मेरी द्वारकाधीश और सोमनाथ यात्रा – भाग २ से आगे …
द्वारकाधीश के दर्शन और यात्रा का समापन :
मन में अभी भी पूरी तरह से शिव – शिव और महाभारत की कथा ही चल रही थी। इतने में बस पोरबन्दर शहर पहुँच गयी। इस जगह का महत्व गांधी जी के साथ जुड़ा हुआ है। गांधी, एक हाड़ मांस का पुतला जो अपने कार्यों से विश्व को अचंभित कर गया। भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका, धर्म सहित राजनीति की भूमिका तैयार की, यह अलग बात है कि गोड्से ने गांधी को गोली बाद में मारी लेकिन गांधी जी को उनके शिष्यों ने पहले ही राजनीतिक रूप से मार डाला था।
सोमनाथ से द्वारका का 230 किमी का सफर समुद्र तट से लगा हुआ है। यदि आप प्रकृति प्रेमी हैं और बहुत से खूबसूरत दृश्यों को देखने की आकांक्षा और लालसा रखते हैं तो यहां जरूर आइये। यहां गुजरात का विकास, खेत, किसान पवन चक्की आदि सब कुछ देखने को मिलता है।
सती माता अनुसुइया और अत्रि ऋषि के तीन पुत्र ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा से पैदा हुये थे। तीनों का नाता प्रभास क्ष्रेत्र से है। सबसे बड़े दुर्वासा, मझले सोम (चंद्र) और तीसरे दत्तात्रेय भगवान। दुर्वासा द्वारकाधीश के गुरु थे। सोम का संबंध सोमनाथ से है और तीसरे दत्तात्रेय भगवान गिरनार पर विराजित हैं।
शाम तक द्वारका नगरी पहुँच गये। यहां लोग एक दूसरे का अभिवादन जय द्वारकाधीश बोल कर कर रहे थे। अगले चार दिनों तक रुकने की व्यवस्था शंकराचार्य जी के शारदा पीठ में थी। 56 सीढ़ियाँ चढ़कर भगवान के दर्शन, पूजन, गीता पाठ और प्रसाद आदि लेने का अवसर मिला।
मन में फिर से वही बद्रीनाथ वाली फीलिंग आने लगी थी। साथ ही हरे – हरे द्वारकाधीश, हरे कृष्ण – हरे कृष्ण, कृष्ण – कृष्ण हरे – हरे चलता ही रहा। मेरा जुड़ाव भगवान विष्णु से बहुत अधिक है। मेरे कुल देवता भगवान शिव और इष्टदेव श्री राम हैं।
मंदिर देखने से पहले कच्छ का रेगिस्तान और नारायण सरोवर देखने की योजना बनी थी किन्तु भगवान के दर्शन के बाद निर्णय हुआ कि अब वापसी होने तक अगले चार दिन यहीं रह कर बार – बार दर्शन किया जायेगा।
मंदिर के सम्मुख ही गोमती नदी है जिन्हें देवलोक की गंगा कहते हैं। यह नदी द्वारकाधीश के स्थान पर पूर्व में सतयुग में ही आ गयी थी। जब ब्रह्मा जी पुत्र सनत सनातन सनंदन और सनत्कुमार को दर्शन देने के लिए विष्णु चक्र के रूप में प्रकट हुए थे। यह उसी समय का चक्र तीर्थ और गोमती नदी है।
समुद्र में स्थित शिव मंदिर है। यहां दिसम्बर महीने में भी गजब की गर्मी है लेकिन पूरा क्षेत्र मंदिर और भक्तिमय है।
यहां आकर ऐसा लग रहा था कि जैसे हम अपने प्रयाग की त्रिवेणी में ही कल्पवास में हैं। गोमती नदी में सुबह – सुबह जब लहरें बहुत जोरों पर रहती हैं, स्नान करना एक अच्छा अनुभव है जो हरिद्वार में गंगा स्नान जैसा ही लगता है।
