समाज सेवक बनने को उतावले हैं जबकि सेवा धर्म तो शुद्र वृत्ति में ही आता है।

ग्लैमरस शुद्र वृत्ति में लाभ अधिक और पवार अधिक है तो किसी को दिक्कत नहीं है। सुतार, पटवर्धन, श्रीधरन, सिनेमा के कलाकारों आदि के भी शुद्र पेशे ही हैं लेकिन ये धन और ग्लैमर देते हैं इसलिए सबको पसंद हैं।

भारत की समस्या है जनसँख्या के अनुकुल रोजगार सृजन का न हो पाना। विश्व की कुल जनसंख्या का 16.7 % और विश्व GDP में हिस्सा 1.8% इसी को 16% ले जाइये। समस्या का हल ढूढ़ने धर्म में न जाकर व्यापार में खोजने से किसी को नवबौद्ध बनने की आवश्यकता न पड़ेगी।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

***

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

कुछ लोकप्रिय लेख

कुछ रोचक लेख