कोमल नन्हे सुकुमार प्रसून से ये सुन्दर बालक,
इनके गुलाबी हाथों में किसने दिया ये फावड़ा व कुदाल?
रे मानव! क्या तेरा कठोर मन यह देखकर न रोया?
क्यों मनुष्य करते हैं यह क्रूर अत्याचार,
क्यों छीना तुमने बालक की सुन्दर खिलौने व किताब?
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यह नन्हा प्रसून असमय में क्यों है मुरझाया,
हे स्वार्थी मनुष्य! किसने दिया तुम्हे यह सर्वाधिकार?
इन नन्हे मुन्नों को बनाया किसने बाल श्रमिक,
हे बाल मन! क्या यही है तुम्हारा श्रेष्ठ पुरस्कार?
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अरे स्वार्थी मनुष्य अब तो होश में आओ,
स्वार्थ भरे इस जीवन से बाहर निकलकर तो देखो।
इस मानव जन्म का कुछ तो उपयोग करो,
जीवन त्याग से पहले कुछ तो परोपकार करो।
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इन सुकुमारों के जीवन को अब तो संवार दो,
इन कोमल गुलाबी उँगलियों में अब तो कलम पकड़ा दो।
इन नन्हे बच्चों को कुछ तो साक्षर बनाओ।
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श्रेष्ठ नागरिक बन ये बालक देश का नाम करें,
इस डूबते हुए देश का कुछ तो उद्धार करें॥
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आपकी कविता बहुत ही मार्मिक ढंग से लिखी गई हैं