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गुलामी पूर्व भारत में जाति व्यवस्था

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१८७ ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद जब भारतीय इतिहास की राजनीतिक एकता बिखर गई और भारत छोटे-छोटे प्रदेशों में बिखर गया तब इस बात का लाभ आक्रांताओं को मिला जिससे भारत की एक बड़ी लंबी चलने वाली गुलामी काल की शुरुवात हुई। ऐसे में यदि हमें गुलामी काल से ठीक पूर्व की जाति व्यवस्था के बारे में जानना है तब मौर्य काल में ही इसे ढूढ़ना चाहिए।

भारत में महाभारत काल से लेकर सम्राट अशोक के बीच का इतिहास लिखित रूप में नहीं मिलता। अतः भारत के दरबारी इतिहासकारों ने जो कुछ कह दिया उसे ही मानने को हम विवश हुए।

मौर्य वंश में भी पहले सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल तक ही वह व्यवस्थाएं चलीं जो पूर्व से चली आ रही थीं क्योंकि चंद्रगुप्त मौर्य के बाद बिन्दुसार फिर सम्राट अशोक का शासन आया और भारत में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ। यह २६८ ईसा पूर्व से १८० ईसा पूर्व तक, तब तक चलता रहा जब मौर्यवंश के आखिरी और अयोग्य सम्राट ब्रहद्रथ की हत्या सेना के निरीक्षण के दौरान पुष्यमित्र शुंग के द्वारा न कर दी गई।

चंद्रगुप्त के शासन काल में मेगस्थनीज जो यूनान का एक राजदूत था चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था। कारण यह रहा कि यूनानी सामंत सिल्यूकस जिसने राज्यविस्तार की इच्छा से 305 ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया किंतु उसे संधि करने पर विवश होना पड़ा था। संधि के अनुसार यही मेगस्थनीज नाम का राजदूत चंद्रगुप्त के दरबार में आया। वह कई वर्षों तक चंद्रगुप्त के दरबार में रहा। उसने जो कुछ भारत में देखा, उसका वर्णन अपनी “इंडिका” नामक पुस्तक में किया था।

हालांकि अब यह पुस्तक कुछ पन्नों को छोड़ कर मूल रूप में उपलब्ध नहीं है किंतु अन्य लेखकों द्वारा अपनी पुस्तकों में लिए गए उद्धरणों को जोड़ते हुए पुनः लिखी गई है जो दरबारी इतिहासकारों की सोच से बहुत भिन्न लगती है। पुस्तक में मेगस्थनीज ने वही सब कुछ लिखा जो तब उसने देखा था जिससे पुस्तक किसी एजेण्डे से प्रेरित नहीं लगती।

मेगस्थनीज ने तब की जाति व्यवस्था का जो वर्णन किया है उसके अनुसार उस काल में जाति व्यवस्था छिपी हुई अवस्था में थी, कर्म ही दिखते थे। इन्हीं कर्मों के देखते हुए उसने तब के समाज को ७ जातियों में विभाजित किया :

१. दार्शनिक (Philosopher) मेगस्थनीज ने जैसा वर्णन किया है उसके अनुसार यह दार्शनिक ब्राह्मण वर्ग था जिनकी संख्या अन्य जातियों की अपेक्षा कम थी लेकिन सम्मान सबसे अधिक था। इन्हें कोई सार्वजनिक कार्य नहीं करने पड़ते थे और यह न किसी के स्वामी थे और न ही सेवक। धार्मिक अनुष्ठान, कार्मकांड आदि इनका कार्य था।

२. किसान (Farmer) – किसान उस काल में दूसरी प्रमुख जाति थी जिनकी संख्या अन्य की अपेक्षा अधिक थी। इन्हें भी युद्ध अथवा अन्य कोई सार्वजनिक कार्य नहीं करना पड़ता इसलिए ये अपना पूर्ण समय कृषि को ही देते हैं। शत्रु भी युद्ध के समय कृषकों पर प्रहार नहीं करते क्योंकि इस जाति के मनुष्य सर्वसाधारण के पोषणकर्ता समझे जाते हैं और उनकी भूमि भी नहीं उजाड़ी जाती।

