मुख्य रूप से पांच तरह के खिलाड़ी और दर्शक भाग ले रहे हैं जनरल, ओबीसी, SC, ST और अल्पसंख्यक। यहाँ यह स्पष्ट किया जाता है कि अल्पसंख्यक का मतलब ‘धर्म विशेष’ ही होता है।
100 मीटर की रेस में जनरल पूरे 100 मीटर दौड़ेगा। ओबीसी 75 मीटर, SC 50 मीटर, ST 25 मीटर और अल्पसंख्यक को कोटे के तहत कुछ खेलों को उन्हें बिना करतब दिखाये स्वर्ण पदक मिल जायेगा। इसके अलावा कुछ विशेष श्रेणी के खिलाड़ी भी भाग ले रहे हैं जिनके लिए पदक पहले से निर्धारित है बस उन्हें अपने कोटे में दौड़ना है। यह नियम महिलाओं की प्रतिस्पर्धा में भी लागू है।
खेल का नियम पहले से तय है, कोई टिप्पणी करने पर संविधान का उल्लंघन माना जायेगा और उसके ऊपर SC/ST एक्ट या सम्बंधित कानून के तहत कार्यवाही होगी। इस लिए प्रतिभागी परिणाम पर ज्यादा ध्यान न देंगें उनका जोर खेल पर होगा।
यह खेल नहीं है, यह वोट की रेस है, नेता का बाजार है, एक के पैर बांध दूसरे को दौड़ाना है। यह सभी सरकारी क्षेत्र पर लागू है। अंपायर, रेफरी नेता हैं जिनकी एक सीटी से संविधान निकलता है। हो सकता है कि यह खेल आपको पसंद न हो लेकिन इसका नियम आधुनिक राजनीति के पिता अंग्रेजों ने भारत के गुलामी के दिनों में बनाया था, अब उसे बखूबी अंजाम दिया जा रहा है।
पिछड़ा अभी 500 सालों तक पिछड़ा ही रहेगा। अगड़ा पीछे ही भाग ले रहा है। दर्शकों के अपने वर्ग और अपनी जाति के खिलाड़ी हैं, कुछ खिलाड़ी हंगामा कर हैं कि वे जन्मजात पिछड़े हैं इस लिए उन्हें पिछड़े वर्ग का खिलाड़ी माना जाय जिससे वह भी आरक्षित वर्ग का पदक अपने नाम कर सकें।
मजेदार बात यह है कि विकलांग खिलाड़ी भी सामान्य के साथ ही प्रतिस्पर्धा में नियम के तहत उतरे हैं। इस खेल का अंपायर 1956 में ही मर चुका है, जिसने अंग्रेजों के नियम की नकल उतारी थी, अब उसके भूत अंपायर हैं। खेल कुछ भी हो लेकिन भारत की राजनीति का खेल इसी पर आश्रित है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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