मन इस समय सातवें आसमान पर था जैसे कुछ बहुत बड़ा मिला हो या जैसे भक्त को भगवान ही मिल गए हों… वह भावना शब्दों में नहीं समायेगी, शब्दों में वह शक्ति ही नहीं की उस भावना को प्रदर्शित कर सके।
हम जब द्वारका में थे उसी समय वहां साइक्लोन का एलर्ट जारी हुआ। समुद्र के निकट जाने से यात्रियों को रोका जा रहा था। काफी जगह पुलिस लगी थी। मुझे दूसरे दिन ही वापस आना था इसलिए जब हम गोमती नदी का जल लेने गये तो पुलिस ने रोक दिया, कहा समुद्र के निकट न जाएँ, साइक्लोन आने वाला है।
जब मैंने पूछा द्वारका में भी जहाँ स्वामी स्वयं विराजित हैं? पुलिस ने कहा वह हमें भी पता है किंतु सरकारी निर्देशों का पालन करना पड़ता है।
लोगों में साइक्लोन को लेकर कोई चिंता नहीं थी, चाय पीते एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि कितना भी बड़ा चक्रवात आये लेकिन मजाल नहीं मंदिर के पास भी आ जाये। उसने मुझे कुछ दूर दिखाया जहाँ बिजली के खम्भे उखड़ कर उड़ गये। समुद्री पुलिस का लाइट हाउस समुद्र में चला गया लेकिन द्वारकाधीश का ऐसा प्रताप है कि कोई भी प्राकृतिक आपदा द्वारका में नहीं आ पायी।
उसी दिन तूफान से पोरबंदर और ओखा में तबाही मच चुकी थी लेकिन भक्तों की अपने स्वामी पर अगाध विश्वास है कि वह उनका बुरा नहीं होने देंगे।
द्वारका में जो मंदिर समुद्र में थोड़ा अंदर है उसका नाम भड़केश्वर महादेव है। यह मंदिर द्वारकाधीश से 1 किमी दूर समुद्र तट से थोड़ा अंदर है। मंदिर के तीन ओर से समुद्र का बहुत सुंदर दृश्य है जिससे मंदिर बहुत रमणीक लगता है, आप लहरों और ठंडी – ठंडी चलती हवा के बीच आप अपने को घिरा पाते हैं। आप भी मेरे साथ कल्पना करिये कि कितना आनंद आया होगा। एक तरफ मंदिर में घण्टे का शोर दूसरी तरफ मन-मंदिर में उठता शोर “हे री सखी आज मोहे श्याम से मिला दे”।
लहरों के शोर के बीच मंदिर के पीछे उतर कर समुद्र की लहरों का लुप्त उठाया जा सकता है। एक बार देख कर आपको लगेगा कि कुछ घण्टे की समाधि ले लेते हैं और आप बैठ भी जाते हैं लेकिन मंदिर में लगे घण्टे की आवाज जल्द ही कहती है चलो उठो यहां ध्यान न लगाने देंगे।
यह शिवलिंग आदि शंकराचार्य को गोमती नदी और समुद्र के संगम पर मिली थी जिसे उन्हीं के द्वारा स्थापित किया गया है। इन्हें चन्द्रमौलि भी कहा जाता है। प्रभु पर चढ़ने वाला जल यहां नल से लिया जाता है जो कि खारा है। यहां के पुजारी अवधूत हैं जो प्रसाद में भस्म देते हैं।
मंदिर के तीन ओर से समुद्र का बहुत सुंदर दृश्य है, छोटी सी पहाड़ी पर यह स्थापित है, यह पहाड़ी समुद्र से लगती है, दृश्य बिल्कुल प्राकृतिक है।
द्वारका में बहुत से मंदिर हैं जिनकी अपनी कुछ विशेषताएं हैं।
दूसरे दिन बेट द्वारका के लिए जाना हुआ, पहला पड़ाव आया रुक्मणि माता का मंदिर जहाँ गुरु दुर्वासा के श्राप से भगवान से दूर होकर माता जी ने 12 वर्षों तक तप किया था।
