हिंदू – मुस्लिम भाई – भाई का नारा एक जुमला ही रहा, हकीकत कभी नहीं बन पाया, इस कड़वी सच्चाई से बचा नहीं जा सकता है। अगर इस रिश्ते के तह तक जाएं तब यह बात सामने आती है कि समस्या सिर्फ धार्मिक ही नहीं है बल्कि राजनीतिक और सामाजिक भी है।
हिंदू सहिष्णु है, वह मानवता में विश्वास करता है। समस्या तो मुस्लिमकाल के इतिहास में रही। मुस्लिम आक्रांता जिन्होंने भारतीय संस्कृति को नष्ट – भ्रष्ट करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, पूरे उत्तर भारत में एक भी महत्वपूर्ण मंदिर न था जिसे इनके द्वारा तोड़ा न गया हो। गोविन्ददेव, मथुरा, अयोध्या, काशी, महाकालेश्वर, जगन्नाथ, कोणार्क, मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर, सोमनाथ, अजमेर के मंदिर, प्रयाग के मंदिर और इनके अलावे और भी कई मंदिर। हिंदुओ पर जजिया टैक्स लगा तीर्थयात्रा पर भी कर लिया गया। हिंदु महिलाओं के साथ अभद्रता की गई और अब साहेब आप धर्मनिरपेक्षता की बात करते हो? किस कीमत पर?
हिंदुओं के बलिदान पर क्या मुस्लिम धर्म निरपेक्ष हो सकता है? क्या वह गजनवी, गोरी, तैमूर, बाबर और औरंगजेब को आदर्श नहीं मानेगा?
यकीन जानिये जो भारतीय संस्कृति में विश्वास रखते हैं, हिंदुओं ने उन अब्दुल हमीद, अब्दुल कलाम, आरिफ मोहम्मद को सर आंखों पर बिठाया, उन्हें भाई मानने में खुशी रही। किंतु आप गजनवी और तैमूरी पम्परा की कवायद करते हैं तो सौ क्या हजार पीढ़ी बाद भी दूरियां उतनी ही रहेंगी।
आप विचार करिये, क्या जितनी तादाद आज भारत में हिंदुओं की है उतनी ही मुस्लिमों की होती तो क्या यह देश सेकुलर हो सकता था? बहन – बेटी सुरक्षित हो पाती? क्या हिंदुओं की आबादी बढ़ पाती?
यदि आपको लगता है कि यह सम्प्रदायिक विचार है तो सोचिये कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, बांग्लादेश के हिंदू गायब कैसे हो गये? पाकिस्तान में नाबालिक हिंदू लड़कियों का अपहरण करके उन्हें कलमा पढ़ा कर किसी मुल्ले की बीबी बना दिया जाता है, नाम दिया जाता है कि वह लड़की बालिग थी उसने अपनी मर्जी से इस्लाम कबूला है, वह अब बुर्कानसी होने में फक्र महसूस कर रही है।
उन सभी मुसलमानों से हिंदुओ को नफरत है जो भारतीयता पसंद नहीं करता है, जिसके आदर्श भारत में और भारतीय नहीं हैं। कुछ लोगों को बरगला लेने से वस्तुस्थिति में परिवर्तन नहीं आता है। जब पता है कि हिंदू गाय में श्रद्धा रखता है तब उसे हलाल क्यों करते हो, उसे हराम घोषित क्यों नहीं कर पाये? अगर भाईचारा जैसा कुछ भी होता तो यह कब का हो चूका होता।
सभी मुसलमानों से हिंदुओं को बैर नहीं है। भारत के मुसलमान भारतीय बनें, भारतीय तौर – तरीके अपनाएं, फिर देखिये हिंदू उन्हें किस प्रकार से अपनाते हैं।
राम की जन्मभूमि, कृष्ण की जन्मभूमि पर मुकदमें लड़ें और भाई भी बने यह कैसे संभव है? खासकर सुन्नी मुसलमान गहरे स्तर पर विचार करें, फसाद – फसादी भावना तथाकथित जिहाद के कोरे आदर्श से भारत में कुछ बदलने वाला नहीं है।
मर्यादाओं का पालन कौन करेगा? शाहबानो का मसला क्या धार्मिक मामला नहीं था? आज मुस्लिमों को धर्म का डर क्यों सता रहा है कि हिन्दु उन्हें नष्ट कर देगा? तीन तलाक, 370, NRC और जनसंख्या नियंत्रण का विरोध करने का कारण क्या धार्मिक नहीं है? रोहिंग्या से इतनी हमदर्दी क्यों है, उन्हें कश्मीर की घाटी में शरण क्यों दी गई। जिन देशों ने मुस्लिमों को शरण दी, इसका बाकायदा इतिहास रहा है कि मुस्लिमों ने उस देश को ही खत्म कर दिया। आज आधुनिक समय में यूरोप के जिन देशों ने मुस्लिमों को पनाह दिया, वह असामाजिक गतिविधियों से दो – चार है। श्रीलंका ने शरण देने का अंजाम ईस्टर पर बम विस्फोटों के जरिये भुगता। भारत में नार्थ ईस्ट का पूरा डेमोग्राफ़ बांग्लादेशी घुसपैठियों ने बदल दिया। अराजक गतिविधियां तेज हैं। पिछले दिनों आसोम के लिए स्वतंत्र देश की मांग रोहिंग्याओं द्वाराकी गयी। बांग्लादेश भी रोहिंग्या को शरण दे कर पछता रहा है।
देश अपनी समस्या से नहीं निपट पा रहे हैं ऊपर से शरणार्थी ही कुछ दिनों बाद अधिकार की मांग के लिए प्रदर्शन करते हैं। जिसने शरण दी है ये शरणार्थी उसे ही चुनौती देने लगते हैं।
धार्मिक कट्टरता और उससे जुड़ी गतिविधियों को बढ़ावा नहीं देते तो क्या रोहिंग्याओं को म्यामांर से भगाया जाता, चीन मस्जिदें गिरता, सार्वजनिक जगह पर नमाज प्रतिबंधित करता, इनके मदरसों पर प्रतिबंध लगाता?
