भक्तमाल में इसका वर्णन है। श्रीकृष्ण का एक नाम रणछोड़ भी है और वो द्वारकाधीश से डाकोर भागे थे।
विजय सिंह नाम के परम भक्त डाकोर में रहते थे और साल में 2 बार तुलसी जी को अपने सर पर रख कर पति – पत्नी द्वारकाधीश पैदल दर्शन को जाते थे और तुलसी अर्पित करते थे।
72 साल की आयु में जब उनकी शारीरिक शक्ति जवाब दे गई तो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने सपने में उन्हें दर्शन देकर कहा कि तुम अब मत आया करो, पर विजय सिंह जी नहीं माने। तो भगवान ने कहा ठीक है। अगली कार्तिक पूर्णिमा को बैलगाड़ी लेकर आना और मैं तुम्हारे साथ चलूंगा।
विजय सिंह जी घबराये तो भगवान ने उन्हें दिलासा दिलाया और बोले तुम बस मंदिर की पीछे वाली खिड़की पर बैलगाड़ी लगा देना।
रात में विजय सिंह जी को नींद आ गई तो भगवान ने उन्हें उठाया, बोले कि बैलगाड़ी लेकर मंदिर के पीछे पहुंचो। भगवान ने मंदिर की खिड़की से विजय सिंह जी से कहा कि हाथ दो।
विजय सिंह जी ने हाथ दिया, भगवान श्रीकृष्ण उनका सहारा लेकर खिड़की से नीचे उतरे और विजय सिंह जी से कहा कि चलो। बैलगाड़ी अपनी गति से डाकोर चलने लगी। तब तक सुबह हुई और भगवान की मूर्ति को ना पाकर मंदिर में हंगामा हो गया। किसी ने बताया कि रात में विजय सिंह जी यहीं थे पर अब नहीं हैं।
पुजारी घोड़ों पर बैठ कर डाकोर चल पड़े। विजय सिंह जी को उड़ती हुई धूल और घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई दी। उन्होंने भगवान से कहा कि आ गए आपके रिश्तेदार। भगवान ने कहा कि तुम्हें बैलगाड़ी चलाना भी नहीं आता, लाओ मुझे लगाम दो और फिर क्या था, बैलगाड़ी अतितीव्र गति से चलने लगी।
घोड़े पीछे छूट गए। डाकोर पहुंच कर भगवान को थोड़ा ठिठोली सूझी। वो लगाम छोड़ वहीं बने एक नीम के पेड़ पर लटक गए। विजय सिंह जी ने जब देखा तो भगवान से कहा, प्रभु पुजारी आते ही होंगे।
भगवान ने कहा कि मुझे पास के गोमती सरोवर में छुपा दो। पुजारी आये और तलाशी शुरू की। कहीं कुछ नहीं मिला। लेकिन बैलगाड़ी पर भगवान का पीताम्बर छूट गया था जो पुजारियों को मिल गया। पुजारियों ने विजय सिंह को मारना पीटना शुरू किया, उनका शरीर रक्तरंजित हो गया और भगवान से देखा नहीं गया तो वो तालाब से निकले और बोले जितना तुम विजय सिंह को मार रहे हो, उतनी चोट मुझे लग रही है। देख लो तालाब, पूरा मेरे रक्त से लाल हो चुका है। पुजारियों ने भगवान से क्षमा मांगी और वापस चलने को कहा। तो भगवान बोले कि विजय सिंह से बड़ा भक्त तुम में से कोई नहीं, अब मैं यहीं रहूंगा। भगवान पुजारियों से बोले कि आज से 6 महीने बाद मेरा विग्रह तुम्हे श्री वर्धिनी बावली से मिलेगा।
उसे वहीं स्थापित करना, तब से डाकोर तीर्थ स्थल बन गया और भी वही द्वारकाधीश वहां स्थापित हैं।
जिस नीम की डाली पर भगवान श्री कृष्ण लटके थे, उसके पत्ते मीठे हैं बाकी सारा नीम कड़वा है।
जय गिरधर , जय गोपाल 🙏🙏
अद्भुत कथा है। 👌👌