पाकिस्तान का अखबार डॉन कहता है कि भारत हिन्दु राष्ट्र की ओर अग्रसर है, नेहरू का सेकुलिरिज्म खत्म हो गया, अल्पसंख्यक मुस्लिम दोयम दर्जे में चले जा रहे हैं। पाकिस्तान को भारतीय मुसलमानों से इतनी संवेदना है तो उन्हें भारत में क्यों छोड़ दिया? सीमाओं में घुसने से क्यों रोक रहा है? पाकिस्तान में बटवारे के बाद का 15% हिन्दू आज मात्र 1-2% रह गया है वहीं बंग्लादेश का 25% हिन्दु आज 6-7% ही रह गया है।
पाकिस्तान जैसा देश सेकुलिरिज्म की बात करता है तब यह हास्यास्पद ही लगता है। भारत से गये मुस्लिम, पाकिस्तान में मुहाजिर ही हैं। भारत में अब तक तीन मुस्लिम राष्ट्रपति हुए, कई राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्री यहाँ तक कि मुख्यन्यायाधीश के साथ बड़े – बड़े ओहदे पर मुस्लिम रहे। लेकिन भारत की उदारता को कमजोरी ही समझा गया।
कोई भी राष्ट्र अपने सांस्कृतिक मूल्यों, और सोच के साथ खड़ा होता है और आगे बढ़ता है। किसी भी देश की अनेक संस्कृतियां नहीं होती, वह एक होती हैं। भारत उदार देश नहीं होता तो स्वतंत्रता के समय का 6% मुस्लिम आज 15% नहीं पहुँच जाता।
फिर समस्या कहाँ है? मुस्लिम सामुदायिक भावना में विश्वास नहीं करता है, उसकी एकल सोच है: दारुल इस्लाम। अन्य धर्म के लोगों के साथ – साथ इस्लाम में एक फिरका दूसरे फिरके को मुसलमान नहीं मानता। सहिष्णुता की खोज कैसे करेंगे जिन्हें सामासिक संस्कृति में विश्वास ही नहीं? आप यदि थोड़ा सा इस्लाम की बात करेंगे वह आपको मुसलमान बनाने का ही प्रयास करेगा।
विवाद और फसाद ही उसे पसंद है, अमन – चैन आदर्श हैं लेकिन उसे व्यवहार में नहीं लाया जायेगा। सूफी को पूरी तरह नष्ट कर दिया अब पीर की जगह चरमपंथियों का खैरमकदम हो रहा है। तीन तलाक या तलाक-ए-बिदद, हलाला जैसी कुप्रथा पर खातून बोले तो वेश्या कहलाये।
इतिहास हमें यही शिक्षा देता है कि अतीत की गलतियों से सबक लिया जाय और हो सके तो उन्हें दुरुस्त किया जाय। यदि बर्बर को आदर्श और आतंकियों को रहनुमा बनायेंगे तो यकीन जानिये, दूसरों के लिए अपने घर सांप पालने में सांप दूसरों को काटेगा कि नहीं किन्तु आपको/अपनों को अवश्य काटेगा।
पैगम्बर ने जिहाद की शिक्षा के साथ हिजरत अर्थात पलायन करने की भी शिक्षा दी है।
मनुष्य को मार कर कोई भी मनुष्य प्रसन्न नहीं रह सकता। उल्लेखनीय है महमूद गजनवी के दरबारी अलबरुनी अपनी पुस्तक किताबुल हिन्द में लिखते हैं, ‘अल्लाह ताला महमूद पर रहमत बक्शे जिसने हिन्द की हसती खेलती संस्कृति को तबाह कर दिया।’
लादेन, बगदादी, मौलाना उमर जैसे आतंकवादी बिना मुस्लिम समाज की सहमति के नहीं खड़े हो सकते थे। इस्लामी आतंकवाद को बढ़ावा कुरान के जिहाद से मिलता है। जिहादी हूर, जन्नत और धर्म के लिये कुर्बान हो जाता है। ईश्वर ने तुम्हे तेल के भंडार इस लिए नहीं दिये कि तुम एक दूसरे से युद्ध करो, बल्कि तुम्हे इस लिए सक्षम बनाया ताकि तुम मानवता की भलाई कर सको। अपने को खड़ा करो, गुरबत दूर करो, मानवता को पोषित करो। समय रहते इस्लामिक जगत को विचार करना होगा कि वह बुराइयों, कुप्रथाओं, धर्म ग्रंथो में सुधार की जितनी जरूरत है समय के साथ करें।
बाइबल में लिखा था पृथ्वी चपटी है और केंद्र में सूर्य न हो कर पृथ्वी है। सब ग्रह पृथ्वी का चक्कर लगाते है। पुर्नजागरण और प्रबोधन से गलतियों को सुधार कर, विज्ञान, तर्क और मानवतावाद का सहारा लेकर आज विश्व का सबसे बड़ा धर्म बन गया।
इस्लामिक विद्वान इस पर विचार करें तो उनके समाज में तेजी से परिवर्तन हो सकता है। उदारता, सहिष्णुता, प्रेम, परस्पर मिलजुल कर समासिक संस्कृति को बढ़ाया जा सकता है। इस्लाम के स्याह चेहरे को प्रस्तुत करिये, विश्व के अन्य धर्मावलंबीयों को मुसलमान के हिंसक बर्ताव से घृणा करने से पहले इस्लाम में आमूलचूल परिवर्तन जरूरी है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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