मध्यपूर्व के हालात देखें तो सऊदी, यमन के शिया हूती विद्रोहियों से लड़ रहें हैं। ईरान की सऊदी से या ईरान की इराक से। तुर्की में कूर्द, कुर्दिस्तान की मांग कर रहे हैं।
लेबनान का शिया आतंकवादी संगठन, हिजबुल्ला पूरे गल्फ देशों और मध्यपूर्व में शिया शासन चाहता है। सीरिया के शिया असद शासन, सुन्नी से लड़ रहा है।
सूडान का दो भागों में बटवारा हो गया, मुस्लिम बाहुल्य उत्तरी सूडान और ईसाई बाहुल्य दक्षिणी सूडान। लीबिया में भी यही हुआ।
2011 में मुस्लिम देशों में जैस्मीन क्रांति हुई जिसका उद्देश्य था परम्परागत शोषण और परिवार आधारित शासन का खात्मा जो कि शिया – सुन्नी संघर्ष में बदल गया। सुन्नियों का समर्थक सऊदी अरब है वहीं शियाओं को संरक्षक ईरान। दोनों की रस्साकसी ने पूरे इस्लामिक देशों को प्रभावित कर रखा है।
फिरके के बर्चस्व की जंग में लोगों के जान की कोई कीमत नहीं है। इराक, सीरिया में सुन्नी आतंकवादी संगठन ISIS और उसके नेता बगदादी के उभार से एक बार तो ऐसा लगा कि खलीफा की खलीफाई से शरीयत का मध्ययुगीन दौर धरती पर चल पड़ेगा, किन्तु स्थानीय लोगों ने विश्व समुदाय के साथ मिल कर इसे हरा कर बाहर कर दिया।
आज उन तथाकथित खलीफा के बेरोजगार हुये जिहादी विश्व के अनेक देशों में आतंकवाद की दुकान लगा रहे हैं।
यदि सिर्फ राजनीतिक समस्या कह कर इससे पल्ला झाडेंगे तो 50 साल से मुस्लिम धार्मिक जिहाद के नाम पर जो आतंकवाद परोसा गया है वह विश्व के अमन – चैन को ही खत्म कर देगा। समस्या के मूल में जाइये। क्यों आतंकवादी बार – बार मुस्लिम धार्मिक, कट्टरपंथ, जिहाद, नारे और अल्लाह का सहारा लेता है? यदि समय रहते विचार कर लिया गया और विश्व के शक्तिशाली देश इससे अपने हित किनारे रख कर कड़ाई से निपटे, तब तो ठीक है, नहीं तो याद रखें कि बाल्कन समस्या और बोस्निया हत्याकांड ने प्रथम विश्वयुद्ध को जन्म दिया था। ब्रिटेन के तुष्टिकरण और साम्यवाद को नियंत्रित करते – करते द्वितीय विश्व युद्ध को अंजाम दिया गया। और अब यदि यह ऐसे ही चलेगा तो मध्यपूर्व की समस्या और इस्लामिक आतंकवाद तृतीय महायुद्ध को जन्म देगा।
आतंकवाद के क्षोभ, व्यक्तिगत हित संवर्द्धन, प्रतिसंतुलन की नीति, इस्लामिक आत्मप्रवंचना और पेट्रो डॉलर की नीतियां महायुद्ध की भूमि तैयार कर रही हैं। ध्यान रहे इस महायुद्ध की भूमि इस बार यूरोप न होकर एशिया होगा लेकिन यह सभी महाद्वीपों पर लड़ा जायेगा।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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आपने बिल्कुल सही बात कही है, यह वश्विक स्तर पर विचारणीय बात है। अगर समय रहते इसपर ध्यान न दिया गया तो स्थति तो आज भी कम भयावह नहीं है लेकिन कल तो कोई और प्रतिकार करने के लिए भी न रहेगा। धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा कब तक इसे छुपायेगा? शुतुरमुर्ग के सर छिपा लेने से समस्या ख़त्म कहाँ होती है।
धन्यवाद वरुण भाई🙏🙏🙏