मनुष्य और गणित साथ – साथ विकसित हुए लेकिन मानवता की गाथा में गणित की यात्रा पीछे छूट गई। हम आज जिस विकास की बात करते हैं हकीकत में वह गणित पर ही आधारित है।
मानव ने पहले – पहल गिनना कब शुरू किया यह तो पता नहीं चल पाता है लेकिन इतना निश्चित है कि अंकों के गणना की शुरुवात मनुष्य ने हाथ, पैर और अंगुलियों से की होगी। जैसे दो हाथ, दो पैर और बीस उंगलियां।
सबसे पहले अंकों को लिखने की शुरूआत बेबिलोनिया (इराक) में मिट्टी पर हुआ। समकोण बनाने के लिए मिस्र में रस्सी की गांठ का प्रयोग किया जाता था। पहली भुजा 3 गांठ लम्बी, दूसरी भुजा 4 गांठ, तीसरी 5 गांठ लम्बी… बिना ज्यामितीय ज्ञान के आज से 2500 वर्ष पूर्व मिस्र के पिरामिड नहीं बन सकते थे।
मिस्र से दूर चीन की ‘द ग्रेट वाल ऑफ चाइना’ का पहला पत्थर आज से 2500 वर्ष पहले बिना गणतीय जानकारी के रखना संभव नहीं होता। तब चीन में गणना बास के टुकड़ों से होती थी।
गणित में क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ भारत में, जिसने दुनिया के गणित को ही बदल कर रख दिया।
1 से 9 तक के अंकों को लिखने की शुरुआत भारत में हुई। 10 को एक अंक के रूप में भारत में लिखा गया। उस से पहले मिस्र और बेबीलोन के लोग शून्य की जगह खाली स्थान छोड़ देते थे। भारत ने 10 को दसवें अंक का दर्जा दिया। इस शून्य के आविष्कार ने गणित को मानो पहिया लगा दिया। लेकिन ध्यान दें तो यह शून्य भारत में दार्शनिक स्तर पर सनातन काल से ही था। शून्य से ही सृष्टि मानी जाती है जो अंततः शून्य में ही मिल जायेगी। शून्य को ही पूर्ण माना गया है।
पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।– ईशोपनिषद्
अर्थात, पूर्ण से पूर्ण निकालने पर जो पूर्ण ही शेष रहे पूर्ण में पूर्ण जोड़ने पर भी पूर्ण रहे वही ब्रह्म है।सातवीं सदी में ब्रह्मगुप्त ने जो शून्य की गणना का सिद्धांत दिया वह आज भी प्रचलित है जैसे,
- 1 में 0 जोड़ने पर 1 ही रहेगा
- 1 में से 0 घटाने पर 1 ही रहेगा
- 0 से गुणा करने पर 0 ही रहेगा।
लेकिन यहाँ एक चीज रह गयी थी कि जब शून्य से किसी चीज को विभाजित करेगें तब क्या होगा? इसका उत्तर 12वीं सदी में गणितज्ञ भास्कराचार्य ने दिया उन्होंने बताया शून्य से भाग देने पर परिणाम होगा “अनंत”! यह अनंत भी हिन्दू दर्शन में बहुत पहले से था जिसमें ईश्वर का स्वरूप अनंत बताया जाता है। विष्णु को अनंत नाम से भी संबोधित किया गया है।
एक फल को एक बार काटेंगे तो दो हो जायेगा इसी तरह दो को चार, 4 को 8, 8 को 16 और फिर 32 के क्रम में बढ़ता चला जायेगा। आखिर में फल जब शून्य हो जायेगा फिर उसको विभाजित नहीं किया जा सकता। जब उस अविभाजित टुकड़े को काटेंगे तो अनंत टुकड़ा होगा जिसको गिनना संभव नहीं होगा।
भारत में दार्शनिकों ने अंकों को व्याख्यायित किया कि वह सिर्फ जोड़ने, घटाने के लिए ही नहीं बल्कि वह अदृश्य और अमूर्त इकाइयां भी हैं। वह मानवीय कल्पना तक सीमित न होकर स्वतंत्रत हैं। यही कारण था जो भारत ने दुनिया को ऋणात्मक संख्या का सिद्धांत दिया इसे वह “ऋण” कहते थे इसी शब्द से ऋणात्मक अंक बना। जैसे: 3 में से 4 घटाने पर -1 होगा। यह भारत भूमि पर हुआ। समीकरण का प्रयोग यूनानी, चीनी, बेबीलोन वासी अपने – अपने तरीके से कर रहे थे।
त्रिकोणमिति: जब चांद आधा होता है तब पृथ्वी और सूर्य के बीच का कोण 1° का सातवां हिस्सा है। केरल के गणितज्ञ माधव ने सिद्ध किया कि संख्या को अनंत टुकड़ों में तोड़ा जा सकता है या अनंत टुकड़े आपस में जोड़े जा सकते हैं। 0 और 1 के बीच एक संख्या छुपी है लेकिन वह भी अनंत है।
π (पाई) का मान छठी सदी में आर्यभट्ट ने 3.1416 बताया। 15वीं सदी में माधव ने π को व्यास एवं परिधि का अनुपात बताया। मोड़ या घुमाव को समझने के लिए π की आवश्यकता होती है।
बीज गणित: अरबों की देन है। बेबीलोन के लोग घण्टे को 60 मिनट और 60 मिनट को 60 सेकंड में विभाजित किये तब भारत में घटी और पल का प्रचलन था।
यद्यपि बीजगणित की शुरुआत भारत से बाहर हुई लेकिन बीजगणित का विकास भारत में खूब हुआ जिसके कई नियम भास्कर की लीलावती में हैं जो आज भी चलन में हैं।
भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी में कभी पीछे नहीं रहा है, भारत की ऊर्जा बर्बर अरब, तुर्की फिर लुटेरे अंग्रेजों से संघर्ष में बर्बाद गई और जब भारत स्वतंत्र हुआ तब प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को पूर्णतया खत्म कर अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का सूत्रपात कर दिया गया।
फिर भी आज के समय में अपेक्षाकृत कम संसाधनों और मूल की कमी के बाद भी हमारे अनुसंधान करने के गुण विज्ञान प्रौद्योगिकी को नित नये आयाम दे रहे हैं जिसमें इसरों की उपलब्धियां सराहनीय हैं। नासा के 37 फीसदी वैज्ञानिक भारतीय हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि भारत में वामपंथी, भीमटे पूछते हैं कि भारत ने विश्व को क्या दिया?
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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650 करोड़ साल पहिले ही हिन्दी गणित आदि का ज़ान था भारत में?
इसका क्या मतलब है 650 करोड़ वर्ष?