संगठित समाज या उपेक्षित अवधारणा

spot_img

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

मनुष्य चिंतनशील होने की वजह से अन्य प्राणियों से भिन्न है। जब समाजिक आवधरणा पर विमर्श होता है तो बात बहुत जल्दी व्यक्तिगत और फिर चरित्र की ओर चली जाती है। जब विषय सामाजिक है तो उस समय राजनीति का क्या काम? यह अलग बात है कि कुछ सामाजिक अपेक्षायें राजनीति से रहती हैं। किंतु वास्तविकता है कि राजनीति सामाजिक व्यवस्था को जटिल बना देती है। उसका एक निहित स्वार्थ होता है। सत्ता का गणित वोट के गलियारे से हो कर जाता है फिर वही सामाजिक दशा और दिशा है।

सामाजिक घटक बेहतरीन ढंग से कार्य करें। सामाजिक स्थिरता और उसके स्थिर चरित्र पर स्वस्थ्य समाज का निर्माण होता है। जब सामाजिक विमर्श को राजनीति में मिला देते हैं तब वह मूल से भटक जाता है। किसी भी भटके हुये को कोई भी मूर्ख बना सकता है। इसमें नेता और राजनीतिक पार्टियां अकेली दोषी नहीं है। 1928 में ब्रिटेन के भारत मंत्री बकेँनहेड ने कांग्रेस को चुनौती दी (साइमन कमीशन के विरोध पर) कि आप ऐसा मसौदा बनाओ जिस पर सब की सहमति हो। मोतीलाल नेहरू ने चौदह सूत्रीय फार्मूला पेश किया जिसका विरोध जिन्ना, सफी आदि ने किया। कारण एक था कि उन्हें पता था कि भारत कभी किसी चीज पर एक मत नहीं होगा। जो आज भी जारी है।

किसी भी अच्छी चीज के लागू होने से पहले उसकी इतनी आलोचना होगी कि उसके मूल स्वरूप में परिवर्तन हो जायेगा। अभी भी सामाजिक विमर्श में व्यक्ति का स्थान रिक्त और तप्त है। उसकी खाना पूर्ति एक इकाई के रूप में या एक वोट के रूप में, बहुत चले तो एक गरीब जो दलित, वंचित, साधन विहीन है की तरह की जाती है, व्यक्ति के रूप नहीं है। यदि हम उसे व्यक्ति की तरह लें तो निश्चित ही संगठित समाज निर्मित कर सकते हैं।

सामाजिक तनाव, वर्ग वैमनस्य और फिर वर्ग संघर्ष को प्रेषित करता है। अवधारणात्मक चिंतन यहीं पर अपनी जमीन खोता नजर आता है। वह कौन से उपक्रम अपनाये जाएं जो मानव को मनावगत समानता दें? सभी विचार, सभ्यताओं की यहाँ आते – आते सांस फूल जाती है। सभी प्रक्रम के पश्चात जिसे हम ईकाई के रूप में, वोट के रूप में, जाति के रूप में मान कर दुंदुभि बजाते हैं, जल्द ही झुनझुना टूटेगा, वह भी व्यक्ति के उपस्थिति को दर्ज कराने चल रहा है। पुरानी परम्पराएँ दकियानूसी वर्जनाएं टूटेगी। हम सभ्य संसार की ओर करतल करेंगे।

बहुत हुई नेता शाही, बहुमत शाही, राजशाही। अब तो सिर्फ गणतंत्र जो मनतंत्र की बगिया से होकर आये। अब ये न कहना क्या राम राज्य नहीं होगा? मैं तो ईकाई को व्यक्ति बनाने की राह चलाना चाहता हूं यदि वह मानव बन गया जो अभी प्रक्रिया में है, निश्चित जान लीजिए कि मजबूत व्यक्तित्व ही सुदृढ़ समाज को जन्म देता है और एक सुदृढ़ समाज एक स्वस्थ प्रणाली को पोषित करता है।

 

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
Disclaimer: The opinions expressed in this article are the author’s own and do not reflect the views of the संभाषण Team. The author also bears the responsibility for the image/images used.

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

1 COMMENT

Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Inline Feedbacks
View all comments
Usha
Usha
5 years ago

Bilkul shi kha h apne ek mjbut vyaktitva hisudrd smaj ko jnm deta haur ek svsth prdali ko poshit krta h.👍 👌👌 .

About Author

Dhananjay Gangey
Dhananjay gangey
Journalist, Thinker, Motivational speaker, Writer, Astrologer🚩🚩

कुछ लोकप्रिय लेख

कुछ रोचक लेख