दस महाविद्याओं का आविर्भाव

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आद्यशक्ति भगवती जगदम्बा ‘विद्या’ और ‘अविद्या’ – दोनों ही रूपों में विद्यमान हैं। अविद्यारूप में वे प्राणियों के मोह का कारण हैं तो विद्यारूप में मुक्ति की। भगवती जगदम्बा विद्या या महाविद्या के रूप में प्रतिष्ठित है और भगवान सदाशिव विद्यापति के रूप में।

दस महाविद्याओं का संबंध मूलरूप से देवी सती, शिवा और पार्वती से है। ये ही अन्यत्र नवदुर्गा, चामुंडा तथा विष्णुप्रिया आदि नामों से पूजित और अर्चित होती हैं। दस महाविद्याओं का अवतरण क्यों हुआ और कैसे हुआ, इस सम्बंध में महाभागवत (देवीभागवत पुराण) में एक रोचक कथा प्राप्त होती है, जो संक्षेप में इस प्रकार है –

पूर्वकाल की बात है प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ-महोत्सव का आयोजन किया, जिसमें सभी देवता, ऋषिगण निमन्त्रित थे, किंतु भगवान शिव से द्वेष हो जाने के कारण दक्ष ने न तो उन्हें आमन्त्रित किया और न ही अपनी पुत्री सती को ही बुलाया। देवर्षि नारद जी ने देवी सती को बताया कि तुम्हारी सभी बहनें यज्ञ में आमन्त्रित हैं, अतः तुम्हे भी वहां जाना चाहिए। पहले तो सती ने मन में कुछ देर विचार किया, किंतु फिर वहां जाने का निश्चय किया। जब सती ने भगवान शिव से उस यज्ञ में जाने की अनुमति माँगी तो भगवान शिव ने वहां जाना अनुचित बताकर उन्हें जाने से रोका, पर सती अपने निश्चय पर अटल रहीं। वे बोलीं – मैं प्रजापति के यज्ञ में अवश्य जाऊंगी और वहां या तो अपने प्राणेश्वर देवाधिदेव के लिए यज्ञभाग प्राप्त करूंगी या यज्ञ को ही नष्ट कर दूंगी।

‘प्राप्स्यामि यज्ञभागं वा नाशयिष्यामि वा मखम्॥’
– महाभागवत पुराण ८/४२

ऐसा कहते हुए सती के नेत्र लाल हो गए। उनके अधर फड़कने लगे, वर्ण कृष्ण हो गया। क्रोधाग्नि से उदीप्त शरीर महाभयानक एवं उग्र दिखने लगा। उस समय महामाया का विग्रह प्रचण्ड तेज से तमतमा रहा था। शरीर वृद्धावस्था को सम्प्राप्त सा हो गया। उनकी केशराशि बिखरी हुई थी, चार भुजाओं से सुशोभित वे महादेवी पराक्रम की वर्षा करती सी प्रतीत हो रही थीं। कालाग्नि के समान महाभयानक रूप में देवी मुण्डमाला पहने हुई थीं और उनकी भयानक जिह्वा बाहर निकली हुई थी, सिर पर अर्धचंद्र सुशोभित था और उनका सम्पूर्ण विग्रह विकराल लग रहा था। वे बार-बार भीषण हुंकार कर रही थीं। इस प्रकार अपने तेज़ से दैदीप्यमान एवं भयानक रूप धारण कर महादेवी सती घोर गर्जना के साथ अट्टहास करती हुई भगवान शिव के समक्ष खड़ी हो गईं। देवी का यह भीषण स्वरूप साक्षात महादेव के लिए भी असह्य हो गया, वे भी भयभीत हो गए। इस प्रकार अपने स्वामी को भयक्रान्त देख कर दयावती भगवती सती ने उन्हें रोकने की इच्छा से क्षणभर में अपने ही शरीर से अपनी अंगभूत दस देवियों को प्रकट कर दिया, जो दसों दिशाओं में उनके समक्ष स्थित हो गईं। भगवान शिव  जिस-जिस दिशा में जाते थे, भगवती का एक-एक विग्रह उनका मार्ग अवरुद्ध कर देता था।

