‘राजनीति में न कोई स्थायी शत्रु होता है और न मित्र’ वाली कहावत बिहार में फिर से चरितार्थ हुई है। मोदी जी जब से केंद्र में काबिज हुये हैं, तब से बेमेल गठबंधन राजनीति में बराबर दिखाई दे रहा है। कारण है कैसे भी करके सत्ता मिले। बिहार में राजद के साथ जदयू, जम्मू कश्मीर में भाजपा के साथ पीडीपी, महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ कांग्रेस और एनसीपी वहीं उत्तरप्रदेश में सपा के साथ बसपा।
गोवा, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में पूरी पार्टी का विलय भाजपा में हो गया। नीति कम नेता की नियति बदल गयी है। जिसके पीछे ईडी और सीडी प्रकरण ज्यादा है। मजेदार बात यह है कि विपक्ष में सिर्फ नीतीश ही ऐसे हैं जो ईडी और सीडी प्रकरण से बचे हुए हैं।
नेता ने जिस विचारधारा से अपनी पार्टी बनाया था, वह सत्ता की जुगत में विचारधारा का होम कर दे रहा है। जब सत्ता चली जाती है तभी उसे विचारधारा की याद आती है।
विपक्ष की स्थिति यह है कि महाविकास अगाड़ी बना, उसे शरद पवार में नेता का विकल्प दिखा, ममता बनर्जी ने जैसे बंगाल चुनाव जीता उसे फिर विपक्ष के नेता तस्वीर दिखाई दी। अब नीतिश कुमार ने NDA से नाता तोड़ा, उनमें PM मटेरियल दिखने लगा है। नीतीश ने जब २०१७ में राजद से नाता तोड़ा था, उस समय उसे अपनी अंतरात्मा की आवाज करार दिया था। २०२२ में NDA से नाता तोड़ने पर सबकी की इच्छा बताया।
रिकार्ड आठवीं बार बिहार के CM बने नीतीश बाबू को सोनिया ने UPA के संयोजक पद का ऑफर दिया। PM के लिए प्रतीक्षारत राहुल गांधी अभी और कुछ पंचवर्षीय योजनाओं तक वेटिंग में ही रहेंगे। अभी की विपक्ष की नई आस नीतीश कुमार से है। देखने वाली बात है कि नीतीश कुमार कितने जनाकांक्षाओं पर खरे उतरते हैं और कितने दिनों तक विपक्ष की एकमात्र कर्ण आस बने रहते हैं। मोदी के लिए कितनी चुनौती बनते हैं या नहीं, यह २०२४ ही बतायेगा।