मुसलमानों का जो रुख है उससे तो यही लगता है एक दिन भारत ही नहीं बल्कि सभी ग़ैर मुस्लिम मुल्कों में वो आतंकवादी, बर्बर, कट्टरपंथी और हेय हो जाएंगे। लोग मुस्लिम नाम से भी नफरत करने लगेंगे।
वह जहां भी हैं, एक समस्या की तरह हैं और एक समस्या बना भी रहें हैं। वह धर्म कैसे हो सकता जो किसी की हत्या की बात करे? इस्लाम में सुधार नहीं हो सकता है क्योंकि कुरान में जो लिख दिया गया, वह उनके लिए अंतिम है, पैगम्बर मुहम्मद की तरह।
जब अंतिम है तो सुन्नी में हंबनी, शाफई, मलिकी, हनफी, अहमदिया, तबलीगी। हनफ़ी में भारत में देवबंदी और बरेलवी बन गये। सुन्नी कुर्द और यजीदी को मुस्लिम नहीं मानते जैसे – अहमदिया को मुस्लिम नहीं माना जाता। शिया में इस्ना अशअरी, जैदी और इस्माइली। इस्माइली से फातमी, बोहरा,खोजे और नुसैरी हो गये।
अभी खरिजी और इबादी पंथ कोई ध्यान नहीं खींच पाते, शायद उसके पास अपनी बात रखने के लिए आतंकी नहीं हैं।
सबकी कुछ भिन्न मान्यताएँ हैं। अहमदिया मुस्लिमों ने मुहम्मद को अंतिम पैगम्बर नहीं मानकर गुलाम अहमद को माना है। फिर क्या उसकी पूरी कौम को इस्लाम से निकाल दिया गया, यह अलग बात है कि वह अपने को मुस्लिम मानता है। प्रश्न वही है – यदि कुरान एक है और उसमें परिवर्तन संभव नहीं है तो इतने फिरके कैसे बन रहे हैं?
इस्लाम की किताब में समस्या नहीं है तो जिहाद के नाम पर बिन लादेन, बगदादी, हाफिज सईद, अलशबाब कैसे इस्लाम के नाम पर लोगों का कत्ल करते हैं। यहां अच्छे आतंकी और बुरे आतंकी की बात कर अपने को बचाने की कोशिश हो रही है। मुस्लिमों में सूफी को जिस तरह मिटाया गया उस पर उदार मुसलमान चुप रहना बेहतर समझा। सुधार की बात करना मतलब गर्दन कटवाना जो है।
इसके लिए इस्लामी तारीख में जाते हैं तब पता चलता है कि लोगों को मुस्लिम बनाने के लिए मजहब का सहारा लिया गया। मुहम्मद से लेकर लगभग सभी मुस्लिम शासकों का यही चलन रहा है। बिन कासिम, गजनवी, बाबर आज भी मुस्लिम युवाओं के हीरो बने हैं। आतंकवाद को ताकत अंदर से मिलता है, कोई इसके खिलाफ मुंह नहीं खोल सकता।
मुस्लिम हवाला देते हैं कि कयामत के दिन तक कुल 73 फिरके होंगे जिसमें एक फिरके को छोड़ बाकी जहन्नुम की आग में 72 फिरकों को छोड़ दिया जायेगा। मतलब यह माना गया है कि 72 फिरके इस्लाम को मानने वाले नहीं हैं। जब एक ही फिरके को ही जन्नत जाना है तब तुम इतने फिरके क्यों बना रहे हो? एक फिरके में ही रहो जो अल्लाह ने मुहम्मद पर नाज़िल की है।
मुइयांन का लड़का यजीद हुआ जो उबैद के बाद खिलाफत का नेता बना। यह उबैद का रिश्तेदार था। उबैद का कत्ल हुआ था जिसका बदला मुहम्मद के दोनों नातियों को कत्ल करके लिया गया।
फातिमा जो मुहम्मद की लड़की थी, उका निकाह मुहम्मद के चचेरे भाई अली से हुआ था। वह पहला खलीफा बनता इसके पूर्व ही अबू बकर जिसकी लड़की का निकाह मुहम्मद के साथ हुआ था और जो सहाबा का सदस्य भी था, उसने लोगों को साथ लेकर खुद को ही इस्लाम का खलीफा घोषित कर लिया। ईसाई हमले से नये मुस्लिम साम्राज्य को बचाने के लिए अली ने विरोध नहीं किया। युद्ध में अली का कत्ल कर दिया गया।
अब समझिये इस्लाम के आखिरी पैग़बर की बात जिस पर पर कुरान नाज़िल हुई थी, वह बुजुर्ग होने पर भी निकाह पर निकाह कर रहे थे फिर चाहें वो दोस्त की मासूम लड़की हो या दासी की।
खिलाफत लेने का षडयंत्र उनके मरते ही क्यों शुरू हो गया? मुहम्मद को शरण देने वाली व बुजुर्ग बीवी खदीजा के घर को लूट लिया गया, जला दिया गया।
सत्ता के लिए दो फिरके हो गये, शिया – सुन्नी जबकि बटवारे का कारण मजहबी कहा गया। मजहब पर मुलम्मा राजनीति का लगा दिया गया।
असली मुस्लिम होने का वादा सऊदी अरब, ईरान, तुर्की के साथ पाकिस्तान भी करता रहा है। एक देश होने के बाबजूद मज़हब पर पकड़ मजबूत करने की वजह क्या हो सकती है? क्यों मुस्लिम का एक फिरका दूसरे को काफिर कहता है?
