पश्चिम बंगाल में किसकी सरकार?

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Satyendra Tiwari
Satyendra Tiwari
न कविवर हूँ न शायर हूँ। बस थोड़ा-बहुत लिखा करता हूँ। मन में आए भावों को, कभी गद्य तो कभी पद्य में व्यक्त किया करता हूँ।

पश्चिम बंगाल में किसकी सरकार? किसकी सरकार, कितने सीटों से और क्यों बनेगा?

पूरा विश्लेषण :

पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव 2021, जो कुल 294 सीटों के लिए आठ चरणों में सम्पन्न होना है। जिसका अभी तक दो चरण सम्पन्न हो चुका है। जैसा कि विदित है कि इस चुनाव का मुख्य आकर्षण नंदीग्राम का सीट, जहाँ से भाजपा के उम्मीदवार शिवेन्दु अधिकारी (TMC के बागी, जो भाजपा में शामिल होने से पहले ममता बनर्जी के दाहिना हाथ माने जाते थे।) का सीधा टक्कर TMC नेता स्वयं ममता बनर्जी, वर्तमान मुख्यमंत्री से द्वितीय चरण में ही सम्पन्न हो चुका है। 

यूँ तो तीन पार्टियां या पार्टियों का ग्रुप चुनाव मैदान में है। लेकिन मुख्य मुकाबला TMC यानि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में है। तीसरी पार्टी के रूप में कांग्रेस लेफ्ट के साथ मिलकर अपनी लाज बचाने यानि जनता को यह जतलाने के लिए चुनाव लड़ रही है। ताकि लोग यह कह सके कि बंगाल में कांग्रेस या लेफ्ट अभी जिंदा है। दो चरण के मतदान सम्पन्न भी हो गया लेकिन अभी तक कांग्रेस के तीनों महान हस्ती जहाँ से कांग्रेस पार्टी की हर एक गतिविधियां शुरू होती है और इनमें ही आकर खत्म भी हो जाती है। यानि कांग्रेस लिमिटेड कंपनी के तीन शीर्षस्थ CEO राहुल गाँधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा अभी तक बंगाल पहुंचे हैं। जबकि दो चरण का मतदान सम्पन्न हो गया है।

अब सवाल उठता है कि जीत किसकी होगी?

पब्लिक है, सब जानती है। उसे अच्छी तरह से पता है कि उसे मुख्य दो दलों तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में से ही किसी एक को ही चुनना है।  

चुनाव पूर्व बहुत पहले से ही अलग अलग एजेंसियों द्वारा ओपिनियन पोल आने का सिलसिला शुरू हो गया था। मतदान समाप्त होने के बाद ही फटाफट एक्जिट पोल भी आ जाएगा। लेकिन उससे पहले मेरा आकलन यह है कि भाजपा की स्पष्ट बहुमत की सरकार बनने जा रही है। भाजपा को कितना सीट मिलेगा। इसकी चर्चा आगे किया गया है। 

भाजपा को बहुमत क्यों मिलेगा? 

👉 पहला कारण यह है कि पश्चिम बंगाल के हिन्दू देश के बाकी भागों में बसे हिन्दुओं की सोच से अलग सोच रखते हैं।

देश के बाकी भागों में बसे हिन्दुओं में से बहुत लोग मोदी युग के पीएम काल से पहले तक सैक्युलरिजम का अर्थ हिन्दू धर्म को राजनीति में अछुत मानते थे। इन भागों में आज भी कई हिन्दू ऐसे हैं जो जन्म से सैक्युलर हो जाते हैं। ये लोग सनातन धर्म को छोड़ कर बाकी धर्म की बात बेहिचक करते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं है। वे एक दिन कांग्रेस के उपरांत बामपंथियों के सबसे बड़े समर्थक रहे हैं। जबकि सबको पता है कि बामपंथी हिन्दू धर्म के बारे में कैसा सोच रखते हैं। आजादी के तुरंत बाद मुस्लिम लीग सारे के सारे पाकिस्तान नहीं चले गए। जिस प्रकार बाढ़ आती है और उसके जाने के बाद भी गढ्ढे में पानी रह जाता है और बड़े बड़े गढ्ढों में ज्यादा पानी भी रह जाता है। ठीक ऐसे ही कुछ मुस्लिम लीगी बामपंथ के रूप में जो आजादी के पहले से भी थे। बामपंथ के रूप में हमारे देश में भी फलने फूलने लगे।

