5 जनवरी 2020 को दक्षिण भारत की यात्रा शुरू हुई। यह यात्रा द्वारकाधीश की यात्रा के एक महीने बाद हो रही थी। यात्रा के साथी एक बार फिर विनय थे।
प्रयाग से रेलगाड़ी द्वारा सीधा चेन्नई, बीच में नागपुर पड़ा जिसमें दीदी – जीजा से मिलना तय था। दीदी रास्ते के लिए खाना भी लेकर आईं थीं लेकिन जो ट्रेन यहां कम समय तक रुकती है उसका अचानक स्टेशन बदलने से दीदी और खाना पीछे ही रह गए केवल जीजा जी से मुलाकात क्या देखा-दरस ही हो सका, ट्रेन चेन्नई के लिए चल दी।
चेन्नई से ट्रेन को बंगलुरू जाना था, कुछ घण्टे रुकना था तो यह सोचा गया कि जल्दी से एशिया का सबसे बड़ा “मरीना बीच” देख लिया जाय।
फोर्ट सेंटजार्ज जो अंग्रेज शासन काल में मद्रास गवर्नर हाउस हुआ करता था, जिससे लगभग 400 वर्ष तक दक्षिण की राजनीति का केंद्र था उसे भी देख लिया गया। तीसरी महत्वपूर्ण चीज चेन्नई रेलवे स्टेशन इसके साथ नारियल पानी और इडली, कुछ घण्टे में इतना ही हो पाया।
शाम तक हम बंगलुरू पहुंच गए जहां से हम्पी के लिए जाना था। सुबह हम्पी (Hospet) पहुंचना हुआ। बहुत सुहावनी और हल्की ठंड लिए सुबह थी, दोपहर चेन्नई में बहुत गर्मी थी लग रही थी जैसे शरीर ही जला देगी लेकिन यहां अच्छा लग रहा था… गुनगुनी ठंड।
हम्पी (विजयनगर) साम्राज्य देखने के लिए पहुंचे थे जिसकी चर्चा कभी विश्व में हुआ करती थी। ज्ञान, वैभव, शासन, स्थापत्य और सबसे बढ़कर उस समय का हिंदू शासन।
हम्पी में इस समय हम्पी महोत्सव चल रहा था, जहां अभिनेता यश आये हुए थे। खैर, चलते हैं यात्रा पर..
पहाड़ काट कर बनायी गई यह राजधानी नगरी जिसमें छोटे – बड़े मिलाकर कुल मिलाकर लगभग 1500 मंदिर और इमारतें हैं। तुंगभद्रा नदी के तट पर यह विश्व का खूबसूरत और अदम्य नगर जिसके लिए विदेशी यात्रियों पुस्तकों जैसे बारबोसा, नुनिज, अब्दुल रज्जाक, बाबरनामा आदि में वर्णन मिलता है। जिसके लिए विदेशी यात्री डिमिंगो पायस कहता है कि ‘सम्पूर्ण विश्व में ऐसा दूसरा नगर नहीं है।’ विजयनगर (विद्यानगर) का बाजार विश्व का सबसे बड़ा बाजार है, यहां विश्व की सभी वस्तुएं मिलती है।
बाबरनामा में इसे भारत का सबसे बड़ा हिंदू राज्य कहा गया था जिसके लेखन के समय महान सम्राट कृष्णदेव राय का शासन था।इन्हीं के राजगुरु तेलानी रामा थे जो अपने ज्ञान और वाकपटुता के लिए प्रसिद्ध थे। यहां शतरंज एक राष्ट्रीय खेल की तरह खेला जाता था।
दक्षिण में इस हिंदू राज्य की स्थापना मुहम्मद बिन तुगलक के समय 1336 इस्वी में हरिहर और बुक्का ने विद्याधर और सायण के प्रभाव में की थी।
विरूपाक्ष मंदिर प्राचीन मंदिर है जहां आज भी पूजा होती है। मंदिर, राम और कृष्ण के “हेमकूट पर्वत” स्थिति 300 मंदिरों की शृंखला में एकाश्म पत्थर से निर्मित गणेश भगवान का विग्रह विश्व में अपने तरह की अकेली प्रतिमा है।
1565 इस्वी के राक्षतांगड़ी या तालिकोटा के युद्ध में मुस्लिम राज्यों ने जिनमें बहमनी, बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुण्डा और बरार शामिल थे, ने संघ बना कर वास्तविक राजा रामराय का युद्धभूमि में क़त्ल करके विजयनगर को लूट लिया। मंदिर को नष्ट – भ्रष्ट किया गया और नगर को लूट लिया गया। लगभग 300 वर्षों तक विजयनगर साम्राज्य और उसके महाराज हिंदु धर्म की पताका को थामे रहे।
तेलुगु, कन्नड़ के साथ संस्कृत भी यहां की राजभाषा थी। शिक्षा व्यवस्था सनातनी थी जो मंदिरों, मठों के द्वारा दी जाती थी।
