रूस यूक्रेन युद्ध से अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि विश्व की राजनीति आखिर क्या चाहती है।
युद्ध के शुरुआत में किसी ने नहीं सोचा था कि यूक्रेन एक महाशक्ति के सामने एक महीने से ज्यादा दिन तक मजबूती से लड़ सकता है। राजनीति क्रूर होती है और युद्ध विध्वंसक, फिर भी दोनों हालात में सामान्य यूक्रेनी के जस्बे को सलाम है कि बड़ी जीवटता के साथ अपने को बचाने के लिए लड़ रहे है। वह भी अमेरिका और नाटो के धोखे के बाद।
कुछ नीतिगत भूलें करके रूस ने युद्ध को लम्बा कर लिया है। स्थिति यह है कि रूस बर्चस्व से ज्यादा सम्मान बचाने की लड़ाई जारी रखे है। यूक्रेनी राष्ट्रपति कि हालत है कि जनता मरती है, सेना मरती है, भूभाग नष्ट होता है तो हो जाय लेकिन रूस से अपनी शर्तों पर बातचीत करना चाहते हैं।
दावों के अनुसार युद्ध के शुरू में जेलेन्स्की यूक्रेन छोड़ पोलैंड चले गये थे फिर नाटो के दबाव में कीव लौट कर देश को नेतृत्व दिया। यह कुछ ऐसे है जैसे 1917 में रूस की मेंशोइक क्रांति के बाद यूरोपीय देश वोल्शेविक नेता लेनिन को क्रांतिकारी बना कर पेस्ट कर दिया।
इस युद्ध में रूस की महत्वाकांक्षा पूर्ण होती नहीं दिख रही है, युद्ध खत्म होने के लिए पुतिन परमाणु हमले की धमकी दे रहे हैं, वही दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन चेतावनी पर चेतावनी जारी कर रहे हैं और पोलैंड के अमेरिकी सैनिक बेस में सेना की तादाद बढ़ा दी गई है, उन्हें युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा गया है।
दूसरी ओर विश्व में नये राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं, हूती विद्रोहियों को अमेरिका ने अपने प्रतिबंधित लिस्ट से बाहर कर दिया। यमन के हूती विद्रोहियों ने सऊदी अरब के तेल डिपो पर मिसाइल हमला किया है।
सऊदी अरब अभी तक अमेरिका का वफादार रहा है लेकिन इस समय अमेरिका से रिश्तों में कड़वाहट आ गयी। बाइडेन के तेवर ईरान के सम्बंध में कुछ कमजोर पड़े हैं। अभी कुछ समय पहले तक अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन तालिबान था। बदले हालत में अमेरिका ने उसे अच्छा आतंकवादी मान कर, उसे अफगानिस्तान सौप कर वहाँ से भाग निकला है।
भारत रूस का स्वाभाविक मित्र है, वहीं चीन का भी रूस मित्र है। यदि भारत रूस और चीन का एलाइंस बन जाय, जैसा पुतिन चाहते हैं तो ऐसी स्थिति में विश्व के इकोनामी सिस्टम को अमेरिका – यूरोप से छुड़ाया जा सकता है।
नये देशों को नये मौके मिले। अमेरिका की दादागिरी खत्म हो। आतंकवाद और हथियारों के कारोबार पर रोक लग सके।
अमेरिका आधारित विश्व व्यवस्था ने विश्व के मन में आशंका भर दी है, वैसे अभी विश्व युद्ध का समय नहीं है। फिर भी पश्चिमी एशिया की जियोपालिटिक्स कहती है कि युद्ध हो सकता है, कुछ वर्ष के लिए यह युद्ध के पूर्व की शांति भर है।
चेचेन विद्रोही यूक्रेन संकट में रूस के साथ हैं। एक बात और कि इस समय अमेरिका युद्ध से बच रहा है, उसे कहीं न कहीं लग रहा है कि दो महायुद्धों से उसका उदय हुआ था तो कहीं एक महायुद्ध उसका अवसान न कर दे।
बेलारूस (जहां से रूस की सेना यूक्रेन में घुसी थी) का विपक्ष बाइडेन को आश्वस्त कर रहा है कि वह यूक्रेन के लोगों के साथ है।
रूस की आर्थिक संपन्नता उसकी महत्वाकांक्षा को बढ़ाता है। पुतिन रूस को पुराने सोवियत यूनियन की तरह मजबूत राष्ट्र चाहते हैं। अमेरिका नाटो के माध्यम से रूस को उसी के घर में घेर रहा है, अमेरिका सयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर यूरोप, अफ्रीका और एशिया को अपनी थाप पर नाचना चाहता है।
अमेरिका और नाटो के उकसावे में आकर यूक्रेन तबाह हो रहा है जबकि बाइडेन चेतावनी दे रहे हैं कि रूस नाटो की एक इंच जमीन छूने की गलती न करे।
इन हालातों के बीच इजरायल पहली बार चार अरबदेशों के साथ इजरायल में बैठक कर रहा है। संयुक्त अरब अमीरात और मोरक्को आदि के विदेश मंत्री इजराइल पहुँचे हैं। आज अमेरिकी नीतियों को अफगानिस्तान और यूक्रेन के सम्बंध में देख कर अन्य देश अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। सूरतेहाल यह है कि विश्व में नये रणनीतिक और सामरिक समीकरण तैयार हो रहे हैं। रूस ने अमेरिका की शह में न रह कर खुद मुख्तार बनने के लिए कदम बढ़ा दिया है।
परमाणु युद्ध की आशंकाओं के बीच पाकिस्तान, कोरिया, इजरायल, सऊदी अरब, यमन, जॉर्डन और मिडिल ईस्ट खदबदा रहे हैं। सब की महत्त्वाकांक्षा ने परवान ली है। सयुक्त राष्ट्र संघ जैसा संगठन जैसे बीते दौर की बात हो। यदि युद्ध महायुद्ध में बदलता है तो यह तय है कि विश्व को नये महानायक मिलेंगे और यह निश्चित है कि अमेरिका का दौर खत्म हो जायेगा।