मंत्रों की शक्ति

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अभी कुछ दिनों पहले की बात है, वैदिक मंत्र को एक महिला ट्वीटर हैंडल द्वारा ट्वीट किया गया। वैसे तो यह एक सामान्य सी बात थी लेकिन कुछ अति व्यवहार वादी विद्वानों द्वारा इसकी आलोचना होने लगी। देखते ही देखते यह वाद, विवाद बन गया।


इस विषय पर कहने और बोलने के लिए आग्रह आने लगे लेकिन यह विचार कर कि समझने और समझाने के लिए यह समय उपयुक्त नहीं है, तब हमने शांत रहना ही उचित समझा। असल में इस विषय पर काफी समय से अलग – अलग धारणाएं बनी हुई हैं, विद्वानों और संतों ने इसे अपने प्रकार से समझाने का भी भरपूर प्रयास किया है लेकिन फिर भी यह एक विवाद का विषय बना हुआ है। इस लेख में हम इसे ही समझने का प्रयास करेंगे।

सबसे पहले वैदिक मंत्रों में अधिकार की बात आती है। यजुर्वेद २६/२ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वेद वाणियों का उपदेश ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, प्रिय या अप्रिय सभी के लिए किया गया है।

स्त्रियों की बात करें तो ध्यान दें, केवल ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग ४१४ ऋषियों के नाम हैं जिनमें से लगभग ३० ऋषि महिलाएं अर्थात ऋषिकाएँ हैं। लेकिन अवश्य ही कुछ ऐसे मंत्र हैं जिनके जप में स्त्रियों आदि का अधिकार नहीं है वहां भी समझने वाली बात यह है कि निषेध मात्र ‘जप’ में है। लेकिन जिसका ‘जप’ में अधिकार नहीं है वह भी ‘श्रवण’ माध्यम से पूर्ण लाभ ले सकता है। श्रवण के लिए सभी अधिकृत हैं।

दूसरी तरफ समझने वाली बात यह है कि मंत्र, वाणी में ही प्रभावी होते हैं। वैदिक ऋचाएँ ‘परावाणियां’ हैं, स्वर की निश्चित आवृत्ति पर इनमें सृजन और संहार की क्षमता है।

वाणी चार प्रकार की होती है :

१. परा
२. पश्यन्ति
३. मध्यमा व
४. वैखरी

परावाणी दैवी या ईश्वरीय वाणी है। हम जो बातचीत करते हैं, यह वैखरी वाणी है। सोच-विचार कर बोली जाने वाली वाणी मध्यमा है जबकि मंत्र पश्यन्ति वाणी में प्रभावी या जागृत होते हैं।

शब्द के भी दो भेद हैं :

१. नित्य और
२. अनित्य।

जो शब्द सुना जाता है या सामान्य रूप से उच्चारित होता है, वह लोक व्यवहार के लिए प्रवृत्त वैखरी रूप कार्यात्मक अनित्य है। जबकि पश्यन्ति रूप नित्य शब्दात्मा समस्त साध्य साधनात्मक पद और पदार्थ भेद रूप व्यवहार का उपादान कारण है।

अकार ककारादि क्रम का वहाँ उपसंहार हो जाता है। योगी उसी शब्द तत्व स्वरूप महानात्मा के साथ ऐक्य लाभ करता हुआ वैकरण्य (लय) को प्राप्त करता है।

इसप्रकार से समझने पर यह ज्ञात होता है कि मंत्रों को लिखने, पढ़ने में कोई हानि नहीं है। इतना है कि शुचिता का ध्यान अवश्य ही रखना चाहिए। जप के लिए योग्य गुरु से विचार करके ही शुरुवात करनी चाहिए। गुरुमंत्र की स्थिति में उन्हें सर्वथा गुप्त ही रखना चाहिए।

ध्यान देने वाली बात यह है कि, यह नीति नियम ऐसे ही नहीं बनाए गए बल्कि इनके पीछे भी विज्ञान है जो आधुनिक विज्ञान से अधिक सक्षम और समझने के बाद सर्व ग्राह्य ‘वैदिक विज्ञान’ है।

अस्वीकरण: प्रस्तुत लेख, लेखक/लेखिका के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो। उपयोग की गई चित्र/चित्रों की जिम्मेदारी भी लेखक/लेखिका स्वयं वहन करते/करती हैं।
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Prabhakar Mishra
Prabhakar Mishra
3 years ago

🙏🙏जय जय जग जुग उपकारी। सद्विचारों का नित्य प्रसार होने से कल्याण सहज है।शब्दरुप एक विचार स्वरुप सम्भाषण जी आपके नये पोस्ट का इंतजार है।

Prabhakar Mishra
Prabhakar Mishra
Reply to  Prabhakar Mishra
3 years ago

इस वेबसाइट की यह पोस्ट शायद ट्विटर पर प्रसारित नहीं हुआ है अथवा हुआ भी है तो बहुत पहले, वेबसाइट पर भी आपके मार्च में केवल एक ही पोस्ट आया है। जबकी ट्विटर पर एक भी पोस्ट नहीं हुआ है।
ट्विटर एवं वेबसाइट दोनों जगह आपके पोस्ट की कमी खलती रही है। अब मार्च बीत गया, अब फिर से आपका सानिध्य मिले।

Manoj Kaushik
Manoj Kaushik
3 years ago

Thanks for this enlightening post..!!

Dhananjay Gangey
Dhananjay Gangey
3 years ago

ज्ञानवर्द्धक🙏🙏🙏

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