आम चुनाव और लोग

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

चुनाव का अर्थ चयन या चुनने से है जिसमें स्वतंत्र चेतना और बिना दबाव शामिल हो। आम चुनाव भारत में आजादी के बाद सन 1950 से शुरू हुये। यह लोकतंत्र की एक अहम कड़ी है जहाँ “सिर तौले नहीं गिने जाते हैं” अर्थात सभी व्यक्तियों का वैल्यू समान होता है।

चुनाव के माध्यम से आम जनता वह सब पाने की अभिलाषा करती है जो एक राष्ट्र में साधारण नागरिक की बुनियादी जरूरत है। कश्मीर से कन्याकुमारी, सिलचर से पोरबंदर तक एक ही लहर, एक अच्छा नेतृत्व जो सबको लेकर विकास के मार्ग पर चले। लोगों का हित और राष्ट्र का हित हो सके। नेता से ज्यादा से ज्यादा अच्छे होने की कामना रहती है।

चुनाव एक तंत्र न बन जाय इसका खास ख्याल रखना होता है। चुनने का अर्थ किसी प्रकार का लालच या दबाव नहीं होना चाहिए तभी चुनाव अपने मकसद में सफल होगा।

दसवें चुनाव आयुक्त टीएन शेषन (1990-96) ने यह कर दिखया कि चुनाव में सुधार किया जा सकता है, वोटों की लूट को उन्होंने रोका, साथ ही भय विहीन चुनाव सम्पन्न हो इसके लिए सेना, पैरा मिलिट्री की उपलब्धता सुनिश्चित की।

उन्होंने ही बताया कि वह भारत सरकार के चुनाव आयुक्त नहीं बल्कि भारत के चुनाव आयुक्त हैं जो पूरी पारदर्शिता के साथ चुनाव को सम्पन्न करा सकते हैं और सबसे बड़ा बाहुबली चुनाव आयोग है।

भारत में आम चुनाव एक महोत्सव की तरह है, आमजन कहते है पहले मतदान फिर जलपान। लोकतंत्र में सत्ता परिवर्तन इसी के माध्यम से होता है। शांतिपूर्ण सत्ता परिवर्तन को आम चुनाव सुनिश्चित करता है।

यह  किसी खास जाति, धर्म, वर्ग के लिये न होकर समस्त भारतीयों का अधिकार भी है। आपके एक मत से देश खुशहाल हो सकता है, उसकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है। शांति, सौहार्द और भाईचारा का विकास भी हो सकता है।

धीरे-धीरे चुनाव में काफी सुधार हुये, अभी सरकारों से यही अपेक्षा है कि चुनाव आयोग को शक्ति सम्पन्न बनाएं, दंड देने का उसे अधिकार मिले जिससे दंतविहीनता दूर हो सके। अभी भी कुछ सुधारों की दरकार अपेक्षित है।

हर पांच साल बाद यह चुनाव बताता है कि भारत में जनता खुद मुख्तार है, वह अपना प्रतिनिधि स्वयं चुनती है। वह शासन में भागीदारी करती है। चुनाव के प्रति उदासीन रहना या यह सोचना कि मेरे एक वोट डालने से कुछ नहीं हो जायेगा। ऐसा नहीं होना चाहिए, यदि ऐसा सभी ने सोच लिया तब क्या होगा?  इस लिए सोचिये नहीं बूथ पर पहुँचिये तो आप भी वोट डालने जा रहे है न इस बार भी?

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