यहाँ मेरा यह कहना है कि जो हिन्दू बामपंथियों का समर्थन करके लगातार 35 वर्ष सत्ता में बनाए रखा। वही लोग बाद में अटल बिहारी वाजपेयी युग में भाजपा का राष्ट्रीय राजनीति में सबसे मुखर पार्टी के रूप में आने के बाद भी बंगाल में टस से मस नहीं हुए। 2011 में भी जब ममता बनर्जी ने बामपंथ के किले को ध्वस्त किया तो भी तथाकथित हिन्दू समर्थक भाजपा का यहाँ नामोनिशान नहीं था। 2014 में भी मोदी काल में जहाँ पूरे भारत में भाजपा का डंका बज रहा था। वहाँ बंगाल में हर तरफ TMC का डंका बजा। यही कारण था कि 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात्र 03 सीट पर जीत से ही संतोष करना पड़ा। 

पश्चिम बंगाल के हिन्दू मुद्दों के आधार पर किसी पार्टी को सर आंखों पर बिठाते हैं। न कि भावना के आधार पर। लेकिन अब इस मोदी युग में वह परिवर्तन के लिए आतुर हैं। इसका कारण यह है कि ममता बनर्जी के पहले लेफ्ट के शासन काल से अबतक हिन्दू धर्मावलंबियों ने तुष्टिकरण की राजनीति देखा। जिसे ममता बनर्जी से जो उम्मीद थी। उस पर पानी फिरता नजर आया। बल्कि ममता बनर्जी ने खुलकर हिन्दुओं का विरोध और मुसलमानों को सर पर बिठाने का काम शुरू कर दिया। जहाँ दुर्गा पूजा सरस्वती पूजा में हिन्दुओं को हाईकोर्ट से अनुमति लेने की जरूरत पड़ने लगी। वहाँ मुसलमानों को ममता बनर्जी का खुलकर समर्थन मिलने लगा। उन्हें बिना रोकटोक अपने जलसे जूलूस आदि निकालने दिया जाता रहा। इसके अलावा उन्हें ममता बनर्जी से जिस विकास की दरकार थी। वह भी पूरा नहीं हो पाया। बीते दस वर्षों में वह ठगा महसूस करने लगा। अब वो किसी को 35-35 वर्ष देने के मूड में नहीं हैं। 

हिन्दू तंग आकर अब ममता बनर्जी की सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने को उतावले हो चुकें हैं। यहाँ के हिन्दुओं में जन्मजात सैक्युलरिजम नहीं है। इन्होंने कांग्रेस को देखा, लेफ्ट को देखा, ममता बनर्जी को देखा, अब अंतिम में उनकी सारी आकांक्षाएँ भाजपा पर आ टिकी है। 

👉 दूसरा कारण भाजपा की रणनीति। 

भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले से ही अपनी पैठ मजबूत करने में जुटी हुई थी। वह हिन्दुओं को यूनाइट होकर भाजपा के पक्ष में वोट करने के लिए माहौल तैयार कर दिया था। जिसकी फसल 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 में 18 सीटें जीतकर काट लिया। जहाँ TMC को 43 फीसद वोट मिले वहाँ भाजपा ने 40 फीसद वोट लेने में कामयाबी दर्ज करा दिया। अगर इसके हिसाब से आकलन किया जाए तो भाजपा ने विधानसभा के कुल 294 सीटों में से 121 पर और TMC ने 164 सीटों पर बढत बनाए हुए थी। लेकिन तब और आज में राजनीतिक माहौल में काफी अंतर आ चुका है। भाजपा लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद अतिउत्साह में अपनी आखिरी मंजिल को प्राप्त करने का लक्ष्य तय कर दिया और इस पर सतही तौर पर काम भी करना शुरू कर दिया। यह आखिरी मंजिल पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को जीतना था। 