देवी की ये स्वरूपा शक्तियां ही दस महाविद्याएँ हैं, इनके नाम हैं:

१. काली
२. तारा
३. षोडशी
४. भुवनेश्वरी
५. छिन्नमस्तिका
६. त्रिपुरसुंदरी
७. धूमावती
८. बगलामुखी
९. मातंगी तथा
१०. कमला

जब भगवान शिव ने इन महाविद्याओं का परिचय पूछा तो देवी बोलीं –

येयं ते पुरतः कृष्णा सा काली भीमलोचना ।
श्यामवर्णा च या देवी स्वयमूर्ध्वं व्यवस्थिति

सेयं तारा महाविद्या महाकालस्वरूपिणी ।
सव्येतरेयं या देवी विशीर्षातिभयप्रदा

इयं देवी छिन्नमस्ता महाविद्या महामते ।
वामे तवेयं या देवी सा शम्भो भुवनेश्वरी

पृष्ठतस्तव या.देवी बगला शत्रुसूदिनी ।
वह्निकोणे तवेयं या विधवारूपधारिणी

सेयं धूमावती देवी महाविद्या महेश्वरी ।
नैर्ऋत्यां तव या देवी सेयं त्रिपुरसुन्दरी

वायौ या ते महाविद्या सेयं मतङ्गकन्यका ।
ऐशान्यां षोडशी देवी महाविद्या महेश्वरी

अहं तु भैरवी भीमा शम्भो मा त्वं भयं कुरु ।
एताः सर्वाः प्रकृष्टास्तु मूर्तयो बहुमूर्तिषु

भक्त्या संभजतां नित्यं चतुर्वर्गफलप्रदाः ।
सर्वाभीष्टप्रदायिन्यः साधकानां महेश्वर ॥

– महाभागवत पुराण ८/६५-७२

अर्थात् कृष्णवर्णा तथा भयानक नेत्रोंवाली ये जो देवी आपके सामने स्थित हैं, वे भगवती ‘काली’ हैं और जो ये श्यामवर्ण वाली देवी आपके उर्ध्वभग में विराजमान हैं, वे साक्षात महाकालस्वरूपिणी महाविद्या ‘तारा’ हैं। महामते! आपके दाहिनी ओर ये जो भयदायिनी तथा मस्तकविहीन देवी विराजमान हैं, वे महाविद्यास्वरूपिणी भगवती ‘छिन्नमस्ता’ हैं। शम्भो! आपके बाईं ओर ये जो देवी हैं, वे भगवती ‘भुवनेश्वरी’ हैं। जो देवी आपके पीछे स्थित हैं, वे शत्रुनाशिनी भगवती ‘बगला’ हैं। विधवा का रूप धारण की हुई ये जो देवी आपके अग्निकोण में विराजमान हैं, वे महाविद्यास्वरूपिणी महेश्वरी ‘धूमावती’ हैं और आपके नैर्ऋत्यकोण में ये जो देवी हैं, वे भगवती ‘त्रिपुरसुंदरी’ हैं। आपके वायव्यकोण में जो देवी हैं, वे मातंगकन्या महाविद्या ‘मातंगी’ हैं और आपके ईशानकोण में जो देवी स्थित हैं, वे महाविद्यास्वरूपिणी महेश्वरी ‘षोडसी’ हैं। मैं तो भयंकर रूपवाली ‘भैरवी’ हूँ। शम्भो! आप भय मत कीजिये। ये सभी रूप भगवती के अन्य समस्त रूपों से उत्कृष्ट हों। महेश्वर! ये देवियां नित्य भक्तिपूर्वक उपासना करने वाले साधक पुरुषों को चारों प्रकार के पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) तथा समस्त वांछित फल प्रदान करती हैं।

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सा विद्या या विमुक्तये🌺
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2 years ago

अति उत्तम

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