आप किसको राम कहते हैं?
भारतीय संस्कृति में राम का अर्थ बड़ा विस्तृत है। अरे, मुकुट और धनुष लिए ही नहीं बल्कि मैली सी धोती पहने किसान, कुर्ता पहने मास्टर साब या टिफिन लिए और ऑफिस जाते वह व्यक्ति जिसे लौटते समय माँ के चश्मे, पत्नी की दवाई और बच्चों की किताबें जरुर लेकर आना है।
वैसे तो अधिकांश लोगों के मन में राम का जिक्र होते ही भगवा कपड़ा पहने भगवान जैसा कुछ दिखने लगता है। आज कल बहुतों को चिढ़ भी होती है कि इसी राम की वजह से उसकी बनी बनाई सत्ता चली गयी। जिस सत्ता रूपी मुर्गी से कुल जमां तीन पीढ़ी निकल गयी थी। ये ससुरे राम को कुदा दिए..। अब लौंडा कौन सा रोजगार ढूढे? उसे कुछ आता भी तो नहीं सिवाय सब्जबाग के सपने दिखा कर कुर्सी पाने के। राम के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले भी बहुत हो गये हैं। ऐसा कुछ नेता जी टाइप के लोग भी चाय की चुस्की लिए या पान का बीड़ा दबाते हुए कहते हैं।
खैर, हमें राजनीति से क्या? हम तो यह बताते हैं कि राम मेरे लिए क्या हैं – जब मैं बहुत छोटा था, अभी स्कूल जाना शुरू ही किया था तब बड़े भाई के साथ हनुमान चालीसा गाते – गाते याद हो गई थी। हनुमान जी एक समय हर बच्चे के बचपन में हीरो रहते हैं, आज कल छोटा भीम और बाल हनुमान के कार्टून भी तो दिखाए जाते हैं। हमारी भी उम्र और समझ इतनी ही थी कि दोनों भाई मिलकर शर्त लगाते थे कि किसके मूत्र की धार आगे जायेगी।
अरे, राम राम! राम पर थे और ये कहाँ चले गये? खैर, बचपन में घर में शनिवार के दिन सुंदरकांड का पाठ भी होता था। एक दिन स्कूल से वापस आया तो ‘बाबरी टूट गयी’ ऐसा दादी ने बताया। यह भी कहा कि वहाँ अब भव्य राम मन्दिर बनेगा। मैंने दादी से पूछा ‘राम को भगवान जी क्यों कहते हैं?’
दादी – ‘उन्होंने धर्म की रक्षा की, पापी और दुष्टों को दण्ड दिया।
मैंने कहा ‘क्या इतने से कोई भगवान हो जायेगा?’
दादी – ‘वह भक्तों पर बहुत कृपा करते हैं, वह करुणा के सागर हैं।’
मैं – ‘वह कहाँ रहते हैं? क्यों नहीं दिखते है?’
दादी – ‘वे भक्तों के ह्रदय में रहते हैं और सबको ऐसे ही दिखते रहेंगे तो यह मानव आज बहुत चालक हो गया है, उन्हें अपने को भगवान सिद्ध करने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और मानव नित्य ही एक सबूत मांगेगा आज के नेता की तरह।’
मैंने दादी से पूछा कि ‘मुझे मिलना हो राम भगवान से तब क्या करूँ?’
दादी – ‘अच्छे काम करो, भगवान को स्मरण करते रहो, दीन दुःखियों की सेवा करो।’
मैंने कहा कि ‘इसे तो हम कर सकते हैं।’
इस प्रकार राम मेरे जीवन – मरण का प्रश्न हैं, आपके लिए राम पर भले राजनीति हो सकती हो। विवेकानंद जी ने राम के बारे में शिकागो में कहा था कि जब तक भारत में एक पुरुष और एक महिला भी जीवित है, तब तक राम और सीता जीवित हैं। सीता-राम सदैव से सनातनियों के आदर्श रहे हैं और रहेंगे।
कुछ उच्छृंखल लोगों की वाचालता से राम पर कोई आंच आने वाली नहीं है। इस धरती पर राम पर प्रश्न अनेकों बार उठे हैं, फिर भी वह हम सबके आदर्श हैं। गांधी जी ने भी लोकतंत्र की नहीं बल्कि रामराज्य की ही बात की थी। जहाँ सब सुखी रहें, मनुष्य तो मनुष्य कुत्ता भी न्याय पा सके। शेर और बकरी एक घाट पानी पीयें।
राम जिसमें रमन और मरण दोनों समाहित है, जिसमें सृष्टि का आदि और अंत निरन्तर चलता रहता है। वैसे ये बात अधिकांश लोगों के समझ में नहीं आयेगी क्योंकि वे उदारवादी पंथ के हो गए हैं। राम, सहजता और प्रेम का विषय हैं, जो अधिकांश के बस का ही नहीं है।
मानव की खोपडी भागती बहुत तेज है, उसने दानी की जगह ग्राही सिस्टम को जोर से एक्टिवेट किया है। उसे सबमें लाभ चाहिए। अब पहला प्रश्न होता है ‘इसमें क्या फायदा?’ कुछ काम ऐसे भी होते हैं जिन्हें आप बिना लाभ के करते हैं जैसे नशा, बकैती इत्यादि। एक बार राम में प्रीति करके देखिये ये आपको एक्टिवेट कर देगा। राजनीति जरुर करिए किन्तु उसकी पूछ पकड़ के लटके न रहिये।
आप में कुछ जीवित है जो आपको ढूढ़ रहा है और आप हैं कि कुछ को बाहर ढूढ़ रहे हैं।
जब अंदर बाहर सब एक बराबर हो जायेगा उस समय आपको समानता, स्वतंत्रता और न्याय के लिए संग्राम करने की आवश्कता नहीं पड़ेगी।
‘बिना कारण के कुछ भी नहीं होता’, आप चाहें तो इस बात का सत्यापन विज्ञान से करा सकते हैं। यह विश्वास रखिये कि आप हैं तो यह जगत भी है। जैसे आपको बनाने वाले आपके माता-पिता हैं उसी प्रकार इस जगत का भी कोई बनाने वाला अर्थात माता-पिता होगा। उस बनाने वाले को ही हम राम कहते हैं… आप क्या कहते हैं?
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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