इस मौजूदा चुनाव में भाजपा ने बहुत दिनों पहले से ही अपने शीर्ष नेतृत्व द्वारा ऐसी आक्रामक शैली अख्तियार किया। ऐसी बिसात बिछा दिया कि हिन्दुओं को पोलराइ्ज होकर वोट करने में सिर्फ सफलता ही नहीं पाई, बल्कि ममता बनर्जी को भी अपने इशारों पर रणनीति सेट करने पर मजबूर कर दिया। ऐसा जाल बिछा दिया कि ममता बनर्जी को अपने स्वभाव के विपरीत हिन्दुओं के पक्ष में तुष्टिकरण पर मजबूर कर दिया। लेकिन स्वभाव तो स्वभाव होता है। वह गाहे ब गाहे तो अनायास ही प्रकट तो हो ही जाता है। उन्हें जय श्री राम के नारे पर उन्हें जितना गुस्सा आता, भाजपा उन्हें उतना ही उकसाने का काम करने लगी। ममता बनर्जी जहाँ जाती वहाँ भाजपा के लोगों द्वारा जय श्री राम का नारा लगाकर इनके हिन्दू विरोधी रवैये को हर मंच से जगजाहिर करवाने में कामयाब रही। स्वभाव से मजबूर ममता बनर्जी इसका खामियाजा जानते हुए भी अपने आप को न कभी रोक पाई और न अब रोक पा रही है। गुस्से में आगबबूला तुनकमिजाजी ममता बनर्जी का अचानक हिन्दुओं का हिमायती होना इन्हें न घर का न घाट का छोड़ा है। वह अपने मंच से जहाँ कलमा पढती है तो वहीं चंडी पाठ करने पर भी मजबूर हो जाती है। लेकिन ये पब्लिक है। सब जानती है। चंडी पाठ के नाम पर भी एक लाईन। जिसका संस्कृत उच्चारण भी अपनी भाषाई अंदाज में।

👉 तीसरा कारण पश्चिम बंगाल का समाजिक समीकरण। 

पश्चिम बंगाल में लगभग 30% मुसलमानों की संख्या है और लगभग 20% दलितों का। ऐसा नहीं है कि यह 30% मुसलमानों की उपस्थिति हरेक सीट पर है। यूँ तो हरेक सीट पर कुछ न कुछ हरेक जाति सम्प्रदाय के लोगों का वोट होता है। लेकिन यह 30%, संख्या 65 से 77 सीटों को ही कमोबेश कुछ ज्यादा प्रभावित करता है। यहाँ भाजपा को इस समुदाय से वोट न के बराबर ही मिलेगा। लेकिन यहाँ भी मुस्लिम महिलाओं में मोदी के प्रति जो झुकाव है। इससे सेंधमारी होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। इन्हें ट्रिपल तलाक और उज्जवला योजना तथा पीएम आवास योजना के बारे में भी पता है। हलाकि जितनी सेंधमारी होनी चाहिए। उतनी नहीं हो पाएगी क्योंकि अभी भी वोट किसे दिया जाए आमतौर पर घर में पुरूषों के राय और रोज रोज के चर्चा तथा धार्मिक रूझान आदि के आधार पर ही तय होता है। बहुत कम महिलाएँ स्वतंत्र रूप से अपने मर्जी के मुताबिक वोट करती हैं। अगर यहाँ भी भाजपा मुस्लिम महिलाओं के वोट ले लेने में कामयाब हो जाती है और हिन्दुओ के ज्यादातर वोट हासिल करने में कामयाब हो जाती है तो यह ममता बनर्जी के लिए यहाँ भी कई सीटों पर आशा के विपरीत इनके इरादों पर पानी फिर सकता है। इसके अलावा लगभग 13 ऐऐसे ही सीटों पर औवेसी ने भी अपने कंडिडेट खड़ा कर दिया है। गौरतलब है कि इस बार फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने भी ममता बनर्जी का साथ छोड़ दिया है।

इसके बाद लगभग 57 से 62 सीटों पर कमोबेश दलितों के वोट निर्णायक साबित होता है। इनमें मतुआ समाज और राजबंशी समाज के लोग प्रमुख है। 2011 की जनगणना के अनुसार पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जाति की आबादी क़रीब 1.84 करोड़ बताया गया है। इसमें 50 फ़ीसदी मतुआ समाज के लोग हैं। इस हिसाब से 92 लाख मतुआ समाज के लोग हुए। जो आज स्पष्टतः भाजपा के साथ हैं। इसके बाद इनमें राजवंशी समाज के लोगों की प्रमुखता है। जिसे अमितशाह ने अपने कई बार के बंगाल यात्रा में इन्हें अपने पक्ष में करने में लगभग कामयाब हो चुके हैं। इतना ही नहीं यह भी बताया जाता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के लोगों का जहाँ भाजपा को 59 फीसद वोट मिला वहाँ ममता बनर्जी को 30 फीसद वोट ही मिला। 

