अमेरिका ने अफगानिस्तान में जो धोखे का खेल खेला है, उसे पूरे विश्व ने देखा। कैसे 20 साल से प्रशिक्षित 20 लाख की अफगानी सेना अमेरिका के जाने पर पांच दिन भी प्रतिरोध नहीं कर पायी और 90 हजार तालिबानियों के आगे सरेंडर कर दिया।
खौफ का मंजर यह है कि राष्ट्रपति देश छोड़ कर भाग गये, आम जनता अपनी बहू – बेटियों की सुरक्षा के लिये देश छोड़ना चाहते हैं। वे प्लेन के पहिये में लटक कर जान गवां रहे हैं। तालिबान के अधिकार करते ही चीन ने लपक कर तालिबान की तरफ हाथ बढ़ाया है। अमेरिका के राष्ट्रपति बिडेन की बात सरासर झूठ निकली।
अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा चार देश अमेरिका, चीन, रूस और पाकिस्तान की सहमति और मदद से किया गया। काबुल एयरपोर्ट की भयानक तस्वीरें खुद ही बयां करती हैं कि अफगानी तालिबान से कितने खौफजदा हैं।
अफगानिस्तान का हाथ जिस तरह से चीन व पाकिस्तान ने पकड़ कर रखा और तालिबान पनपता रहा, यह अमेरिका, भारत और संयुक्त राष्ट्रसंघ देखते रहे। पाकिस्तान अमेरिका का वह कुत्ता है जो भीड़ में पैर पर काटता है और जिसकी पिक्चर अफगानिस्तान ने जारी कर दी। यही उसके लिए मुसीबत बनी।
ऐसे में वहाँ की सरकार के रहने का औचित्य ही नहीं है। अमेरिका वह बनिया है जो अपने हथियारों को आतंकवादियों को बेच रहा है। वामपंथी मीडिया मौन है, कैसे बोले दोनों एक ही धर्म के जो हैं, जिन्हें वह हमेशा से विक्टिम की तरह दिखाता रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने पल्ला झाड़ते हुऐ बोला कि हमारे सैनिक कब तक मरते रहें, मौजूदा हालात के लिए राष्ट्रपति अशरफ गनी जिम्मेदार हैं। अमेरिका का स्वार्थ है, साथ ही उसे चिंता थी कि अफगानिस्तान दूसरा वियतनाम बन गया है।
मौजूदा हालात को देखते हुए कह सकते हैं कि अमेरिका ने तालिबानी आतंकवादियों के आगे घुटने टेक दिए और गेम चीन के पाले में डाल दिया। चीन की नीतियां कामयाब हो गईं। एक देश पर आतंकवादियों ने बंदूक के दम पर जबरन कब्जा कर लिया।
मानवाधिकार वादी जिस तरह से ISIS के मामले में मौन थे उसी तरह अफगानिस्तान के मामले में मौन हैं। तालिबान को इतनी युद्धक सामग्री किस देश ने दिया, इस पर कभी चर्चा न होगी।
भारत के लिए दो तरह की चुनौतियां हैं। एक आतंवादी पड़ोस में सत्तासीन है, दूसरे अब शरणार्थियों की संख्या सीमा पर बढ़ेगी। भारत में रहने वाले कट्टर मुस्लिम और देवबंदी बहुत खुश हैं कि तालिबान पुनः लौटा है, अब अल्लाह के बन्दे शासन करेंगे। मुस्लिम यही नहीं सोच पा रहा है कि आखिर तालिबान किसकी गर्दन काट रहा है, जिन औरतों को सेक्स स्लेव बनाया जायेगा वह भी तो मुस्लिम ही हैं। मरने वाले वही और मारने वाले भी वही हैं।
अब भी आप समझते हैं कि इस्लाम कोई मजहब है तो आपसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं है। वास्तविकता यह है कि इस्लाम वह विचार है जो औरतों और सत्ता प्राप्ति के लिए बना है, यही शरीयत कहती है। अगर विश्वास नहीं है तो अलकायदा या ISIS को ही देख लें।
तालिबानी शासन पर विश्वभर के मुस्लिम खुश हैं। जो अफगानी नागरिक की तरह देश छोड़ने वाले मुस्लिम हैं, उन्हें इस्लाम से चिढ़ है लेकिन वह एक लफ्ज भी बोल दे कि गर्दन कट जायगी बिरादर। विश्व के जितने मुस्लिम हैं यदि उन्हें संरक्षण मिल जाय तो शायद 90% लोग इस्लाम का त्याग कर दें क्योंकि उन्हें इस्लाम की हकीकत पता है।
आतंकवाद का विचार इन आतंकवादियों को कुरान, हदीस, शरीयत से मिलता है। मुस्लिम जमात में इन्हें अल्लाह के बन्दे कहा जाता है और वे उनके आदर्श भी हैं। आतंकवाद पर रोक लगाने के लिए सिर्फ आतंकवादी संगठनों पर कार्यवाही पर्याप्त नहीं है बल्कि मजहबी किताबों को नष्ट कर करना होगा। यही आतंकवाद की मुख्य जड़ हैं। आप समझिये तालिबान का अर्थ है ‘विद्यार्थी’। वे इंसान तभी बनेंगे जब आसमानी किताबों से दूर होंगे।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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विश्व की आधे समस्याओं का जड़ इस्लाम है और बाकी बचे आधे का जड़ क्रिश्चियन हैं। इन्हें अपने धर्म और धर्म के लोगों में कोई बुराई नहीं दिखती दूसरी ओर इनकी प्रतिस्पर्धा हिन्दू धर्म से है जिसमें आधे हिंदुओं को सभी बीमारी अपने धर्म में ही दिखती है।
आपने सही लिखा है, जब तक ऐसी आसमानी किताबें इनके हाथों में रहेंगी तब तक यह नहीं सुधरने वाले।