नारी कहती है उसे पुरुष बनना है,
पुरुष को नारी पर अधिकार बनाये रखना है,
पिछड़ा कहता है अगड़ा बनना है,
गरीब की आरजू है अमीर बनने की।
नेता कहता है ये जनता ने एक बार वोट क्या दे दिया लगता है खरीद लिया है। अकड़ और पकड़ और मजबूत करने की जुगत है। भूखों का पेट है कि श्मशान की आग जो ठंडी नहीं होती है। आरक्षित वर्ग को मलाई से मतलब है। एक बड़ा तबका कहता है कि ‘क्या दोगे तुम मुझे’? समय यह है कि “जात कुजात भये मंगता” मेरी तलाश मौज की है जो झोपड़े को जला बहुत तेज हंसा, न रहेगा बास न बजेगी बांसुरी।
मूल स्वभाव और स्वरूप से अंजान मानवता पूजा पद्धति मे बट गई, सबको चिंता है अपने आने वाले कल की कोई बीता याद नहीं करना चाहता कोई बीते कल से निकलना नहीं चाहता है बस आने वाले कल का ध्यान सब को है मगर आज का क्या? प्रेम, सदभाव, मानवता जैसी भावना दूसरे
सदी की लगती है इस सदी का विचार है “टाइम नहीं यार”
मैल कही का नहीं मिट रहा नई कजली जरूर लगा ले रहे।
क्या लगता है आप को कुछ न हो पायेगा? क्या शोर में सत्य को खो देंगे? सुख का मतलब दूसरे को पीछे छोड़ना और दुःख को स्वयं की शरीर की पीड़ा को माना जाय? जो हम देखना चाहते हैं उसे कोई नहीं देखता है वह अपने जमूरे के माध्यम करतब दिखा कर सब लूट लेना चाहता है। हम एक बार फिर ताली बजा कर घर चले जाते हैं और टेलीविजन देखते हैं और कहते हैं दुनिया गोल है। देख रहे हो तुम भूगोल इतिहास के साथ मिल कर अपने विरुद्ध षड्यंत्र रच रहा है जिसे विज्ञान देख कर अनदेखा कर दे रहा है।
हम फिर आसमान की ओर नजर उठाते हैं और कहते हैं हे भगवान फिर कब आओगे? तुम कब आओगे? मानवता मानव से निराश है वह सब की फिरकी जो लेता है।
Absolutely right
अहो शोभनम❗