नेता, सिस्टम और लोकतंत्र पर जितना चाहे बात कर लीजिए, इसका कोई प्रभाव नहीं दिखता है। इनकी हालत चमगादड़ के घर आए मेहमान की तरह है, तुम भी लटको हम भी लटकें। लोकतंत्र के काजल की कोठरी में किसे भ्रष्ट्राचारी रूपी कजली नहीं लगी है, यह कहना बहुत मुश्किल है।
नेता इतना लम्पट और आचारहीन क्यों है? स्पष्ट है कि नेता कौन बनाता है – एक, जो नेता परिवार से है और दूसरा, वह जो घर का सबसे नालायक है। मतलब जिसमें मारपीट, मक्कारी, चोरी और जेल जाने को गुण हों। तब जाकर कर घर वाले कहते हैं कि यह नेता बन जायेगा।
राजनीति सेवा की जगह धन और रसूख बढ़ाने का इकोसिस्टम बन गया है। अच्छे लोगों के राजनीति में न जाने से राजनीति का स्तर ख़त्म सा हो गया है। आज के ज्यादातर नेता राजनीति, जनतंत्र, लोकतंत्र या कहें राजनीति की परिभाषा भी नहीं जानते हैं, उनके पास अपनी स्वजाति समर्थक हैं, क्षेत्र में इसी जाति का बाहुल्य है। तय हो गया टिकट अब इसी नकारे को मिलेगा। जीतते ही पहला काम बड़ी गाड़ी लायेगा दूसरा बड़ा घर। अब बचा काम वसूली और दलाली का जिससे धन की व्यवस्था हो।
‘प्रजा सूखे सुखं राजा’ ऐसा राजतंत्र में कहा जाता है जबकि लोकतंत्र ‘जनता का जनता द्वारा जनता के लिए शासन है’। परन्तु यह सिर्फ कहा जाता है। इस तंत्र में नेता के करोड़ भी लाख में है। नैतिकता लुप्त है, अपनी पार्टी का मुखिया भ्रष्ट्राचारी, चरित्रहीन, गुंडा कुछ भी हो, उसको पूरा समर्थन है। यहाँ तक कि समर्थक मारपीट और आग लगाने को तैयार हैं। लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व शासन प्रणाली नेता की व्यैक्तिक नैतिकता पर निर्भर करता है। वरना नेता है, पुलिस है, संविधान और कानून भी है, बस न्याय नहीं है।
किसी व्यवस्था का आधार न्याय व्यवस्था होती है जैसे रामराज्य में कुत्ते को न्याय मिला था। क्या लोकतंत्र में गरीब के लिए न्याय है, है तो उसकी कीमत क्या है? वकील बोली कितनी लगता है, न्यायधीश वास्तव में न्याय कर पाता है?
पुलिस व्यवस्था जनसुरक्षा और समाज में शांति की स्थापना के लिए है किंतु देखा जा रहा है कि पुलिस में एक वसूली नेक्सस काम करता है जो जनता से घूस के रूप में वसूल कर ऊपर के नेताओं तक पहुंचता है।
लोकतंत्र में नेता से लेकर जनता को बोलने की पूरी आजादी होती है। किसान भगवान भरोसे है, उसके हालात की किसी को कोई चिंता नहीं है, चिंता सत्ता की है। जो हमें मलाई चटाये उसी को समर्थन, हम नेताओं की जाति कुर्सी वाली है।