मुस्लिम के लिए काफ़िर हिन्दू, ईसाई, यहूदी, सिख, जैन, बौद्ध, शिन्तो, कन्फ्यूशियस ही नहीं हैं बल्कि उसके फिरके को छोड़ उसके सारे फिरके भी काफिर ही हैं।
इस्लाम में “काफ़िर” का मतलब सिर्फ इतना है जो मेरी बात नहीं माने वह “गैर मुस्लिम” मतलब काफ़िर हो गया।
इस्लाम में सबसे बड़ी समस्या तब आयी जब पैगम्बर राजनीति और मजहब को अलग – अलग नहीं कर पाये। खलीफा में मज़हब और राजनीति समाहित है, वह दोनों ताकत का एक साथ उपयोग करना चाहता है।
इसका एक मुख्य कारण मुस्लिम मजहब में दर्शनशास्त्र का विकास नहीं होना जैसा कि अन्य धर्मों में है। इससे वाद – विवाद – संवाद की परंपरा का जन्म ही नहीं हो पाया। निश्चित ही मुहम्मद या अली को कुछ और समय मिल पाता तो यह इस पर जरूर काम करते।
मुस्लिमों का हर फिरका अपने को श्रेष्ठ समझकर दूसरे से निम्न व्यवहार करता है। उसका मानना है कि अल्लाह का आदेश है – काफिर को मारकर जन्नत में प्रवेश करो। सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि 1400 साल पहले जैसा इंसान था 1400 साल बाद भी वैसा ही इंसान होगा, उसको वैसे ही भूख लगेगी।
हालांकि इस्लाम में ऐसे बहुत से ग़ैर मुस्लिम बंदोबस्त भी हैं जो इस्लाम में स्वीकार नहीं होने चाहिए हैं, जैसे – चित्र, चलचित्र, संगीत, वाद्ययंत्र, शराब आदि, इन्हें कुफ्र घोषित किया गया है फिर भी मुस्लिम इसका प्रयोग कर रहा है।
कितना अच्छा हो यदि कुछ आयतों में या इस्लाम की मान्यताओं में जो आज के समय के अनुकूल नहीं है, को परिवर्तित करने की सहमति बने। जब एक ही फिरका जन्नत जायेगा तब तुम इतने फिरके कैसे बना रहे हो? यह भी गैर इस्लामी आर्थत कुफ्र ही है।
जिस जमीन पर रहते हो, जो तुम्हारा भरण पोषण करती है, वही तुम्हारी मादरे वतन है। उससे गद्दारी करके तुम्हें जहन्नुम में जगह अता न होगी। फिर भी तुम गद्दारी कर रहे हो। मार, काट, बम विस्फोट करके तुम्हें 50 सालों में क्या मिला? गैर मुस्लिमों की नज़र में तुम जाहिल और चरमपंथी बन गये हो। तुम्हें देख उन्हें घिन आती है। तुम्हारें लुंगी, छोटे पैजामें, बकरे वाली दाढ़ी और बुर्के पर लानत भेजते हैं।
मार काट ही एक विकल्प था तो मोहम्मद ने मक्का से मदीना की हिजरत क्यों की? अगर तुम अब भी नहीं समझे तो तुम्हारा दीन तुम्हें लानत भेजता है।
इस्लाम का नेता बनने के लिए सऊदी अरब, ईरान, तुर्की से लेकर पाकिस्तान भी अरमान पाले है। मुसलमान किसी काफिर को ललचाई नजर से देखता है कि कैसे भी करके इसको अल्लाह के पनाह में लायें। पहले वालों को मुल्ला साहब जाने। इस्लाम की संख्या बढ़ाने पर जोर है लेकिन उनके जीवन की बेहतरी का नहीं, उन्हें मौलाना, मुफ़्ती के हवाले करके निश्चिन्त हो जातें हैं, उनके कहे को मानो नहीं तो इस्लाम कि राह में शहीद।
मजहब किसी को परेशान करने के लिए नहीं होता है बल्कि आत्मिक सुख के लिए होता है। तुम्हारा सुख कैसे लोगों का खून बहाना हो सकता है? तुम सीरिया, ईरान, ईरान, मिश्र, लीबिया, सूडान और नाइजीरिया में किससे लड़ रहे हो? छोटी बच्चियों के अपहरण, बलात्कार कर रहे हो? अब तो लगता है कि बस तुम्हारा जिहाद यही है। सच्चा कौन? झूठा कौन? वह सिर्फ पांच समय की नमाज और दाढ़ी रहने से नहीं आयेगा।
तुमने इस्लाम के लिए भारत का बटवारा करा के पाकिस्तान बनवाया। यकीन से कहो नया इस्लामिक मुमालिक तुम्हें कितना सुकून देता है? यह बात अल्लाह को जेहन में लाकर एक मासूम की तरह कहना।
इंसानियत शर्मशार है इस्लाम पर जो इंसान नहीं बन पाया, वह मुसलमान कैसे बन पायेगा? मजहब की तरक्की लोगों की तादाद से है या अच्छे लोगों के एहतराम से? यदि तुम्हारा ईमान मुकम्मल है, थोड़ी भी इन्सानित है तो बताओ क्या इसी मुसलमान की बात हुई थी जो आज है?
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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मुझसे जुड़ने के लिए :
भाई साब आप ने जो मालूमात दी बहोत अच्छी भी है और ठीक भी है.
लेकिन ए सिर्फ इस्लाम का मसला नहीं सारे धर्मों का है.
जरा सनातन धर्म क़े बारे मे भी जानकारी हासिल करें तो ठीक है.