आस्था पर चोट

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
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हिन्दू धर्म को सॉफ्ट टारगेट क्यों बनाया या समझा जाता है, इसके पीछे का मूल कारण है – चर्चा में आना, नेता बन जाना, अपने जाति-वर्ग और पंथ में प्रधान बन जाना।

इसकी वजह राजनीतिक अभिप्रेरणा ही है। हिन्दू धर्म और आस्था का मजाक बनाने वाले के साथ सही उपचार नहीं किया जाता है। लोगों में तनिक भी भय नहीं है कि हिन्दू धर्म को गाली देने पर उसे कोई सजा देगा।

उल्टा गाली देने पर तो उसे पुरस्कार मिलता है। भारत का राजनीतिक कम्युनिज्म और सामाजिक कम्युनिज्म का खेल सेक्युलर वाला ही है जो सिर्फ हिंदुओं को धर्म भ्रष्ट करने के लिए गढ़ा गया था।

उच्च शिक्षा लेकर भष्ट्राचार करो, घोटाले करो परन्तु दोषी हिन्दू धर्म है। समाज में असमानता है, कलेक्टर करोड़ो दहेज ले पर दोषी हिन्दू धर्म है।

राजनीति, फ़िल्म, साहित्य, समाचार पत्र/चैनल आदि में हिन्दू धार्मिक आस्थाओं पर चोट करने का प्रचलन रहा है। समाज में एक नैरेटिव गढ़ा गया कि किसी भी  समस्या का कारण हिन्दू धर्म है, ब्राह्मण है और वेद-शास्त्र हैं।

इस कारण के पीछे सेक्युलर राजनीति रही है। दूसरे हिन्दू समाज में से किसीने इसपर कड़ी प्रतिक्रिया या आलोचना नहीं की। इसलिए जिसका जैसे मन किया हिन्दू मन और धर्म के साथ छेड़छाड़ किया।

किसी ने मुस्लिम या ईसाई कुरीति पर फ़िल्म बनाने का दुस्साहस क्यों नहीं किया? नबी का चित्र बनने में क्या दिक्कत है? ईसा को सूट-बूट में क्यों प्रर्दशित नहीं किया गया? यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कैसे नहीं आता है? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हिन्दू आस्था से छेड़छाड़ करने भर में ही है?

जिन मजहब-पंथ का धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है, जो धर्म परिवर्तन, शोषण और आतंकवाद को साथ लेकर चलते हैं; उसके मानने वाले भी उन्हें सीख देने का प्रयास करते हैं जिनका उद्घोष ही ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का है।

हिन्दू का विश्वास/आस्था अकेले मनुष्य में ही नहीं है, बल्कि वह जानवर, पंक्षी, पेड़-पौधे यहाँ तक कि उसके प्रयोग में आने वाली झाड़ू को भी पूजता है। क्योंकि उससे उसके जीवन में स्वच्छता का समावेशन होता है। ऐसे धर्म की तुलना ह्यूमन बम बनाने वालों से किस प्रकार से हो सकती है?

हिंदुत्व से समस्या परम्परावादी राजनीति को है क्योंकि अभी तक सत्ता ‘ढाई जाति’ का खेल रही है। हिंदुओं की डेढ़ बड़ी जाति और मुस्लिमों को मिलाकर लालू, मुलायम, शिबु सोरोन या इनके बच्चे मुख्यमंत्री बन जाते थे। अब लड़ाई एक जुट होते हिन्दुओं से है।

जाति की सर्वोच्चता धूमिल होनी शुरू हो गई है। हिन्दू-हिंदुस्तान के उभार से दिल्ली का सेक्युलर कौवे जो अभी तक मरे हिंदुओं की मांस खा रहे थे, जागृत हुए हिन्दू से कैसे मांस खाये। इसी लिए भारत जोड़ो चल रहा है।

नोट: लेख का मुख्य चित्र सदियों पहले किसी मन्दिर में उकेरा गया था, ऐसा बताया जाता है।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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