यदि आप से पूछा जाय सबसे प्राचीन, शाश्वत और जीवंत धर्म कौन सा है? आप का ध्यान बरबस ही सनातन धर्म की ओर जायेगा।
फिर प्रश्न उठता है सनातन धर्म ही क्यों? अन्य बहुत से धर्म, मजहब हैं, वह क्यों नहीं?
सनातन धर्म कैसे जीवंत है, सबसे पहले यह समझिये :
अभी पितृपक्ष बीता है, इसमें पितृक्रिया, तर्पण और गयाश्राद्ध का विधान है। माता-पिता की जिस दिन मृत्यु हुई रहती है, उसी तिथि पर पिंडदान किया जाता है। यह पिंडदान गया श्राद्ध के पूर्व तक चलता रहता है। पितृपक्ष में पितरों के संदेश वाहक कौवे का आगमन निश्चित होता है। पितृ पितृलोक में हैं, उनके पुत्र उन्हें यहाँ से भोजन, जल आदि कर्मकांड के माध्यम से पहुँचाते हैं, यह मानकर किंचित वह मोक्ष की प्रतीक्षा में हो।
सनातन धर्म में मंदिर और भगवान को जीवंत रूप में पूजा जाता है। यदि आप के मन में कोई संदेह है तो आप जगन्नाथपुरी जाइये। आपको मन्दिर में सुबह-सुबह पता चलेगा कि भगवान अभी सो रहे हैं, अब जग गये हैं। अब आरती होगी, भोग लगेगा, भगवान झूला झुलेगे, वाटिका घूमेंगे, नौका विहार करेंगे, अपनी मौसी के घर जायेगें आदि आदि। 12 से 18 वर्ष में भगवान जब कलेवर बदलते हैं, पुराने कलेवर की अंत्येष्टि की जाती है।
पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण कहे गये, जिनके निमित्त मनुष्य को कर्म करने होते हैं। ऋण को वास्तविक मान कर उसे पूर्ण किया जाता है। भारत और भारत की संस्कृति बड़ी अद्भुत है। देश बड़ा है फिर भी धार्मिक एकरूपता है। पितरों के लिए चारों वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र की एक ही मान्यता है। देव पूजा में भगवान को स्नान कराना, चंदन, इत्र, पुष्प, माला, नैवेद्य अर्पण कर आचमन करता है। यहाँ देव की सजीव और देहात्मिक संकल्पना है। सनातन मान्यता स्वयं के सुधार में विश्वास करती है। सामूहिकता, दिखावे या धर्मांतरण को छुब्ध मानती है। क्योंकि मुक्ति सामूहिक न होकर वैयक्तिक होती है।
हमारी परम्परा समस्त जीवों को बराबर का अधिकार देती है। भौतिकवादी विकास करके उनके विनाश की बात नहीं होती है। क्योंकि सनातनी व्यक्ति भले डिग्रियां न लिया हो किन्तु यह जानता है कि मनुष्य चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता है। सबसे बढ़कर सनातन धर्म सभी को महत्व देवता है जैसे विश्वकर्मा, अश्वनी कुमार, मरुतगण, सविता, अग्नि, वरुण आदि भी देवता हैं, सबके दिन तय हैं।
इस सम्मान के बाद भी आपको सनातन धर्म में असमानता और निर्जीवता कैसे दिख सकती है? यदि दिखती है तो आपने धर्म को न जाना है और न ही माना है। धर्म का अर्थ स्वयं के अनुशासन और उत्थान से है। अंधकार से बाहर आकर मनुष्य बनने का नाम धर्म है। पूजा पद्धति आप की शुचिता, पवित्रता के लिए है। जिससे आप का ध्यान लग सके। आप स्वयं को पहचान कर समझे “बड़े भाग मानुष तन पावा”।
सनातन का अर्थ शाश्वत और जीवंत होता है, जिसमें प्राचीनता और नवीनता का संगम रहता है। एक ओर सभी तथाकथित धर्म देह, भुक्ति और संख्या बढ़ाने की बात करते हैं तो दूसरी ओर एक सनातन धर्म ही है जो स्वयं को बढ़ाने की बात करता है।
ध्यातव्य है कि आप स्वयं के चिंतन का विकास करें, धर्म के मूल को समझें। जाहिलियत, लालच, दूसरे को नीच समझने को धर्म नहीं कहा जा सकता है। यदि आपमे धर्म है तो प्रेम और दया भी होगी। प्रसन्नता के पुष्प आपके मन रूपी बगीचे में सदा खिले रहते हैं। यदि आप सनातनी हैं तब ऐसा महसूस हुआ होगा, अनुभव मिला होगा।
आज हम राजनीति से इतनी बुरी तरह घिर गये हैं कि धर्म विलुप्त सा हो गया हैं। राजनीतिक धर्म के आवरण से ढक चुके हैं, जो आपको भ्रम की ओर ले जाता है। स्वयं को स्वयं से छल रहे हैं। क्या पाना चाहते हैं, वह अभी तक निश्चित नहीं है लेकिन पाना जरूर चाहते हैं।
कभी आप अकेले में स्वयं से बातें करिये, अपने को दूसरों में नहीं बल्कि स्वयं में खोजिए, निश्चित ही खोज पूरी होगी। तभी आपको वास्तविक शांति मिलेगी, शान्ति मिलने के साथ आपमें उर्ध्वगामी प्रक्रिया प्रारंभ होगी।