स्वतंत्रता का अर्थ है ‘स्व’ के लिए ‘तंत्र’ अर्थात अपनी व्यवस्था अपने लिए। लोग जो आज स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं उन्हें स्वतंत्रता का मूल्य पता नहीं होगा। जब व्यक्ति परतंत्र होता है तो उसके जीवन का एक मकसद रहता है कैसे भी करके इस गुलामी की बेड़ी को तोड़ना चाहता है।
स्वतंत्रता अपने आप में पूर्ण है। आजादी के पैरोकार नेल्सन मंडेला ने कहा है कि “स्वतंत्रता से मतलब मुझे कुछ भी करने की स्वतंत्रता से है” वहीं म्यांमार की नेता आँग सान सू की का कहना “फ्रीडम फार फीयर” मुझे भय से आजादी चाहिये। आज के मनुष्य पर ध्यान देंगे तो उसे “फ्रीडम फार वायलेंस” हिंसा से आजादी चाहिए। जीवन कही बाजार, ट्रेन या बस में रखे विस्फोटक या कहे आतंकवाद की भेंट न चढ़ जाय।
गुलामी शारीरिक हो या मानसिक किसी भी स्तर पर बुरी ही है। व्यक्ति विश्व में कहीं रहे उसे गरिमामय जीवन का अधिकार मिलते रहना चाहिए। किन्तु देखा यह जाता है किसी भी चीज की मुफ्त की चाहत में हमें अपनी स्वतंत्रता को गिरवी रखना पड़ता है यह मुफ्त का प्रचलन राजनीतिक पार्टियों द्वारा रचा चक्रव्यूह है जिसमें जनता को फसाया जाता है। यह खेल भारत में अंग्रेजों द्वारा खेला गया जिसको कांग्रेस पार्टी और क्षेत्रीय दलों द्वारा बढ़ाया गया।
नारी की स्थिति पर विचार करें तो जीवनरूपी नौका की दो पतवार में एक स्त्री , दूसरी पुरुष है। स्त्री जब गर्भवती हुई तो सुरक्षा के लिए पुरुष के पास गई और उसने स्वतंत्रता को गिरवी रख दिया। यदि आगे बढ़ कर विचार करें तो संघर्ष और सौंदर्य दो ऐसी चीज हैं जिसमें स्त्री ने सौंदर्य तो पुरुष ने संघर्ष चुना। नारी नाजुकता और सौंदर्य तक सीमित होती गयी जिसने उसकी मानसिकता को प्रभावित किया। पुरुष और समाज दोनों ने उसकी स्वतंत्रता को सीमित किया।
स्वतंत्रता कीमत मांगती है संघर्ष और बलिदान का, व्यक्ति के जागृत रहने का।
अब आप पर है कि स्वतंत्रता के 73वें वर्ष में आप कितने जाग्रत हैं, कितने संघर्षशील हैं, आजादी की कीमत आपकी इस मानसिकता पर भी निर्भर करेगी कि आप किसी विदेशी एजेंडे से प्रभावित हो कर अपनी संस्कृति, अपने देश और अपने लोगों के विरोध में खड़े हो जाते है या कि पक्ष में। तुलना भी तुलनीय से होती है, यहाँ तो सही को गलत से जोड़ने का चलन और अंग्रेज़ों को पितृ मानने की महत्वाकांक्षा स्वतंत्रता के महत्व को गिरा दे रही है।
आप स्वयं के साथ – साथ राष्ट्र के महत्व को भी समझेंगे, स्वतंत्र है तो स्वतंत्र आचरण करेगें। लोगों के साथ समस्त प्राणीयों की स्वतंत्रता का चिंतन मानस पटल पर चित्रित करते रहेंगे। जन मन गण मिलकर मातृभूमि को प्रेम करने के साथ ही साथ इसकी स्वतंत्रता बनाये रखने में एकता, अक्षुण्यता के साथ अखंड भारत के निर्माण में सहयोग करेंगी।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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Verry verry nice post.