साहब सबसे बड़ी चोट पेट की होती है, पिछले दिनों अजमेर शरीफ दरगाह में बवंडर हुआ। हिंदुओं के खिलाफ बयानबाजी की गयी, उसकी प्रतिक्रिया में हिंदुओं ने पीर-फकीर और मजारों का बायकॉट अभियान चलाया। परिणाम जल्द निकला, हिंदुओं के नहीं जाने से मजारों की आमद घट गईं।
मजारों पर पसरे सन्नाटे ने मुस्लिमों में आर्थिक बहिष्कार का खौफ पैदा कर दिया। मौलानाओं के सुर बदले, वे PFI (पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) पर भी प्रतिबंध लगाने को बोलने लगे, वे ओवैसी को भी दोषी ठहरा रहे हैं।
‘सर तन से जुदा’ को गैर इस्लामी बोलने लगे हैं। कई कुरानी चीजें जैसे आतंकवाद से अपने को अलग दिखा रहे हैं।इस्लाम को शांति और भाई चारे का मजहब बता रहे हैं। यदि ऐसे ही हिंदुओं के टिके रहने से जोर की लात पेट पर पड़ेगी तब सब दीन भूल जायेगा। उसे भारत, राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत का सम्मान करना भी आ जायेगा।
बायकॉट का प्रभाव आमिर खान पर भी अच्छा खासा पड़ा है। खान का कहना है कि प्लीज उनकी फिल्मों का बायकॉट न करिये, उनकी बात को गलत तरीके से लिया गया है। वह भारतीय हैं, भारत का बहुत सम्मान करते हैं। कल तक यही आखिर खान जैसे तमाम नचनिये हिन्दू आस्था पर चोट करने से नहीं चूकते थे।
हिन्दू आस्था पर चोट करने का हवाला सेकुलिरिज्म का रहता था। करीना खान ने नेपोटिज्म पर कहा था कि वह अपनी फिल्म को देखने के लिए लोगों को बुलाने नहीं जाती हैं। अब वही अपील कर रही हैं कि उसकी फिल्मों का बायकॉट न करिये प्लीज!
एक बात बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत में नैरेटिव सेकुलिरिज्म नहीं चल सकता है। अब्दुल का मजहब मजहबी, गणेश का धर्म बॉलीवुड का प्रैंक!