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नारी का महत्व

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Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

स्त्री वह है जिसने सृष्टि धारण किया है। धरती स्त्री लिंग और आत्मा भी स्त्री लिंग। एक स्त्री का एक पुरुष के जीवन में क्या महत्व है? पुरुष का शिशु के रूप में जन्म से लेकर पालन और शुरुआती शिक्षा उसीकी देन। हमने उसे माँ कहा। माँ का बहुत महत्व है, एक हजार पिता के बराबर मां होती है, इतनी महानता कि उसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती।

विचार स्त्री का दूसरे रूप ‘पत्नी’ पर लेकिन उससे पूर्व ‘प्रेयसी’ रूप की चर्चा हो जाय क्योंकि आज कल यह रिश्ता प्रचलन में है। ‘प्रेयसी’ के लिए ‘प्रेमी’ कुछ भी करने को तैयार रहता है बिना किसी किचकिच के।

‘पत्नी’ वह है जो अधूरे पुरुष को पूरा करती है उसका माता की तरह ख्याल रखती। माता की कईं संताने हो सकती हैं किंतु पत्नी का सिर्फ एक भरतार है।

पुरुष विश्व युद्ध, धर्मयुद्ध करता है किंतु नारी को नहीं लांघ पाता है। नारी जीवन रूपी गाड़ी का वह दूसरा पहिया है जिसके बिना जीवन चल नहीं सकता है इसीलिये भगवान गीता में कहते हैं कि “मैं गृहस्थ आश्रम हूँ”। यह गृहस्थ आश्रम ही अन्य तीनों आश्रमों का आधार है। कल्याणकारी शिव स्वयं को अर्धनारीश्वर के रूप में व्यक्त करते हैं जबकि ब्रह्म न पुल्लिंग हैं न ही स्त्रीलिंग।

नारी को पुरुष कई हजार वर्षों से पढ़ रहा है फिर भी पढ़ना जारी है, जहाँ तक समझ का सवाल है वह अपने कई शोध में कई तरह का निष्कर्ष निकाला और यह भी निरंतर जारी है।

पुरुष का प्रेम क्या है? नारी के फेरे लगाता है, वह साथ नहीं रहना चाहता फिर भी रहता है। कहता है विवाह ने स्वतंत्रता खत्म कर दी है इस परतंत्रता की बेड़ी हटाता नहीं है। हेकड़ी पुरुष होने की बहुत है क्योंकि प्रकृति ने उसे नारी से अधिक ताकत प्रदान की है।

एक कल्पना करें बिना नारी की दुनिया कैसी होगी? कैसा जीवन होगा! दुनिया नीरस नहीं हो जायेगी। मन में वासना दम तोड़गी, पुरुष जीवन जीना छोड़ देगा। जीवन के लिये ऐहिक आनंद, उत्सव जरूरी है। वासना कार्य के लिए प्रेरित करती है। वासना की तरंग पर निर्भर करता है कि पुरुष कितना नवीन है।

नारी शास्त्र, नारी पुराण, नैतिकता और चरित्र की बात बिना नारी के किससे करेंगे? एक बात जानते हैं कि पुरुष को सर्वाधिक प्रेम उसकी माँ करती है तो वहीं नारी को उसका पति।

जीवन के ऐसे उम्र पर जब पति-पत्नी की काम भावना लगभग खत्म हो जाती है तब दोनों एक दूसरे के सबसे अच्छे मित्र हो जाते हैं। पत्नी के लिए पति पुत्र की तरह हो जाता है। उसका स्वयं का स्वास्थ्य भले अच्छा न हो लेकिन उसके पति की खाने की चिंता लगी रहती है। स्त्री और पुरुष का सम्बंध अद्भुत है, इसमें कौन बड़ा कौन छोटा।

सम्बन्धों में प्रेम की जगह जब अहंकार आकर लेने लगता है तब मैं और तुम में रिश्ते बिखरने लगते हैं। जीवन को हम कितना रोमांचक और प्रफुल्लता से पूर्ण करते हैं, यह हम ही निर्भर करता है।

एक बार दूर जंगल में एक स्त्री और एक पुरुष मिले, वह दोनों के साथ में समय बिताते दिन कब बीत जाता, पता नहीं चलता। जब दोनों का प्रेम एक हो गया तब उन्हें साथ रहने के लिए एक झोपड़े की आवश्यकता हुई, दोनों ने मिल कर बना लिया। नारी ने उसे अच्छे से साफ, सवाँर कर बहुत सुंदर बना दिया। नारी गर्भवती हो गयी, पुरुष ने कहा तुम घर में आराम करो सभी काम मैं करता हूं। कुछ महीने बाद एक छोटा पुरुष आ गया। पुरुष के जीवन में कई परिवर्तन आये। नारी ने उसे पिता बना दिया। दोनों के बीच का धर्म था विश्वास और प्रेम। पुरुष जब काम पर जाने लगता तब उसे अपनी पत्नी जैसे पहले दिन मिली थी वही भाव लेकर चलता जब तक कि वह लौट कर नहीं आ जाता।

एक स्त्री पुरुष के जीवन में देखा जाय तो क्या है भोजन, एक छत कुछ बच्चे और उत्सवपूर्वक दिनों का निर्वाह। उनके अगल – बगल जब लोग बढ़ने लगते हैं तब उसी के साथ नियम और कानून भी। पति – पत्नी साथ-साथ लगभग 70 साल रहते हैं। सोचने वाली बात है वह कभी ऊबते नहीं है बल्कि और जीना चाहते हैं। वाह रे नारी! तुमने पुरुष रूपी जानवर को सभ्य बना दिया, किंचित ईश्वर का यही मंतव्य रहा होगा।

स्त्री पुरुष के सम्बंध गोते लगाने तब शुरू हुए जब लोभ-लालच रूपी उपभोग वाली भौतिक संस्कृति को बाजार ने खरीद लिया। स्त्री को उभारा गया उसे उपेक्षित और पीड़ित कह कर पुरुष को पीड़क के रूप प्रस्तुत किया गया।

दोनों जंगल के उस प्रेम को भूल गये हैं जीवन की खुशहाली का पर्याय पैसा बन गया। दोनों के बीच को प्रेम को या कहें नारी के प्रेम को बाजार ने व्यापार बना लिया। वस्तुओं का तो महत्व बढ़ा लेकिन व्यक्तियों का गिरता चला गया।

पुरुष ममत्व रूपी नारी चाहता है, नारी को पुरुष जाति पर अविश्वास है। दोनों की बीच की डोर सही करने के लिए बहुत से दौर हुये लेकिन समस्या है हम तुमसे कम नहीं, आप ने समझा नहीं। दोनों के प्रेम के बीच व्यापारी अपनी दुकान लगा लिए हैं। अब नारी पर प्रेम की गली आती है या दुकान की।


नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।

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अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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