इसके अलावा पिछले लोकसभा चुनाव में स्वर्ण वोट, ओबीसी क्लास के वोट, और दूसरे सभी समुदाय से भी तृणमूल के अपेक्षा भाजपा को ज्यादा वोट मिला। फिर भी तृणमूल को ज्यादा सीटें इसलिए मिल गई क्योंकि लोकसभा का क्षेत्र बड़ा होता है और कई जगहों पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में था। 

अत: पश्चिम बंगाल के समाजिक समीकरण का भी सुक्ष्म समीक्षा करने पर आज भाजपा की स्थिति काफी मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहा है। 

👉 चौथा कारण मोदी मैजिक। 

यूँ तो मोदी मैजिक का असर 2019 के लोकसभा चुनाव से काम करना शुरू कर दिया था। एक तरफ हिन्दुत्व और दूसरे तरफ मोदी जी के कई केन्द्रीय योजनाओं को बंगल में ममता बनर्जी द्वारा रोक देना। बंगाल के किसानों को ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार द्वारा दिया जाने वाला न किसान सम्मान निधि प्राप्त करने दिया। अभी पिछले ही दिन तारकेश्वर चुनावी सभा में अपने भाषण में मोदी जी ने स्पष्ट रूप से खचाखच भरी जनता के बीच कहा है कि भाजपा के नेतृत्व में बनने वाली सरकार के शपथग्रहण में जरूर आऊंगा और मुख्यमंत्री को यह बोल कर जाऊँगा कि पहले के बकाया राशि समेत प्रत्येक किसानों के खाते में दुर्गा पूजा के पहले तक 18-18 हजार रुपये ट्रांसफर कर दिया जाए। इतना ही नहीं उन्होंने पश्चिम बंगाल के संबंधित अधिकारियों से भी लगे हाथ अपील कर दिया कि सभी किसानों के बैंक खाते और उनके आधार कार्ड की जांच सुनिश्चित कर लें। अबतक आपने जिसके ईशारे पर काम किया तो किया। अब ईमानदारी पर आइये। आपके ईमानदार सेवा की पश्चिम बंगाल के जनता को सख्त जरूरत है। यहाँ मैं एक और अपील पश्चिम बंगाल के जनता से करना चाहूंगा कि जिनके खाते अबतक नहीं खुले हुए हैं। वह सभी अपना खाता नजदीकी बैंक में खोलवा लें। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को भी लागू ही नहीं होने दिया। इस योजना के तहत प्रति वर्ष प्रत्येक परिवार को 5 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा की बात कही गई है। उज्ज्वला योजना से घर घर महिलाओं को मुफ्त गैस मिला है। कोरोना काल में दिसम्बर तक मुफ्त राशन, पीएम आवास योजना, जिसे नाम बदलकर कार्यान्वित करना, CAA NRC पर ममता बनर्जी का विरोध आदि ऐसे और कई मुद्दे हैं जो मोदी मैजिक का काम करके भाजपा को सत्ता तक पहुँचाने में सहायक सिद्ध होगा। 

👉 पांचवा कारण TMC के अंतर्गत असंतोष तथा भ्रष्टाचार। 

तृणमूल कांग्रेस के अन्तर्कलह भाई भतीजावाद तथा भ्रष्टाचार से ऐसी उन्माद उठी है। जो इस पार्टी के अन्तर्गत तूफान खड़ा कर दिया है। ममता बनर्जी अपने नवसीखिया भतीजा के कारण लगातार पार्टी के बड़े बड़े नेताओं यानि अधिकारी परिवार जैसे बड़े से बड़े नेताओं को नजरअंदाज करके कम महत्व देने लगी जो इन्हें काफी भारी पड़ने वाला है। पार्टी के बड़े बड़े कदावर नेता चुनाव से पहले, टिकट बंटवारे के भी पहले ही TMC छोड़ भाजपा में सम्मिलित होने लगे हैं। 

एक तरफ मोदी मैजिक और दूसरे तरफ पशु तस्करी चीटफंड शारदा घोटाला कटमनी जैसे भ्रष्टाचार के मामले से होने वाली क्षति का अंदाज़ा लगाकर TMC के अंदर एक ऐसी आंधी का आना जिससे उसके एक से एक बडे़ नेताओं का भाजपा में सम्मिलित होना इस चुनाव में TMC को काफी नुकसान पहुंचाने का काम करेगा।

