विवाह एक ऐसा बंधन है जिसमें शरीर दो और जान एक हो जाती है, दोनों का द्वैत भाव अद्वैत में बदल जाता है। यह बंधन एक जन्म का न होकर सात जन्मों का होता है, ऐसा कहा जाता है।
विवाह शब्द की व्युत्पत्ति ‘वि’ उपसर्ग पूर्वक वहन करना अर्थ वाली ‘वह्’ धातु से ‘घञ्’ प्रत्यय लगाकर हुई है। अर्थ है वि= विशेष प्रकार से, वाह= वहन करना।
विवाह कोई समझौता नहीं है, इसमें मात्र दो लोग (पति, पत्नी) एक नहीं होते हैं अपितु दो परिवार एक हो जाते हैं। पूर्व में दो गांव तक एक हो जाते थे।
इसी विवाह की चर्चा इस लेख में हम करेंगे।
सनातन हिन्दू धर्म में आठ प्रकार के विवाह मिलते हैं, जिसमें से चार प्रकारों को मान्यता मिलती है- ब्रह्म, आर्ष, दैव और प्राजापत्य वहीं चार अन्य गान्धर्व, आसुर, राक्षस और पैशाच हैं। चार मान्य विवाह में ब्रह्म विवाह को श्रेष्ठ माना जाता है, जिसका प्रचलन आज है। कन्या का पिता वर पक्ष को अपने घर आमंत्रित करता है। यथाशक्ति उपहार के साथ लक्ष्मीरूपी कन्या का दान विष्णुरूप वर को करता है और वर कन्या का पाणि (हस्त) ग्रहण करता है, तदुपरांत सप्तपदी होती है। इसी कारण विवाह को ‘पाणिग्रहण संस्कार’ भी कहते हैं।
गान्धर्व विवाह में लड़की लड़का पहले से सहमत रहते हैं, उनके पूर्व में सम्बन्ध बने रहते हैं। इसमें माता-पिता की सहमति की आवश्यकता नहीं रहती है। पैसा लेकर विवाह करना आसुर विवाह है। युद्ध के मैदान में या जीते गये क्षेत्र से कन्या को घर लाना राक्षस विवाह है। सोती हुई कन्या से या जबरदस्ती करने के बाद सजा से बचने के लिए जो विवाह किया जाता है वह पैशाच विवाह है।
कुछ विशेष प्रकार के अन्य विवाह का प्रचलन भी है, जैसे गोड़वा जनजाति में “दूध लौटाना” ममेरे या फुफेरे भाई के साथ। गोंड जनजाति में “भगेली विवाह” लड़की और लड़के की सहमति से होता है। इसमें कन्या प्रेमी के घर भाग कर जाती है। इसी जाति में लड़की वाले लड़के के घर बारात लेकर जाते हैं।
लमसेना या घर जमाई विवाह कमार जनजाति में है। विधवा, परित्यक्ता या पुनर्विवाह को ‘चूड़ी पहनना‘ कहा जाता है, इसमें देवर भाभी को चूड़ी पहना सकता है।
अब कुछ सुंदर विवाह का वर्णन जिसका विधान ने ब्राह्मणों ने गरीब वर्ग के लिए किया था जो शुद्र वर्ग में भी प्रमुखता से प्रचलित रहे हैं। विवाह में सादगी रहे, लड़की वाले पर भार न बने, यह ऐसा विवाह था।
“पावपुजी” इस विवाह में कन्या का पिता कन्या लेकर वर के घर जाता था, वहीं विवाह संपन्न कर पिता यदि कन्या बालिग है तब उसे ससुराल में छोड़ आता था और यदि नाबालिग है, तब उसे वापस घर ले आता था और बालिग होने पर उसका गौना (विदा) कर देता था।
