प्रयागराज में मेरा एक छोटा सा गाँव है जहाँ हिन्दू के साथ बीस घर मुस्लिम के हैं। यहाँ के सभी मुसलमान दीपावली के दिन मोमबत्ती जलाते हैं, पटाखे भी छुड़ाते हैं। मेरे गाँव में कोई मस्जिद नहीं है। किसी मुस्लिम में धार्मिक कट्टरता भी नहीं है। वो भंडारे, देवी जागरण आदि में हिस्सा लेने में संकोच नहीं करते हैं।
बड़ी बात यह है कि मेरा गॉंव कोई विशेष न होकर साधारण है। धार्मिक या पौराणिक दृष्टि से बात करें तो यह रामवनगमन मार्ग पर पड़ता है। यहाँ सेकुलिरिज्म जैसी कोई चिड़िया नहीं है। मुसलमानों द्वारा सामान्य बात चीत में भी आतंकवाद की आलोचना की जाती है। ऐसे बढ़िया मुस्लिमों को देख के लगता है कि भारत भर के मुस्लिम मेरे गांव की तरह क्यों नहीं है?
इन सब के बीच एक बड़ी बात यह है कि मेरे गांव में बड़ा – छोटा या कहें तहसील स्तर का भी कोई नेता नहीं है। मुस्लिम कभी गांव में मस्जिद के लिए सक्रिय नहीं हुए। सात – आठ गांव पर कोई एक मस्जिद है।
यह भी एक खास बात है कि क्ष्रेत्र में मुस्लिम की तादाद ज्यादा नहीं है। धार्मिक कट्टरता, अरबीकरण, जिहाद, तीन तलाक का प्रचलन नहीं है। उसका एकमात्र कारण है भारतीयकरण। मुल्ला के इस्लाम पर अल्लाह के इस्लाम को यहाँ के मुसलिमों ने तरहीज दी है। मुझे लगता है प्रयाग का यह गांव, कलाम साहब के रामेश्वर के गांव की तरह ही है जहाँ का धर्म भारतीयता में रंगा है।
मुस्लिमों में उनकी पूछ है जो देवबन्दी, बरेलवी, जमाती से होती है। सऊदी की नकल करता हो तो और भी अच्छा है किंतु यदि भारतीय है, हिन्दू संस्कृति को मानता है तो मौलवी की निगाह में खैर नहीं। काफिर तक कह देंगे। भारत की भूमि में प्राचीन समय से शरणार्थियों को शरण दी जाती रही है। भारत के अधिकतर मुस्लिमों के पूर्वज हिन्दू रहे हैं। कितने मुस्लिम परिवार हैं जिन्हें अपने वंश में कब पूजा पद्धति बदल कर हिन्दू से मुसलमान हो गये, स्मरण है।
मेरे गांव से कुछ दूर एक गांव है जहाँ राजपूतों के दो परिवार हैं, एक तो आज भी क्षत्रिय है लेकिन दूसरा किन्ही परिस्थितियों में मुस्लिम हो गया। दोनों परिवारों में आपस में आना – जाना बहुत दिनों तक बना रहा। लेकिन समय के साथ दूरी बन गयी। मैंने मुस्लिम बने परिवार से पूछा कि जब पूर्वज हिन्दू हैं तो चचा! तो आप क्यों हिन्दू नहीं बन जाते? उनका कहना था कि मैं तो फिर हिन्दू बन जाऊं लेकिन क्या समाज हमें स्वीकारेगा? मेरे लड़के को बहु क्षत्रिय घर से मिलेगी?
एक बार विवेकानंद जी मिलने एक मुस्लिम आया। उसने कहा महाराज जी मेरा कल्याण कैसे होगा मैं तो मुस्लिम हूँ। जानते हैं स्वामी जी ने क्या कहा… तुम जिसकी भी इबादत करते हो उसका फर्क नहीं पड़ता है, तुम दृढ़ रहो, सत्य का अनुसरण करो। धर्म का आडम्बर न करो बल्कि अनुशीलन करो। स्वयं को जानो….कल्याण ही होगा।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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