माँ की सीख

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Ankush Pandey
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सीखने के प्रयास में

अभी कैसे मैं रुक जाऊँ,
अभी तो राह अधबर है।

सीख माँ की याद आती,
लगता मुझको जब भी डर है। 

माथे पर हाथ रख कर,
कुछ यूँ था समझाया।

फिकर कैसी भी न करियो,
तेरे साथ रघुबर है।

(प्रेरक पंक्ति दिनेश रघुवंशी जी की रचित कविता है)

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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