कृष्ण मंदिर के सन्मुख ही सुपारी का महत्वपूर्ण बाजार था। हाजरा का मंदिर राम भगवान को समर्पित है जो कृष्णदेव राय के समय में बना था, जिसकी दीवार पर रामायण का चित्रांकन था।
यहां की वास्तुकला देखकर सबसे अधिक लज्जा भारत के इतिहास पर आयी जो मुस्लिम स्थापत्य के महिमामंडन से अटे पड़े हैं। जिस प्रकार NCRT आदि में शिक्षा के माध्यम से मुस्लिम शासन का महिमा मंडन किया जाता है, जिसपर प्रश्न पूछने पर इतिहास लिखने वालों के पास कोई साक्ष्य नहीं होते, गहरा षड्यंत्र है।
नेहरू ने आजादी के समय सोमनाथ मंदिर के प्रस्ताव पर घोषित रूप से के. एम. मुंशी और सरदार पटेल से कहा था कि मंदिर का समर्थक करके मेरे जीते जी हिंदुत्व को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता है।
उनकी राय में उदार वाद मुस्लिम का महिमा मंडन और हिंदू शासन का तिरस्कार करके ही ब्रिटिश संस्कृति को लागू किया जा सकता है क्योंकि यह विकास और आधुनिकता को बढ़ावा देता है।
स्वतंत्रता के पश्चात का नास्तिक शासन हिंदु शासन प्रणाली, वास्तुकला, शिल्प कला आदि को घृणा की दृष्टि से देखने लगा था। जिस भी हिंदू वास्तु कला पर मुस्लिमों ने पट्टी लगा दिया था या उसपर अधिकार कर लिया था, आधुनिक नेहरू सरकार उसे मुस्लिमों की विरासत बताने में गर्व महसूस कर रही थी।
इतिहास में जो स्थान विजय नगर को मिलना चाहिए वह कभी नहीं मिल सका। उसके बदले में इतिहासकार अकबर और औरंगज़ेब को भारत की संस्कृति का उद्धारकर्ता सिद्ध करने में लगे रहे क्योंकि शासन सेकुलरिज्म के नाम पर हिन्दुओं को पीछे धकेल के उदार वाद की स्थापना कर रहा था। शिक्षा व्यवस्था को मुस्लिमों के भरोसे छोड़ के नेहरू विकास कार्य में लगे थे। धीरे – धीरे शिक्षा व्यवस्था के माध्यम से मुस्लिम को विक्टिम सिद्ध किया गया।
हम्पी सिर्फ विजय नगर के लिए ही नहीं प्रसिद्ध है बल्कि यह रामायण और महाभारत काल से जुड़ा हुआ स्थल है। यहीं पर वाल्मीकि रामायण और महाभारत में वर्णित भारत का भूगोल मिलता है।
हेमकूट पर्वत, मतंग, ऋष्यमूक, किष्किन्धा नगरी, पम्पा सरोवर। हनुमान जी का जन्म स्थल आंजनेय पर्वत आदि स्थित हैं।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम की मुलाकात हनुमान जी से यहीं पर होती है। श्री राम ने सुग्रीव को मित्र बनाया, बालि का वध करके किष्किन्धा का राजा सुग्रीव को यहीं पर बनाया था।
यह राम वन गमन मार्ग पर स्थित है। यहीं पहाड़ी पर भगवान कृष्ण ने यज्ञ करवाया था। विजय नगर से प्राप्त मूर्तियों में हनुमान जी, नरसिंह, राम जी, शेष शैय्या पर विराजित विष्णु, योगमाया, गणेश, शिव, हाथी आदि की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।
हम्पी आते समय बंगलुरू स्टेशन पर IRCTC के रेस्तरां में वेज बिरयानी बहुत स्वदिष्ट मिली थी।
यहां हम्पी में खाने के विषय में बहुत पता नहीं था फिर भी पेट भरने वाला भोजन मिल गया था। गणेश मंदिर के प्रांगण में कर्नाटक के यक्ष गान देखने को मिला।
हम्पी में कुश्ती की प्रतियोगिता देखने को मिली जिसमें पुरुष और महिला पहलवान अपने – अपने जोर आजमाइश करते दिखे। रास्ते में ही एक झील में छोटी टोकरी नाव के दौड़ का लुप्त भी उठाया।
हमारी गाड़ी का ड्राइवर बीच – बीच में कर्नाटक के फिल्मी हीरो की कहानियां भी बता रहा था।
सबसे बढ़ कर हमने इतिहास समझने के लिए कर्नाटक के कई लोगों से बात किया लेकिन ऐसे बहुत कम लोग मिले जिन्हें हम्पी के ऐतिहासिक महत्व के बारे में पता रहा हो। देखा जाए तो इसे ढकने का काम केंद्र सरकार ने शुरू से ही किया है जिसके बारे में इसी लेख में आगे ऐसे तथ्य आएंगे जिनसे यह जानकारी मिलेगी कि अंग्रेजों से अधिक हिंदू इतिहास के साथ दुर्व्यवहार आजादी के बाद के दिल्ली शासन ने किया है।
