एक समय था जब पूरा भारत कांग्रेसमय था। कहा गया ‘Indira is India, India is Indira’। आज वही पार्टी ताश के पत्तों की भाँति ढ़हती जा रही है। कुछ कमियां जरूर होगी, जिसे कांग्रेस आलाकमान मानने को तैयार नहीं है। कांग्रेस का कोर वोटर ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम थे। यह सिलसिला आजादी के बाद से १९७७ तक चला। जेपी के आंदोलन और लोहिया की सीख ने कांग्रेस की काट जातियों में खोज निकाली। किन्तु धर्म का मुद्दा अभी राजनीति में न चढ़ पाये था, हिन्दू आस्था पर मसखरी होती रही।
१९७७ के जेपी के आंदोलन के फलस्वरूप उत्तर भारत में कांशीराम, मायावती, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और शिबू सोरेन को पैदा किया। दूसरी ओर आरएसएस कट्टर कांग्रेस विरोधी, हिन्दू आस्था और हिन्दू संस्कृति को राजनीतिक विषय बनाने के लिए उत्कट तप कर रहा थी। कांग्रेस अपनी ही समस्या में घिरती जा रही थी। १२ साल के अंदर इंदिरा, संजय और राजीव का असमय छोड़कर चले जाना फिर सोनिया और राहुल में इंदिरा और राजीव की तलाश पूरी न होना जैसी समस्याएँ।
रामानंद सागर के रामायण सीरियल और बी आर चौपड़ा के महाभारत ने हिंदुओं के मन को झकझोर दिया। उन्हें भी लगा कि हिन्दू संस्कृति एक गौरवशाली इतिहास लिए हुए है, जिसके विभिन्न आयाम हैं। दर्शन, गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, कला, चित्रकला और व्यापार आदि गौरवान्वित करने वाला है। यही बात आरएसएस और उसकी राजनीतिक ईकाई जनसंघ शुरू से कह रही थी, किन्तु समाज का सहयोग उसे अब जाकर हासिल हुआ।
१९८३ में मीनाक्षीपुरम् के ३०० दलित परिवारों द्वारा इस्लाम स्वीकार करना, १९८५ में शाहबानो केस, पंजाब में बब्बर खालसा का आतंक और फिर इंदिरा और राजीव की हत्या। अयोध्या में १९९० में मुलायम सिंह द्वारा कारसेवकों पर गोली चलवाना, कल्याण सिंह के समय बाबरी विध्वंस होना। यद्यपि कि बाबरी विध्वंस के समय केंद्र में कांग्रेस के प्रधानमंत्री नरसिंहा राव थे। राव चाहते थे कि कांग्रेस साफ्ट हिंदुत्व की ओर लौटे किन्तु सोनिया की कांग्रेस ने उन्हें ही हाशिए पर खड़ा कर दिया।
मनमोहन सिंह के समय सोनिया की कांग्रेस ने हिंदुत्व और भगवान राम से परहेज ही नहीं किया अपितु विरोधी स्वरूप भी दिखाया। सेतुसमुद्रम परियोजना में राम के खिलाफ एफिडेविट लगाना, हिन्दू आतंकवाद की थियरी और मुस्लिम तुष्टिकरण चरम पर पहुँचा दिया गया। कांग्रेस को चुनौती मिली हिन्दू ह्रदय सम्राट नरेन्द्र मोदी से, जिनकी हिन्दू वोटर में एक कट्टर छवि बनी थी।
आज मोदी की भाजपा भी अटल की भाजपा से काफी भिन्न है। हिंदुत्व, विकास, भारतीयता, भारतीय संस्कृति और इतिहास को राजनीति के केंद्र में ला दिया है। अधूरी आकांक्षाओं को पूरा होने का मानो समय आने वाला हो।
कांग्रेस स्वयं को रिफॉर्म करती नहीं दिख रही है। सॉफ़्ट हिन्दू पॉलिसी से कांग्रेस को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सफलता जरूर हासिल हुई थी लेकिन फिर सेक्यूलरिज़्म हावी हो गया। राजनीति में मुद्दों का बहुत महत्व होता है जबकि कांग्रेस के पास मुद्दे की कमी हो गयी। भाजपा के पास जन नेताओं की फौज है, तो वहीं कांग्रेस में जन नेताओं को दर किनार कर दिया गया। मध्यप्रदेश में सिंधिया उत्तर प्रदेश में आर पी एन सिंह, जितिन प्रसाद और अब राजस्थान में सचिन पायलट के साथ भी वही हो रहा है।
कांग्रेस में ऊपर से लेकर नीचे तक के नेताओं में मनमुटाव है। पार्टी के पास सत्ता नहीं रहने से महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। राजनीति के संदर्श में सबसे पुरानी पार्टी एक के बाद एक राज्यों में जनाधार खोती जा रही है। जिम्मेदारी लेने से सब कतरा रहे हैं। पार्टीगत, नीतिगत और समयानुकूल परिस्थितियों से न सीखने के कारण पार्टी लगातार जनाधार खो रही है।
एक बात सदा महत्वपूर्ण है, ‘बलवान व्यक्ति नहीं उसका समय होता है’, व्यक्ति की जगह समय की पहचान की जानी चाहिए।
पार्टी कार्यकारी के लोग क्षेत्र में न जाकर पार्टी मुख्यालय पर घमासान मचाये हुए हैं। उन्हें प्रतीक्षा करनी चाहिए, यह अंधेरा फिर छटेगा, यह धैर्य धारण का यह समय है और लोकोन्मुख होने की परिस्थिति भी। विवेक, मेधा और प्रज्ञा के चक्षु खोलिए, अवसर अवश्य मिलेगा।