३. पशुपालक/गरेडिये (Herders) – तीसरी जाति पशुपालक और गरेडियों की है। यह लोग न ही नगर में रहते हैं और न ही गांव में बल्कि ये लोग नगर अथवा गांव से बाहर शिविर बना कर रहते हैं और उस स्थान को कृषि के लिए हानिकारक पक्षियों और जंगली पशुओं से रहित करते हैं।

४. शिल्पकार (Artisan) – चौथी जाति शिल्पकारों की है। इनमें से कुछ अस्त्र-शस्त्र बनाते हैं और कुछ कृषि अथवा अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं को बनाते हैं।

५. योद्धा (Military) – पांचवी जाति योद्धाओं की है। ये रण के लिए भली-भांति प्रशिक्षित और सुसज्जित होते हैं। मेगस्थनीज के अनुसार युद्ध न होने पर अर्थात शांति रहने पर ये आलसी और विलासी भी हो जाते हैं।

६. निरीक्षक (Overseer) – यह सम्पूर्ण भारत में अर्थात मौर्य साम्राज्य में जो कुछ भी हो रहा है उसका निरीक्षण करते हैं और उसे राजा अथवा राजा द्वारा नियुक्त पदाधिकारी से बताते हैं।

७. मंत्री/उपदेशक (Councillor and Assessor) – यह लोग सार्वजनिक विषयों पर विचार करते हैं। यह लोग बड़े सद्चरित्र और बुद्धिमान होते हैं। यही लोग झगड़े आदि में पक्ष निर्धारण का कार्य करते हैं। सेनापति तथा प्रधान पदाधिकारी इसी जाति से बनाये जाते हैं।

मेगस्थनीज का अनुसार यह ही तब की जातियां हैं जिसमें तब के भारत के मनुष्य विभक्त थे (The population of India is divided into 7 endogamous and hereditary castes). अपनी जाति के बाहर कोई विवाह नहीं कर सकता था और ना ही एक दूसरे का कार्य ही कर सकता था अर्थात अपनी जीविका छोड़ नहीं सकता था। समाज में न ही कोई किसी का स्वामी था और न ही कोई किसी का सेवक था।

मेगस्थनीज की इंडिका के अनुसार तब के भारत में विदेशी नागरिक भी आते और रहते थे। उनके लिए विशेष प्रकार की व्यवस्थाएं की गई थीं।

जैसा कि पहले बता चुके हैं कि मेगस्थनीज ने वर्षों तक के भारत प्रवास में जो कुछ देखा वही लिखा। यदि तब के समय में सामाजिक व्यवस्था में ऊंच-नीच, छुआ-छूत आदि होती तो निसंदेह उसका विवरण कम या अधिक मेगस्थनीज ने अवश्य किया होता और इस आधार पर यह कहना बिल्कुल ही गलत नहीं होगा कि भारत की जाति व्यवस्था में फैली विकृतियां शुद्ध रूप से गुलामी काल की देन हैं। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम वास्तव में स्वतंत्र होना चाहते हैं अथवा इसी मानसिक गुलामी में रहना पसंद करते हैं।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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Dhananjay Gangey
Dhananjay Gangey
2 years ago

इसमें चाणक्य ने अर्थशास्त्र में जाति के क्या कहा था तुलना करना। मेगस्थनीज को क्यों नहीं दिखा का क्या कारण था। अभी गोल्डन एरा गुप्त काल है। विदेशी जातियों को एडॉप्ट किया। मुस्लिम के समय दिक्कत हुई। जातियों पर एक बड़ा ग्रंथ लिखा जा सकता है। कारण और परिणाम।।

Amarjit Arora
Amarjit Arora
Reply to  एक विचार
1 year ago

मेगास्थनीज को पढ़ें तो आप यह जानेंगे, उस समय जो लोगों में बंटवारा था वह कर्म के आधार पर बांटा गया था। एक दूसरे के प्रति नफरत की भावना नहीं थी। रावण जो ब्राह्मण था परंतु राक्षस होने के कारण हिंदू समाज उसको अच्छा नहीं समझता परंतु बाल्मीकि जी जिनको नीच जाति का कहा जाता था उसे हिंदू समाज भगवान बाल्मीकि कहता था और उन्होंने भगवान राम के बच्चों लव कुश का पालन किया। परंतु… Read more »

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