देश में सब कुछ परस्पर सम्बन्धों पर आधारित है इसमें अन्नदाता का महिमामंडन या उधोगों की भूमिका कमतर कैसे हो गई? भारतीय अर्थव्यवस्था में प्राथमिक क्षेत्र की भूमिका GDP में मात्र 14% है, यह अलग बात है कि इसी 14% पर देश के लगभग 50% नागरिक निर्भर करते हैं।
आज के आधुनिक समय में अधिकतर अन्नदाता, अन्न का उत्पादन विवशता में करता है क्योंकि वह नौकर नहीं बन पाया तो किसानी का व्यवसाय कर लिया। अब मजबूरी के व्यवसाय को अन्नदाता नाम दिया जाता है। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि, उद्योग और सेवा तीनों क्षेत्रों को मिलाकर बनती है। कल ही IMF ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए GDP विकास दर 2021 के लिए 11.5% अनुमानित किया है जो कि विश्व के किसी अन्य देश से बहुत ज्यादा है। यह देश के विकास कार्यों को आगे बढ़ाने में मदद करेगा।
भारत में जब से आधुनिक शिक्षा का संचरण हुआ है, एक नैरेटिव बनाया जाता है। एक को हाइक देना दूसरे की भूमिका कमतर करके दिखाना, जिससे राजनीति में नई जगह मिल सके। इसी क्रम में पिछड़ा, दलित जैसे शब्द को भी समायोजित किया जाता (रहा) है।
किसी की भूमिका कम नहीं है, कोई बेकार नहीं है बस उसका प्रयोग करना आपको आना चाहिए जैसे कैंसर की बीमारी में कीमोथेरेपी साँप के विष से होती है।
भारत को कमजोर करने में गद्दार कभी चूकते नहीं हैं। उन्हें सेना के सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत चाहिए। 370 और CAA का बने रहना भी इनके लिए जरूरी है। शाहीन बाग में कुछ कट्टरपंथी आंदोलन करके पूरी दिल्ली में अराजकता फैलाना चाहते हैं जिसकी परिणीति पिछले दिनों दिल्ली दंगे के रूप में हम देख चुके हैं।
किसान आंदोलन के पीछे भी एक सोची समझी रणनीति थी। हिंसा के माध्यम से खालिस्तान की मांग और उसके झंडे को लाल किले से लहराना जिसके लिए किसानों और उनके समर्थकों द्वारा तिरंगे के अपमान के पूर्व की भाषा धमकाने और उकसाने वाली थी। सरकार को तानाशाह कहा गया। अब जबकि दिल्ली में गणतंत्र दिवस के दिन जो अराजकता दिखी, इसमें जनतंत्र आहत नहीं है? संविधान की धज्जियां राजनीतिक आकांक्षा लिए किसानों के भेष छुपे आतंकवादियों ने उड़ा दी।
आंदोलन के नाम पर दिल्ली को कब तक बंधक बनाया जाता रहेगा? दिल्ली के लोगों के मानवाधिकार की सुरक्षा कौन करेगा? दिल्ली में पिछले एक साल से हुये सरकार विरोधी प्रदर्शनों नें लोकल लोगों का जीना मुहाल कर दिया है।
प्रश्न वही है क्या सरकार आंदोलन की इजाजत न दे या आंदोलन में लालकिला जैसी स्थति पर स्थिति नियंत्रण करने के लिये गोली चलवाना पड़े तो पीछे न हटे?
फलसफा एक ही है, दिल्ली में बैठी सरकार निकम्मी है। उसे CAA, शाहीन बाग और दंगे के साथ ही उपद्रवी किसानों पर गोली चलवा कर स्थिति को नियंत्रण में लेना चाहिए था। विपक्ष द्वारा इस बात पर आरोप से यह अनैतिक नहीं हो जायेगा कि लोकतंत्र की हत्या, संविधान को ताक पर रख दिया गया। लोगों के आवाज का गला घोंटा जा रहा है आदि.. आदि।
इंदिरा जी के बंग्लादेश का विभाजन और ऑपरेशन ब्लू स्टार या इमरजेंसी के लिए लिए गए निर्णय को देश सदा याद करता है। विपक्ष की चिंता के लिए सत्ता पक्ष नहीं होता है वह जनता के लिए चिंतित होता है।
सरकार द्वारा यह बहुत बड़ी चूक है।
देश के ध्वज की रक्षा के लिए ये किसान रूपी उपद्रवियों में कुछ जानें जाती तो भी कम होता और हाँ सिर उठता खालिस्तान कल ही पाकिस्तान को चला जाता।
#देश_शर्मसार_है
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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