भ्रष्टाचार एक और ताजा मामला जो एक ओडियो टेप के जरिये कल ही प्रकाश में आया है। हलाकि इस टेप की सत्यता की पुष्टि अभी तक यानि लेख लिखे जाने तक नहीं हो पाया है। लेकिन फिर भी TMC को इसका नुकसान तो हो ही जाएगा। इस घोटाले का नाम कोयला घोटाला बताया जा रहा है। पहले की भांति इस घोटाले में भी ममता बनर्जी के भतीजा अभिषेक बनर्जी का नाम आ रहा है। इस ओडियो टेप में दो लोग आपस में बात कर रहे हैं। जिसमें ये दोनों लोग अभिषेक बनर्जी का नाम लेकर उन्हें हर महीने 35 से 45 करोड़ रुपये जाने की बात कह रहे हैं। वैसे बंगाल में अभिषेक बनर्जी भ्रष्टाचार के सिम्बल के रूप में पहले से ही विख्यात हैं। यहाँ एक बात ध्यान देने लायक यह है कि TMC से भाजपा में जाने वाले इन नेताओं ने यह देख लिया था कि ममता बनर्जी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में लाख जोर आजमाईश करने के बाद भी भाजपा के विजयी रथ को नहीं रोक पाई। 

👉 छठवां कारण तृणमूल के गुंडगर्दी और ममता बनर्जी का रोहिंग्या मुसलमानों का मसीहा बन जाना। 

लेफ्ट के समय के गुंडे जो अब तृणमूल के आदमी हो गए हैं। इनमें अधिकतर मुसलमान हैं जिनके तबाही से आम आदमियों के अलावा खासकर हिन्दुओं मे भारी असंतोष है। ममता बनर्जी का रोहिंग्या मुसलमानों का मसीहा बनना, इसके अलावा ममता बनर्जी का बंगला देशी घुसपैठिये का जब सत्ता में न थी तब उसका विरोध करना और सत्तासीन होने के बाद उसका हितैषी बनना, इनके लिए घातक साबित होने वाला है। इतना ही नहीं CAA, NRC के कारण जिस बंगला देशी हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता मिलने वाली है। उसका पूरजोर तथा किसी भी दम पर विरोध करना उन लोगों के साथ साथ बाकी हिन्दूओं के मन में भी घोर असंतोष को जन्म दे दिया है। जो ममता बनर्जी के लिए नुकसानदायक साबित होगा। 

👉 सातवां कारण बामपंथियों का प्रभु श्री राम स्नेही हो जाना। 

चुकी लेफ्ट और कांग्रेस के गठबंधन का इस चुनाव में कोई वजूद नहीं है। वह कहीं से भी चुनाव को त्रिकोणीय बनाने में असफल हैं। ऐसे में जो आजतक के ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी और लेफ्ट तथा कांग्रेस के समर्थक रहे हैं। वह सब अपना वोट खराब न करके भाजपा को वोट करेंगे। ठीक ऐसे जैसे दिल्ली में कांग्रेस के वोट से केजरीवाल को तीसरी बार बढत मिल गई है। इनमें से कुछ बामपंथियों का एक रणनीति यह है जिसके तहत वे फ्यूचर प्लानिंग करके अभी श्री राम के समर्थक पार्टी भाजपा को जीताकर आगे अपने लिए जमीन फिर से तैयार करने के रणनीति पर चल रहे हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि वह अभी तृणमूल कांग्रेस को सीधे शिकस्त देने में कामयाब नहीं होंगे।

इस प्रकार हम यह दावा के साथ कह सकते हैं कि पश्चिम बंगाल के इस मौजूदा 2021 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी यानि भाजपा यानि BJP को कुल 294 में से कम से कम 165 से 170 सीट जरूर मिल जाएगा। 

नोट : “यह मेरा व्यक्तिगत राय है। किसी मीडिया, संस्था अथवा किसी व्यक्ति से कोई लेना देना नहीं है।”

इस लेख को NBU Hindi पर पढ़ें।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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वीरेंद्र नारायण
वीरेंद्र नारायण
3 years ago

वाह तिवारी जी, बिल्कुल सटीक आंकलन किये हैं। इस बार दो मई को दीदी गई।

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न कविवर हूँ न शायर हूँ। बस थोड़ा-बहुत लिखा करता हूँ। मन में आए भावों को, कभी गद्य तो कभी पद्य में व्यक्त किया करता हूँ।

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