भारत की मानसिक दक्षता गजब की है, कल तक रोटी का रोना रोने वाला, मुफ्त का अनाज खाने वाला सेकुलर हिन्दू कहता है मन्दिर से क्या होगा? पेट भरेगा? उत्तर के लिए वह आज भी तिरुपति बालाजी, केदार, बद्री, पुरी, द्वारका जाकर देख ले। यह मंदिर कैसे आध्यात्म के साथ – साथ रोजगार सृजन और व्यापार को भी बढ़ावा दे रहे हैं।
प्रचीन भारत में काशी, मथुरा, कांची, उज्जैनी, मदुरै क्या बड़े व्यापारिक केंद्र नहीं थे? 5वीं सदी तक अयोध्या बहुत ही महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था, उत्तरापथ मार्ग यहीं से जाता था। प्रयाग मुगल काल तक बड़े व्यापारिक नगर में रहा है। प्रयाग में गंगा – यमुना के संगम से एक प्रकार से स्थल मार्ग, उत्तर भारत का मध्य भारत से अवरुद्ध होता था। इसे जोड़ने के लिए गंगा पर पतवारों का पुल बांधा जाता था जो बरसात के महीने को छोड़ कर चलता ही रहता था।
प्रयाग धार्मिक नगरी के साथ – साथ व्यापारिक बफर केंद्र की भूमिका में रहा है। इन धार्मिक केंद्रों का सबसे बढ़कर शिक्षा में योगदान रहा है। चाहें वह भारद्वाज का विश्वविद्यालय हो या काशी के गुरुकुल। आज भी बच्चों का जहां भी उनयन संस्कार होता है तो प्रतीकात्मक रूप से बच्चा तख्ती लेकर कुछ पग काशी गुरुकुल के लिए शिक्षा हेतु बढ़ता है जिसे बाद में मामा वापस ले आते हैं।
क्या आपको याद है जब देश पर आक्रांताओं के लगातार आक्रमण हो रहे थे, न कोई प्रधान बचा था, न कोई संविधान था और न मीडिया ही थी। मौत की चीखों के बीच कहीं माँ, बहन, पत्नी, पुत्री का बलात्कार सन्मुख किया जा रहा था, दूसरी ओर लोगों को तलवार के दम पर धर्मांतरित किया जा रहा था। उस समय आपको धर्म की रक्षा की प्रेरणा किसने दी? जीने, संघर्ष करने का विश्वास किसने जगाया? आपकी आत्मा को किसने जागृत रखा?
अरे! यही कार्य आपके पितर राम – कृष्ण ने किया, यही कार्य काशी, कांची, उज्जैनी, मदुरै ने किया। आपको जीवित रहने का साहस दिया कि चलो आज हरिहर की इच्छा यही है, किन्तु एक दिन समय पुनः लौट कर आयेगा। यही इतिहास वर्तमान बन पुनः जीवित होगा। वही राम, कृष्ण, शिव की अलख इस धरा पर जागृत होगी। भारत शारीरिक गुलामी और मानसिक गुलामी से निकल कर पुनः आत्मचिंतन को अग्रसर होगा।
आज की गरीबी और बेकारी का कारण आप अपने अतीत में खोज सकते हैं। हम प्रबुद्ध और जागृत लोग हैं जो अपनी दासता की बेड़ियां काटने में लगभग 800 वर्ष लगा दिए।
विरोध आपका अधिकार है किन्तु राजनीतिक वैमनस्य के लिए आक्रांताओं के वंशजों के पक्ष में तो नहीं खड़ा होना चाहिए, स्मरण रखना चाहिए कि आपके कारण ही 800 वर्ष लग गये दासता की बेड़ियां काटने में।
भारत के जिस सहिष्णुता की दुहाई आज म्लेच्छ भी दे रहे हैं, उसके मूल में भी राम, कृष्ण और शिव ही हैं। मक्का की भूमि पर आज मुस्लिमों के ही फिरके नहीं रह पाते, तब अन्य मतावलंबियों की बात बेमानी होगी। वेटिकन और इजरायल के उदाहरण आप के पास हैं, कितने अन्य धर्म के लोग आबाद हुये हैं।
इतिहास में इतना तो मानते होंगे कि भारत पर अरबो, मुस्लिमों और मुगलों का आक्रमण हुआ था? हमारे धर्मग्रन्थ तब के हैं जब इस्लाम पैदा भी नहीं हुआ था। वही ग्रन्थ काशी, मथुरा और अयोध्या का वर्णन कर हैं। अब यहां विचार करने का विषय हैं कि उन्ही धर्म स्थलों के पास मस्जिद कैसे बन गयी? भारत में अन्यत्र भी तो बहुत स्थान था।
इसका एक बड़ा कारण था भारत के मन को पराजित करना जो ध्वंस मन्दिर, टूटी पताका के बाद भी खड़ा था। जो कहता था कि तुम कितने मन जनेऊ जलाओगे, कितनों का कत्ल करोगे? हम फिर उठेंगे, इस विश्वास को कोई इस्लाम नहीं तोड़ सकता।
आज आप यदि राजनीतिक पूर्वाग्रह से न निकलेंगे तो उन्ही पूर्वजों की तरह कोई मुगल और अंग्रेज गुलाम बना लेगा और बतायेगा कि तुम्हारी पैदाइश चपटी धरा पर बंदर से हुई है।
यह भारत है, सनातन धर्म ही हमारी विविधता को बढ़ाता है, हमें यूरोप, अमेरिका, मध्यएशियाई लोगों से अलग करता है। भारत का वैज्ञानिक दर्शन तार्किक जीवन प्रणाली है किन्तु आज अंग्रेजी प्रभाव में लोग ऐसे काले अंग्रेज बन गये हैं कि अपनी मातृभूमि, धर्म और संस्कृति को गाली देकर अमेरिका और लंदन का वीजा चाहते हैं जिससे अकेले का पेट भर सके।