भय मनुष्य की स्वाभाविक प्रक्रिया है सभी व्यक्ति को डर लगता है। यदि कोई कहता है कि वह नहीं डरता तो समझिये वह डरपोक के साथ झूठा भी है।
भय से भयाक्रांत होना बुरी बात नहीं है लेकिन डट कर डर का जो सामना करता है, वही वीर कहलाता है। कातर भय देख भयंकरित होकर भागने लगता है। कहा भी जाता है जो डर गया सो मर गया।
यह डर पहले मन में पराजय लाता है और जैसे ही वह हारा फिर पूरी हार ले आता है। जैसे हम डरे तो हतोत्साहित हो जाते हैं, यह दुनिया छोटी हो जाती है। तरह-तरह के नकारात्मक विचार हावी होने लगते हैं जैसे मेरा काम क्या है, मैं मर क्यू नहीं जाता आदि। कभी-कभी यह मानसिक अवसाद की ओर ले जाता है।
जिंदगी जीने का डर, बीमारी का डर, बूढ़े होने और मृत्यु का डर, जीवन में सदा लगा रहता है। अपने प्रियजन को खोने का भय, कुछ बनने बिगड़ने के भय। इस भय के पार मनुष्य को जाना ही पड़ेगा। भय को नियंत्रित करना पड़ता है उससे लड़ना और जीतना सीखना होता है तभी हम बुराई को भी हरा पाते हैं।
डर के आगे जीत इंतजार करती है। आज जितने बड़े अविष्कार दिखाई दे रहे हैं वह एक साहसिक आदमी की कहानी है जिसने अपने डर से लड़ के नई इबादत लिखा। मनुष्य का जीवन सरल बनाया जहाज, ट्रेन, पनडुब्बी, आदि उसी साहस की ही देन है।
एक बात जान लीजिए जब तक आप जीवित हैं तब तक कोई मार नहीं सकता है, यदि आप मर गये तो दुनिया की कोई ताकत जीवित नहीं कर सकती है। आप भी डर के डर से डर मत रहिये उठिए और वीर बनिये।
Very impressive
Thxu🌞🌞🌻
Aapne ne sahi me bhay ke karan ko bta diya.
Hota bhi esa hi hai