कांग्रेस और विपक्ष विदेशी दासता का शिकार हैं जो भारतीयता, संस्कृति, हिन्दू जैसे शब्द उन्हें लिंचिंग जैसे लगते हैं। बात 370 हटाने की, तो वह तो अस्थाई उपबन्ध था जिसे कांग्रेस स्थायी मान बैठी। भले कश्मीर खून की होली खेले ये सत्ता सत्तर साल से लगा रहे थे। समाजवाद, प्रिवी पर्स, बैको का राष्ट्रीयकारण, कम्युनिस्ट सब स्वीकार किया यहां तक अपने को बचाने के लिए इमरजेंसी तक लगा दी। वह 370 हटाती? उससे चर्चा व्यर्थ थी।
शाहबानो पर SC के निर्णय को क्यों बदला गया? सामान्य जीवन हो या राजनीति, भारतीय शास्त्र कहते हैं, कुकर्मो का फल मिलता है, वर्णसंकर होता है जो पितरों को प्रेत योनि में ले जाता है। कांग्रेसियों ने सनातन परंपरा भूल सेकुलर व्यवस्था को बढ़ाया। हिंदु रीति रिवाजों का मखौल उड़ाया। जाति विहीनता की बात करने वाले धूर्त कांग्रेसी नेता एक दो नहीं दस साल लालकिले से पहला शब्द दलित एवं अल्पसंख्यक भाइयों का लगाया, बाकी क्या भाई नहीं थे?
कुछ साल और देख लीजिए ये बहुदलीय शासन का अंत होगा भारत में एक पार्टी सिस्टम लागू होगा। जो स्टैंड कांग्रेस ने 370 पर लिया है उससे पार्टी टूटनी तय है। लोगों को अपनी संस्कृति पर गर्व होता है। ये कांग्रेस पार्टी जो आजादी के बाद रूप धारण की है विदेशी झंड़ादार बनने की, उन्हें “फादर ऑफ इंडिया” सिद्ध करने की जुगत की है।
अंग्रेज शुरू से अघोषित “फादर ऑफ नेशन” रहा है। राजनीति जातिवाद की ऐसी मोहरे चली कि बार – बार राजा गिरफ्त में, ये पता नहीं कैसे राजनीति के शतरंज का विश्वनाथन आनंद (मोदी) आ गया जो पूरा सत्ता का खेल बिगाड़ गया। जिस पर कांग्रेस को शर्म आती थी उसे ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयोग किया। अब तो गैरी कस्प्रोव की तरह आनंद से हार-हार कर राजनीति ब्लैक होल में प्रवेश करने को आतुर है कांग्रेस।
फिर भी कांग्रेस का थिंक टैंक को शुक्रिया कहा जाय या नकारापन जो बार – बार वही घिसी पिटी सलाह दे कर कान्ग्रेस को ICU में पहुँचा दे रहा है।
खेल नहीं बदलता है लेकिन फेडरर बने रहने के लिए अपने खेल की रणनीति में लगातार परिवर्तन करने होते है। यह राजनीति है सूद का खेल नहीं। इतिहास छुपा कर कोई कुछ दिन के लिए श्रेष्ठ हो सकता है बन जाय लेकिन कांग्रेस का नेता रूस के जार की उस रानी की तरह है जब सड़क पर लोगों ने विद्रोह किया तब विद्रोह का कारण पूछे जाने पर बताया गया कि रोटी के लिए तो रानी ने कहा कि रोटी नहीं है तो ब्रेड खाये।
कांग्रेस को कौन बताये जो आज रोटी नहीं खा पा रहा है वो ब्रेड कैसे खा पायेगा? शासन सदा जनापेक्षी होना चाहिये। नियंत्रण सीमा, मर्यादा का पालन नियमित हो। हम विश्व की प्राचीन सभ्यता हैं हमें सांस्कृति मूल्य को भी बनाये रखना होगा। विश्व को भारत से अभी बहुत आस है, यह बात नेताओं को भलीभाँति स्पष्ट रहनी चाहिए।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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