भारत के इतिहास की पुस्तकों में कहीं भी ऐसा वर्णन नहीं मिलता कि हम्पी क्षेत्र रामायण में उल्लिखित राम से जुड़ा हुआ स्थल है, मैं स्वयं यह जानकर हतप्रभ था। यह मेरे राम का स्थल है, हनुमान जी का जन्म स्थल भी है, हम भी रामायण युग में चले गये। बन्दर, रीछ, गिलहरी, गिद्ध, खग, मृग, भौवरां, श्रेणी न जाने कल्पनाओं में राम की सेवा करने के लिए वन जाता। आप मेरे मन की दशा को समझ सकते हैं यह भक्त और भगवान का मामला जो है।
सिया राम मय सब जग जानी।
करहु प्रणाम जोरि जुग पानी।।
विट्ठल स्वामी (विष्णु) के मंदिर में रथ को खींचते गरुड़ हों या संगीत की ध्वनि “सा रे गा मा पा” का उद्घोष करते मंदिर के खम्भे, वास्तुकला उत्कृष्ट श्रेणी की है। विजय नगर के इतिहास की कहानी यहां के पत्थर स्वयं कहते हैं। पुर के बगल में बड़ा बाजार नगर नियोजन में चार चांद लगा देता है। संगीतमय इमारत की कल्पना भी आज बिल्कुल असंभव है।
मतंग और आंजनेय पर्वत के मध्य नगर बसाने का अर्थ सुरक्षा के साथ देव कृपा भी थी।
बाद के समय में हम्पी हासपेट हो गयी, राम से जुड़े स्थल के बारे में भारतीयों को बताया ही नहीं गया, न कभी ऐसे प्रचारित और प्रसारित ही किया गया। सरकार ताजमहल, खजुराहों, अकबर के किले और अजमेर की दरगाह के ही प्रचार – प्रसार में लगी रही जो आज भी कर रही है।
हमारे देश की युवा पीढ़ी जब अपने इतिहास से अंजान रहेगी तब वह अमेरिका की संस्कृति की ओर पैर क्यों नहीं पसारेगी? बाजार, व्यापार और टेलीविजन पर इन्हीं संस्कृतियों पर चिल्लाया जा रहा है।
पूरा मामला सांस्कृतिक उपनिवेश वाद का है जिसे भारतीय नहीं समझ रहे हैं। मुस्लिम वोट के लिए हिंदुत्व का भय लगभग सभी पार्टियों पर छाया था इसलिए सेकुलरिज्म की टोप पहन लिया गया। अब जा कर थोड़ी बहुत भ्रांतियां दूर हो रही हैं।
आगे की यात्रा के लिए हम्पी से सीधी ट्रेन तिरुपति के लिए थी जो रात में चलकर सुबह पहुंच रही थी। इस मंदिर की कीर्ति भारत में ही नहीं वरन विश्व में जहां भी हिंदू हैं वहां तक विस्तृत है।
मंदिर अपनी भव्यता के अनुसार ही तिरुमला की पहाड़ी पर स्थित है जो तिरुपति (विष्णु के अवतार) के रूप में है। जिस समय हम मंदिर पहुंचे उस समय कोई उत्सव न होने की वजह से भीड़भाड़ न थी। मंदिर में दर्शन करने के लिए टिकट की व्यवस्था है जो उसी दिन शाम के लिए मिल गया।
यहां भगवान का दर्शन बिजली के उजाले में न होकर दीपक की रोशनी में होता है। भगवान का विग्रह इतना जीवंत है कि लगता है अभी बोल पड़ेगी। मंदिर का प्रसाद (लड्डू) बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर की मान्यता है कि सकल मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
सम्पूर्ण भारत के मंदिरों में इस मंदिर की व्यवस्था सबसे अच्छी है। दक्षिण भारत स्थित धरती का स्वर्ग स्थान इसे कहा जा सकता है। एक दिन यहां होटल में रुकना हुआ अगले ही दिन “कांचीपुरम” के लिए यात्रा शुरू हुई।
नोट : रामेश्वरम और दक्षिण भारत की यात्रा तीन भागों में है, इस यात्रा संस्मरण का अगला अंक है : कांचीपुरम और रामेश्वरम दर्शन
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हैं।
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यात्रा वित्तान्त और लेखन शैली बहुत सुन्दर और अच्छी है। धन्यवादः।