अभी कैसे मैं रुक जाऊँ,
अभी तो राह अधबर है।
सीख माँ की याद आती,
लगता मुझको जब भी डर है।
माथे पर हाथ रख कर,
कुछ यूँ था समझाया।
फिकर कैसी भी न करियो,
तेरे साथ रघुबर है।
(प्रेरक पंक्ति दिनेश रघुवंशी जी की रचित कविता है)
अभी कैसे मैं रुक जाऊँ,
अभी तो राह अधबर है।
सीख माँ की याद आती,
लगता मुझको जब भी डर है।
माथे पर हाथ रख कर,
कुछ यूँ था समझाया।
फिकर कैसी भी न करियो,
तेरे साथ रघुबर है।
(प्रेरक पंक्ति दिनेश रघुवंशी जी की रचित कविता है)
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