एक और विवाह जिसका प्रचलन शुद्र वर्ग में अधिक रहा है, यह विवाह बहुत विशेष है “कुँवर धत” उतरना। इस विवाह में बिना विवाह के लड़की और लड़का साथ रहने लगते हैं, उनके बच्चे होते हैं और उन्हें मान्यता भी रहती है। बस इनके घर कोई विवाह तब तक नहीं हो सकता जब तक यह अपना विवाह न कर लें।
इस विवाह को आगामी विवाह कह सकते हैं या भविष्य का विवाह भी क्योंकि लड़की और लड़का साथ रह रहे हैं और किसी को आपत्ति नहीं है, उनके बच्चों को सामाजिक दर्जा प्राप्त है। लेकिन इसे आज कल का लिव-इन रिलेशनशिप न समझा जाय क्योंकि इसमें पति-पत्नी की ही भावना है लेकिन आज उनके पास सामर्थ्य नहीं है घर, धन का और काम की शांति भी मर्यादित ढंग से होनी चाहिये। इस विवाह में सामाजिक दबाव बहुत अच्छे ढंग से कार्य करता है।
आते हैं आज के आधुनिक विवाह पर, जो होते तो ब्रह्म विवाह जैसे हैं लेकिन इनकी अवधि कम होती जा रही है। विवाह विच्छेदन में नियम रहे हैं किंतु मुस्लिम रिवाज तलाक और ईसाई डिवोर्स में कोई नियम नहीं है। बस मन नहीं रहने का, अब अलग होते हैं।
वर्ष 2000 के पूर्व तलाक बिरले होते थे, समाचारों में हॉलीबुड और बालीबुड का ही पढ़ने को मिलता था। लेकिन आज तलाक विवाह करने से ज्यादा आसान है।
यह वर्ष 2021 है मान कर चलिए कि वर्ष 2040 तक स्थिति यह होने वाली है कि कोई-कोई ही मिलेगा जो एक पति-पत्नी वाला हो। सब पर देह सुख और स्वयं का सुख हावी है। जबकि दूसरा विवाह, निर्वाह विवाह सदा निर्वाह होता है। मेट्रोपोलिटन सिटी में लोग सोचते हैं कि दूसरा विवाह न हो पाये तो विवाहेत्तर सम्बन्ध बन जाये। इसका कारण है कि वे गर्लफ्रैंड और ब्वायफ्रेंड के दौर से निकले हैं।
ध्यान दें तो पाएंगे कि आज के विवाह में सबसे बड़ी समस्या है मोबाइल और मां की दखल! जिससे कलह फिर तलाक।
विवाह जो अब तक जीवन सम्बन्ध था, वह उपार्जन और सुखार्जन तक सिमट गया है। यदि हमारे अहम की पूर्ति नहीं होती है, तब विवाह कैसा? इसका टूट जाना ही बेहतर। टूटते विवाह के बीच सबसे ज्यादा ख्याल सामाजिक दबाव का आता है कि लोग क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे? लेकिन यदि इसकी परवाह नहीं तो चलिये तलाक लेते हैं वकील करते हैं, कुछ साल के मुकदमें के बाद दूसरा करते हैं फिर तीसरा और चौथा भी।
वास्तव में आज आपका जितना मन करें, आप ब्राह्मणों को गाली दे सकते हैं किंतु वास्तविकता यह है कि ब्राह्मणों ने समाज को चलाने के लिए सामाजिक ताने-बाने से लिप्त जो नियम दिया था, वही समाज और परिवार को जोड़ने में सार्थक सिद्ध हुआ है।
आज आपने सामाजिक नियम और सामाजिक दबाव, दोनों खो दिया है। ग्रैंड वेडिंग करके भी कुछ महीनों में तलाक जोन में चले जाते हैं। आपको पुनर्मूल्यांकन करना ही होगा कि पाश्चात्य के अन्धानुकरण वाले तथाकथित आधुनिकता में आपने क्या खोया और क्या पाया है। भारतीय संस्कृति का अस्तित्व संस्कारों के साथ है जबकि आधुनिकता आज के कानून के साथ।