पंच महाभूतों में जल तत्व सबसे महत्वपूर्ण और भारी है, इसके बिना ग्रह तो हो सकता है लेकिन उसपर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।
धरती पर जल लगभग 71 प्रतिशत है जिसमें से पीने योग्य मात्र 3 प्रतिशत जल में से भूमिगत जल 0.5 प्रतिशत मात्रा में है।
मनुष्य के शरीर में 60% जल रहता है मस्तिष्क में 85%,रक्त में 79% और फेफड़े में लगभग 80 प्रतिशत जल कि मात्रा होती है। इस धरती का सबसे बड़ा संसाधन जल है। हीरा, सोना, यूरेनियम, एंटीमैटर जिसे आप महंगी धातु समझ रहे हैं वह भी पानी की तुलना में कुछ भी नहीं हैं क्योंकि इन महंगी धातु के बगैर जीवन है लेकिन पानी के आभाव में बिल्कुल भी नहीं।
रहीम दास कहते हैं :
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
पानी को बचा कर रखिये। बिना पानी सब खाली हो जायेगा। पानी खत्म होने से मोती, मनुष्य और (आटा) भोजन तीनों नहीं हो पायेगा।
बूंद – बूंद है कीमती रखो नीर संभाल।
होगा जीवन अन्यथा, तेरा बहुत मुहाल॥
जल की बूंद संभालना पड़ेंगा नहीं तो यही बूंद धरती पर मनुष्य का एक दिन इतिहास लिख देगी।
जल आज है और कल भी, बिना जल आज के साथ कल भी नहीं रहेगा। शास्त्र कहते हैं सभी खाने योग्य चीजें अन्न हैं और सभी पीने योग्य चीजें जल। यजुर्वेद में जल को समस्त रोगों की औषधि कहा गया है।
शरीर का जल तत्व ही आपको शक्तिशाली और दिव्य बनाता है। यह सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा को सोख लेता है।
भारत में जल संरक्षण का प्राचीन काल से महत्व दिखता है, जल में देवत्व का निरूपण है। पवित्र करने से लेकर कहा जाता है कि जिस व्यक्ति का पानी मर गया वह किस काम है।
आज बड़े – बड़े शहर कंक्रीट का जंगल बना दिए गए हैं। जिसमें मनुष्य को एक कबूतर खाने अर्थात अपार्टमेंट में रख दिया गया है। उसमें जीवन भी चलता जाता है क्योंकि वहां भी जलापूर्ति हो रही है। आपने कभी सोचा है कि जब जल नहीं होगा तो आज जिसे आप अपने सपनों की नगरी और करोड़ो का महल समझ रहें हैं, उसकी कीमत कौड़ी भर भी नहीं रह जायेगी।
जिस प्रकार से आधुनिकीकरण में जल को बर्बाद किया जा रहा है, आप कल्पना करिए मात्र तीन दिन भूमि से जल न मिले तो इन बड़े – बड़े शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली, लंदन, न्यूयार्क, पेरिस आदि का क्या होगा?
करोड़ो की सम्पति बंजर हो जायेगी शहर वीरान हो जायेंगे। विश्व इतिहास में हम पढ़ते हैं कि कितनी ही ऐसी सभ्यता ऐसी थीं जो नदी तट पर विकसित हुईं और नदियों के धारा बदल जाने से वह सब नष्ट हो गयी। आज भी कई खण्डर हो चुकी या रेत में दब चुकी सभ्यता भी हमें दिखाई पड़ती है।
मनुष्य को जो चीज सहज मिल जाती है, उसका महत्व नहीं समझ पाता। वह दुर्लभ की तलाश में ही जुटा रहता है।
प्रश्न, आज की पीढ़ी और व्यवस्था से है कि नदी और भूमिगत जल का विकल्प हमारे पास क्या है? विज्ञान के पास कोई अल्टरनेटिव दूर – दूर तक नजर नहीं आता है और ऐसी स्थिति में भी आप इस जल को यूँ ही बह जाने देते हैं।
बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर में आज भी ऐसे गांव हैं जहां के लोगों की एक महत्वपूर्ण तमन्ना है कि उनका खुद का हैण्डपम्प हो जिसमें पानी निकलता रहे, वह सूखे नहीं।
जैसलमेर से ही मेरे एक मित्र हैं, मैंने उससे पूछा कि आप अधिकारी क्यों बनना चाहते हैं? उन्होंने कहा कि हैंडपंप लगवाना है। मैंने कहा ये कौन सी बड़ी बात है? उन्होंने उत्तर दिया : मित्र, ऐसा नहीं है। मेरे पिताजी ने हैण्डपम्प नहीं लगवाया है। मेरी बहनों को दूर जा कर पानी लाना पड़ता है।
आप समझिये, जिस पानी को आधुनिक जीवन शैली में शहरों में ऐसे ही बर्बाद कर देते हैं, वह किसी को जीवन और खुशियां भी दे सकता है।
पानी आपका या मेरा अधिकार नहीं है बल्कि जरूरत है, इसे संरक्षित रखें। कम से कम व्यर्थ होने दें क्योंकि जीवन का आधार जल ही है।
पानी मल्टीनेशनल कंपनियों का कारोबार हो सकता है लेकिन वह पानी का वैकल्पिक प्रबन्ध नहीं कर सकतीं है, वह तो हमारे हिस्से के पानी से कारोबार करती हैं। मिनरल वाटर, वाटर प्यूरीफायर जल रहने पर ही काम करता है। जब जल ही नहीं होगा तब ये जल आपूर्ति नहीं कर पायेगी।
प्राचीन भारत में जल को वरुण देवता कहते थे। गांव में बुजुर्ग आज भी एक बाल्टी पानी में नहा के कपड़े धो लेता है। जल को लेकर पुराने लोग जागरूक थे, आज हम आधुनिक हैं, सोचते हैं कि पानी न होने पर कंपनियों को आर्डर दे कर मंगा लेंगे क्योकि हमारे पास पैसा है।
जल के महत्व को समझिये अधिकतम प्रयोग पर न्यूनतम बर्बाद करिये। जब जल नहीं होगा तब हमारा कल भी नहीं होगा।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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धन्यवाद, महानुभव! बहुत उपादेय लेख है। जल संरक्षण अपरिहार्य है, तदुपरि सचेतनता जगाना भी अत्यावश्यक है; ये सांप्रतिक समय की सबसे बड़ा आह्वान है।🙏
शहरीकरण की आधुनिक शैली जल की महत्वा और सृजनात्मक शक्ति को समझ नहीं रहे है। यदि सबसे बहुमूल्य कुछ भी है तो वह जल है।