भारत में वर्ष 1920 से 2021 के बीच हुये सम्पदायिक दंगों की संख्या लगभग 17 हजार है, जिसके ऊपर जिम्मेदारी किसी की नहीं है।
विचार करने वाली प्रमुख बात यह है कि बहुसंख्यक हिन्दू यदि साम्प्रदायिक और धार्मिक उन्मादी होता तब कैसे मुस्लिम भारत में रहने को सोचता और उसकी संख्या कैसे बढ़ती? हिंदू-मुस्लिम के बीच इतने दंगे हुए है वहीं हिन्दू-सिख के बीच एक-दो हिंसक दंगे हुए, जैसे 1966 और 1984 का दंगा। दूसरी ओर हिन्दू-ईसाई के मध्य किंचित एक या दो ही होगा। जैन, बौद्ध, पारसी का सवाल ही नहीं है कि वह दंगा करें। मात्र हिन्दू और मुस्लिम के मध्य हजारों दंगे जिनका कोई सिर पैर नहीं।
बाबर के काल 1528 में अयोध्या में राममंदिर गिराये जाने से लेकर 1993 तक के दंगे की संख्या के बारे में बात करने का कोई औचित्य नहीं बनता।
आज दंगे की प्रमुख रूप से तीन शकलें ही परोसी जाती हैं – ‘हिन्दू सम्प्रदायिकता’, ‘मुस्लिम धर्मांधता’ और ‘नैरेटिव साम्प्रदायिक’। जिसका रोपण बौद्धिक अतिवादियों ने विशेष राजनीतिक पार्टी से संरक्षण लेकर समाज में स्थापित किया है। कमोवेश इसी सम्प्रदायिकता की चर्चा पुस्तकों से लेकर मीडिया, सेमिनार आदि तक में होती है।
कुछ भयानक दंगे एक दृष्टि में :
1920 मोपला दंगे
1924 कोहाट, (1920-47 के मध्य भारत के किसी शहर में दंगे होना आम बात थी।)
1946 नोवाखली, लाहौर, पेशावर, पंजाब सिंध, दिल्ली आदि में।
1947 हैदराबाद, कासिम रिजवी द्वारा दंगा।
1964 में राउरकेला
1966 और 1984 भिवंडी दंगा। दिल्ली, मुंबई और गुजरात में हिन्द-मुस्लिम दंगों का लम्बा इतिहास रहा है।
1969 का अहमदाबाद दंगे
मुस्लिम को बौद्धिक अतिवादी शांति कौम कहती रही है। 1851 और 1857 में इनका पारसियों से दंगा हो चुका है। 1987 कश्मीर में “हजरतबल दरगाह से मुहम्मद के बाल चोरी के आरोप में दंगा” हो या 2012 में मुम्बई के आजाद मैदान में रोहिंग्याओं के लिए अमर जवान ज्योति का अपमान। 1989 में सलमान रुश्दी की किताब पर मुम्बई में दंगे का क्या तुक था? 1980 में मुरादाबाद दंगे मस्जिद से सुअर न हटाने की वजह से मुस्लिम और पुलिस के मध्य हुआ।
1985 से लेकर 2002 गोधरा के दंगे तक गुजरात में आये दिन दंगे होते रहते थे। 1989 में भागलपुर दंगे, जमशेदपुर दंगे और 1966 में रांची दंगे।
2004-08 के मध्य महाराष्ट्र में 681 दंगे। नई सदी में मप्र में 654, उत्तरप्रदेश में 613 और कर्नाटक में 341 दंगे हुये।
1964 में 16 राज्यों में 243 दंगे,
1969 से 1984 के मध्य 337 दंगे और
1984 से 1989 के मध्य 16 राज्यों में 291 दंगे।
2005 में मऊ और लखनऊ दंगे, 2006 बड़ोदरा, 2013 मुजफ्फरनगर, 2014 सहारनपुर, 2015 नदिया, 2016 कालियाचक, 2016 धुलागढ़, 2017 बदुरिया, 2020 बंगलुरू और दिल्ली दंगे।
आप ध्यान देंगे तो पाएँगे कि पूरे विश्व के मुसलमानों की चिंता भारत का मुसलमान रखता है, उनके हितों के लिए भारत में कहीं भी कभी भी दंगा कर देता है। इससे भारत का हित भले प्रभावित हो किन्तु “किताब” का हित प्रभावित नहीं होना चाहिये। फिर भी मुस्लिम अमनचैन वाला कौम और हिन्दू सम्प्रदायिक है। मुस्लिम भले भारत में रहते हुए लगभग एक हजार वर्ष बिता चुका है लेकिन उसे भारतीय संस्कृति से कुछ भी लेना देना नहीं है, उसे खाने में आज भी गाय का मांस ही चाहिए।
भारत के बटवारे के पीछे जिस तरह से मुस्लिम सम्प्रदायिकता नहीं थी उसी तरह से भारत में हुई आतंकवादी कार्यवाहियों के पीछे भी मुस्लिम नहीं है।
मुस्लिम यदि तालिबान, ISIS, अलकायदा, बोकोहरम आदि जैसे संगठनों को समर्थन नहीं देता तो विचार करिये इनका विस्तार कैसे होता। गजनवी, तैमूर, औरंगजेब, लादेन इनके हीरो हैं फिर भी मुस्लिम कौम साम्प्रदायिक नहीं दिखती उल्टा बौद्धिक आतंकवादियों को सुभाष बाबू और भगत सिंह आतंकी जरूर लगते हैं।
सबसे मजेदार बात यह है कि 2017 से अभी 2022 तक उत्तर प्रदेश में एक भी सम्पदायिक दंगा नहीं हुआ जबकि इसी बीच अयोध्या मन्दिर का कार्य प्रारम्भ हुआ, काशी कारीडोर और मथुरा का मन्दिर सुर्खियों में है।
दंगे की यह शक्ल आपको कुरान में पत्थर मारने और गला रेतने के सूरा से मिल जाएँगी। किस प्रकार काफिर का कत्ल करें। लूट में मिली औरत कैसे हलाल है आदि- आदि। समस्या की जड़ भी इसी पुस्तक में मिलेगी क्योंकि दंगे आज भी लौहार, कराची, ढाका, ईरान, इराक, मिश्र, फ्रांस आदि में हो रहे हैं।
दंगे सिर्फ सियासत की वजह से नहीं हो रहे हैं अपितु जमीनी हकीकत “आसमानी किताब” को मानने वाले लोग हैं जिन्हें वतन से ज्यादा मजहब प्यारा है। जब तक जड़ नहीं कटती भारत के किसी न किसी कोने में लोग दंगों की भेंट चढ़ते रहेंगे।