परिवार-टूटते रिश्ते

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

भारतीय समाज में भाई के रिश्ते को बहुत मजबूत माना जाता है। किंतु इस समय सबसे बड़ा टकराव भाई का भाई से है। क्या आपने विचार किया है कि इतने माधुर्य लिए बन्धु के सम्बंध में आज इतनी कडुआहट कैसे पैदा हो गयी?

परिवार का आधार है नारी। यह नारी, नर को आकार और आधार दोनों देती है। नारी सशक्तीकरण और फेमिनिज्म के चक्कर में भाई – भाई का दुश्मन बन गया। लगभग हर घर में कलह का कारण भाई का भाई से सम्बन्ध में कटुता है। भाई – भाई अलग होने का मतलब है सामूहिक परिवार का एकल परिवार की ओर प्रस्थान, न्यूक्लियर फेमली का आगमन। सब का यही कहना है मुझे कोई झंझट नहीं रखना है अब भाई झंझट हो गया है।

भारत ही नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व में नारी प्रधान समाज रह चुका है लेकिन अन्ततः यही पता चला कि नारी न्याय नहीं कर सकती है। वह अपना हित, अपने सन्तान को तरजीह देगी। वह पति को उसके परिवार से अलग करने के लिए सब कुछ करेगी। साथ ही अपने परिवार से जोड़ने के लिए भी कोई कोर कसर न छोड़ेगी। बात कडुवी है लेकिन सच है।

रामायण, महाभारत से लेकर रूस की क्रांति तक का कारण है एक नारी का होना। इसके विवाद में जाने की जरूरत नहीं है सिर्फ समझने की कोशिश करिये। जो परिवार भारतीय संस्कृति के आधार पर पिछले हजारों वर्षों से थे उन्हें टूटने में महज 20 वर्ष लगे हैं। बीस से तीस का दशक बहुत कठिन होने वाला है यह 2090 तक की सामाजिक रूपरेखा का निर्धारण करेगा। नारी के उत्थान में परिवार अवनति की ओर चला गया।

एक समय परिवार में एक भाई कमाता था और पूरा परिवार खाता था आज पूरा परिवार कमा रहा है लेकिन सुख से कोई नहीं खा रहा है। असन्तोष चहु ओर व्याप्त है। वह नारी भूल जा रही है कि उसके भी दो बेटे हैं जो कलह उसके पति के भाइयों में है वही उसके पुत्रों के बीच भी होगी। ये नारी की आलोचना का विषय नहीं है बल्कि सामाजिक चिंतन का विषय है।

एकल परिवार में खुशी कितनी है? पहले चार परिवार चार कमरें में रह लेता था, खुशी – खुशी पूरा परिवार एक साथ बैठ के खाता था। आज एक ही परिवार का साथ बैठ कर खाना बहुत मुश्किल है, खुशियां मनाने की बात कौन करें। चार जन, सोलह कमरे हैं। वह कहता है बहुत खुश है। लेकिन कितना है? वह स्वयं जानता है। अब मैं, मेरा, हम, हमारा है तुम, तुम्हारा, हमसब, हम सब का गायब है। अपने सब सपने हो गये हैं। अब तो एक चीज है कि हम – तुम हिस्सा बाँट लें और मुक्त हो जाएँ।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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Prabhakar Mishra
Prabhakar Mishra
3 years ago

शुरुआत अपने से,अपने घर से होना चाहिये। आत्मवत् पश्येत् सर्वभूतेषु। यदि अलगाव एवं दुरी किसी कारण विशेष से हो भी जाये तो यह प्रेम बढ़ाने के लिये और कलह सदा के लिये मिटाने के लिये होनी चाहिये। लेकिन दुर्भाग्य से सुन्दर समाज का निर्माण अब केवल एक स्वप्नमात्र रह गया है। सद्गृहस्थ जीवन में नारी का रोल सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। फिर भी स्वयं के कर्त्तव्यपालन से उदारता से कल्याण सहज हो सकता है।

Prabhakar Mishra
Prabhakar Mishra
Reply to  Prabhakar Mishra
2 years ago

कल्याण तो स्वतः सिद्ध ही है।लेकिन मनुष्य कर्तव्यनिष्ठा को भुल गये है।विषमता आ गई है लोगों में।स्वधर्म पालन के लिये कष्ट सहन दिव्य गुण है,लेकिन लोग भोगेच्छा में पड़कर कर्तव्यच्युत हो जाते है।
“कमियाँ सब में होती है,लेकिन दिखती केवल दुसरों में है”
जब दुसरे का कर्तव्य देखा जायेगा तो स्वयं के कर्तव्य भुल जाना स्वभाविक है।

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