भारत के इतिहास में हिंदुओं की पराजय का एक मात्र कारण रहा है, ‘संगठित नहीं होना’। मुहम्मद बिन कासिम की 712 ईस्वी के युद्ध विजय का विश्लेषण करिये या महाराजा दाहिर के पराजय का कारण, दोनों में यही कारण मिलेगा। हिंदू तब – तब पराजित हुआ है जितनी बार उसके पास एक सार्वभौम सम्राट नहीं रहा।
हिंदू, जिसने देश को अपने खून से सींचा, युद्ध की रणचंडी जब भी देश की लिए आहुति मांगी वह वीर तनिक भी न सोचा, जो देश के लिए आज भी मर रहा है। युद्ध में कितने दास बनाये गये विदेशी और गद्दारों के बच्चे आज नेता बन गये हैं, कोई टैक्स के पैसों पर मुफ़्त की सरकारी सुविधा भोग रहा है और गाली भी दे रहा है। ब्राह्मण और क्षत्रियों को आजादी के बाद कांग्रेस ने अघोषित अपराधी घोषित कर दिया जो आज भी जारी है।
पृथ्वीराज ने तराइन के प्रथम युद्ध को 1191 ईस्वी में लक्ष्मणदेव और गोविंद (तृतीय) के शौर्य से जीत लिया। गोरी ने द्वितीय तराइन 1192 ईस्वी में, टारगेट करके लक्ष्मदेव और गोविंद (तृतीय) को मारा फिर तो गद्दार हिंदू पटकथा लिख पृथ्वीराज को गोरी के आगे विवश कर दिया। हेमू और राणा सांगा के साथ भी यही हुआ। राणा प्रताप जो हिंदुओं की शान थे वह राजपूताना के अकेले क्षत्रिय साबित हुये जिन्होंने मुगलों के खिलाफ बिगुल फूंका। जयपुर नरेश मानसिंह, अकबर की तलवार बन कर हल्दीघाटी के युद्ध को राजपूतों के विरुद्ध ही लड़ा। चंद वीर सैनिक जो मातृभूमि के लिए हर – हर महादेव का घोष कर राणा की ओर से लड़े वह मुस्लिम सेना के संख्याबल और हिंदुओं के षड्यंत्र से पराजित हो गये।
शाहजहां के उत्तराधिकार के युद्ध में जसवंत सिंह ने हिंदू राज्य के लिए साथ नहीं दिया, वह औरंगजेब की तलवार बन कर अपनों को ही काटते रहे। शिवाजी को पुरन्धर में जयसिंह ने मुगलों के लिए पराजित किया। पेशवा जब भारत का इतिहास बदलने के करीब थे उस समय पानीपत के मैदान में मराठों का राजपूत, सिख और जाटों ने साथ नहीं दिया, यहाँ तक कि रसद तक नहीं पहुँचाया। पेशवाओं के अपने सरदार होल्कर युद्ध से पूर्व ही सदाशिव राव भाऊ का साथ छोड़ कर चले गये।
1857 ईस्वी के विद्रोह में सिंधिया और पटियाला नरेश अंग्रेजों की ओर से ही विद्रोह दबा रहे थे। उस समय का वायसराय कैनिन लिखता है “यदि विद्रोहियों में सिंधिया शामिल हो जाता तब अंग्रेजों का विस्तर भारत से ही गोल हो जाता।”
इसके बाद भी रायचंद, जयचन्द, छलचंद और अपनी जातियों के नेता किसी न किसी प्रकार से भारत को गुलाम रहने में कभी मुस्लिम तो कभी अंग्रेजों के साथ कदम मिलाते रहे। आज की राजनीति देखें तो 1885 ईस्वी में बनी कांग्रेस अंग्रेजों के हितों की नुमाइंदगी करते – करते भारत की आजादी की बात करने लगी।
गौरतलब है इतने वर्षों की राजनीति में हिंदू हितों की बात करने वाली पार्टीयों में हिन्दू महासभा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ही रहे जो इस समय की राजनीति पटल पर भारतीय जनता पार्टी है।
आप विचार करिए कि आज 100 करोड़ से ज्यादा हिंदू आबादी है फिर भी उसके हितों की बात करने का साहस राजनीतिक पार्टियां क्यों नहीं करती है? जबकि मुस्लिमों, दलितों की बात करने वाले सभी राज्यों में कई संगठन और राजनीतिक पार्टियां हैं। यहाँ तक कि जहाँ ईसाई हैं वहाँ उनकी भी बात करने वाली पार्टियां है।
हिंदू मंदिर और संस्थानों से 23% टैक्स सरकार लोकतंत्र के नाम पर लेती है। मस्जिद और चर्च टैक्स फ्री हैं। क्यों भारत की राजनीतिक पार्टियां सेकुलर की बात करती है? क्योंकि इसीसे कांग्रेस 72 साल में 60 साल शासन कर चुकी है। यही करके राज्यों में कई पार्टियां आज सत्ता में हैं। भारतीय जनता पार्टी से पुरानी पार्टी शिवसेना को ही देख लीजिए, वह भी हिंदुत्व से सेकुलर पर आ गये और आते ही सत्ता पा ली। अब ऐसे में राजनीति पार्टियां सेकुलर और जातिवादी क्यों न बनें?
नेताओं को पता है कि भारत के लोगों को इतने अच्छे से भ्रमित किया गया है कि उन्हें डरा हुआ मुस्लिम दिखता है, माबलिंचिंग भी दिखती है लेकिन भारत के हजारों मंदिर तोड़े गये, कितने मंदिरों पर आज भी मस्जिद बने हैं, देश टुकड़ों में बट गया, यह नहीं दिखता है।
ईरान, अफगानिस्तान, मालदीव, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान और नेपाल जो कभी जम्बूदीप के अंग थे लेकिन फिर भी हिंदू सेकुलर है। राम, कृष्ण, राणा, वीर शिवाजी, पेशवा से ज्यादा आज हम जयचंद, रायचंद, मानसिंह और अंबेडकर की संतान हो गये हैं।
हम इतने नैतिक हैं कि एक दूसरे को ही लूट रहे हैं। बस, ट्रेन जला रहे हैं, रास्तों को बंद कर रहे हैं क्योंकि हमें भीख चाहिए वह भी जबरदस्ती के आरक्षण की। योग्यता और देश से हमारा कोई मतलब नहीं है। यह देश चल तो रहा है ना…. हमें लाभ देने से बन्द तो नहीं पड़ जायेगा?
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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सर आपको bht badhai ऐसा आपने लिखा ,जो कडवा तो है पर सच्चा है आरक्षण सुन कर मुझे आज गाली जैसा महसूस होता है धन्यवाद् प्रणाम