आगे द्वादश ज्योतिर्लिंग में नागेश्वर भगवान आये जो द्वारका वन में हैं, उनके भी दर्शन और पूजन हुए। यहां मैंने अपनी सखी के जीवन के लिए भगवान से उसके जीवन को मांगा।
बेट द्वारका के रास्ते में गोपी तालाब आता है जहाँ कृष्ण विरह में गोपियों ने प्राण त्याग दिये थे। इसी तालाब में वह गोपियाँ मिट्टी बन गईं। यहीं का गोपी चंदन अत्यंत प्रसिद्ध है जिसे लगाने मात्र से शरीर की व्याधियां मिट जाती हैं।
बेट द्वारका या भेंट द्वारिका, द्वीप को गुजराती में बेट कहते हैं। यहीं पर टाटा नमक बनाने की फैक्टरी लगी हुई है। यहां के किसान भी अमावस्या के जल को एकत्रित कर खेतों में नमक बनाते हैं। सबसे बड़ा काम है वेरावल की तरह मछली का, जगह – जगह पर ग्राहकों को बुलाने के लिए मछलियाँ टंगी रहती है।
हम भी पहुँच गये समुद्र के बोट के पास जहां पहुंच कर सबसे पहले शरीर को ऊर्जा देने के लिए दो गिलास दही को उदरस्त किया गया। यहां स्थानीय किसान दही बेचते हुए खूब मिल जायेंगे।
छोटे शिप (जहाज) से कोई 20 मिनट में हम बेट द्वारका पहुँच गये। इसे द्वरिकाधीश का अंत:पुर भी कहा जाता है। यहीं पर भगवान ने नरकासुर का वध करने बाद 16000 कन्याओं को मुक्त कराया था। अब कन्याओं के साथ समस्या थी कि उन्हें कौन स्वीकार करेगा? और भगवान तो स्वयं पतित पावन हैं, उन्होंने 16000 कन्याओं को पत्नी के रूप में स्वीकार करके उन्हें यहीं पर बसा दिया।
यहां माता देवकी, बलभद्र, लक्ष्मी माता का मंदिर है। रुक्मिणी माता को लक्ष्मी के अवतार के रूप में यहां पूजा जाता है। विष्णु, नरसिंह, द्वरिकाधीश आदि का खूबसूरत मंदिर बने हैं। दो घण्टे में दर्शन तो पूरा हो गया किन्तु यह जो मन है वह मुख्य द्वारकाधीश के मंदिर में ही लगा था, वहीं के लिए व्याकुल था।
शाम को फिर से प्रभु के दर्शन हुए और यह क्रम अगले चार दिनों चला। अब प्रयाग वापस होने का समय आ गया था। मन ने फिर से रोना शुरू कर दिया। आत्मा बार – बार पूछ रही थी कि क्या वापस जाना जरूरी है? कुछ और दिन रह लेते।
वापस लौटने का टिकट जो था सो किसी तरह न चाहते हुए भी भगवान से पुनः आने का संकल्प कर वापस चल दिये। ट्रेन से जब तक मंदिर के पताके का दर्शन होता रहा, देखते रहे लेकिन धीरे – धीरे पताका पथ में लीन हो गया।
वापस लौटने पर जैसे ही घर पहुँचे, समाचार मिला कि राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है और मंदिर वहीं बनेगा। मुस्लिम पक्ष को खारिज कर दिया गया है।
जल्द ही रामेश्वरम और दक्षिण भारत की यात्रा पर जाने का संयोग बन गया है, आगे यात्रा जारी है इसलिए जुड़े रहिये, भक्त और भगवान के एक होने का आनंद उठाते रहिये।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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जय मां प्रकृति परमात्मा परमेश्वरी कि जय हो 🙏