सिक्किम की गलवान घाटी में चीन द्वारा भारत के सड़क निर्माण पर सेना खड़ी करना फिर बात से विवाद सुलझाने का असफल प्रयास करना, रही सही कसर भारत को तरह – तरह की सलाह देना जैसे चीन अमेरिका के ट्रेडवार/कोल्डवार में भारत हिस्सा न बने, एकपक्ष अमेरिका का समर्थन न करे नहीं तो आर्थिक और व्यापारिक स्तर पर भारत को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
भारत अपनी विदेश और व्यापार नीति चीन से पूछ कर तो तय नहीं करेगा। भारत उसी नीति का अनुसरण करेगा जो भारत के हित में हो। कोरोना वायरस के संक्रमण में चीन की चोरी पकड़ी गयी। उसे अमेरिका के साथ ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों की आलोचना को झेलना पड़ रहा है साथ ही उसे यह भी लगता है कि यदि भारत भी उसके विरोध में चला गया तो विश्व समुदाय में उसकी विश्वसनीयता खत्म हो जायेगी।
चीन को भारत से एक साथ कई भय दिखाई पड़ रहे हैं जैसे WHO का अध्यक्ष भारत है यदि covid-19 के मामले में निष्पक्ष जांच होती है तो चीन का फसना तय है। वहीं दूसरी ओर भारत द्वारा पाकिस्तान से POK खाली करने को कहना जिसका अर्थ यह निकला कि चीन का मेगा प्रोजेक्ट one बेल्ट one रोड जिसे प्राचीन रेशम मार्ग कहते हैं जो POK होकर ही पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट तक जा रहा है, वह परियोजना भी खटाई में पड़ेगी। सबसे बड़ी बात POK पर भारत का अधिकार होने पर कश्मीर का जो भू – भाग पाकिस्तान ने चीन को दिया है वह उसे लौटना पड़ेगा।
कोरोना के बीच ही अमेरिका और यूरोप की 600 कंपनियों ने भारत आने के लिए भारत सरकार से सम्पर्क साधा है जो चीन के आर्थिक भविष्य के बहुत बुरा है। चीन भारत पर व्यापारिक धौंस दिखाना चाहता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यही चीन 20 अक्टूबर 1962 को हिंदी – चीनी भाई – भाई की भावना के बीच पीठ में छुरा घोंपा था।
भारत को चाहिए कि चीन जिस भाषा में समझे उसे उसी भाषा में समझाया जाय। चीन पर भारत की औद्योगिक निर्भरता में तो अब समय आ गया है कि भारत आत्मनिर्भर बने। यह चीन को आँखे ततेरते देखने से बेहतर है। पूर्व में भी हम कठिन परिस्थितियों में खाद्यान और दूध में आत्मनिर्भर बने हैं।
विश्व समुदाय में भारत के बढ़ते कदम से चीन का चिंतित होना लाज़मी है। कोई भी मुल्क अपने पड़ोस में शक्तिशाली राष्ट्र नहीं चाहता है। चीन सीमा विवाद पैदा करके भारत पर दबाब बनाने की कोशिश में है।
गलवान घाटी में सफलता न मिलने से चीन के जनरल POK के आतंकी शिविर में देखे जा रहे हैं अब उसकी नीतियों में प्रायोजित आतंकवाद जो पिछले साल से ही शामिल है, जिसमें आतंकवादियों को जरूरी इमदाद के साथ एक बड़ी रकम पेश की गयी है, बौखलाहट में भारत के खिलाफ चीन सभी काम करने को तैयार है।
विशेषज्ञों की राय है कि भारत को सीधे चीन से बैर नहीं मोल लेना चाहिए, युद्ध विकल्प नहीं है। आंतरिक स्तर पर घिरे चीन ताइवान, हांगकांग को सेना के बूटो तले रौंदना, जिस तरह उसने तिब्बत और शिनजियांग की आवाज दबा रखी है वही कोशिश सुरक्षा कानून के नाम पर हांगकांग में कर रहा है। भारत को अपने पत्ते बहुत सतर्कतापूर्वक खोलने हैं।
चीन की पड़ोसियों को दबा कर रखने की नीतियां स्पष्ट हैं। दक्षिण चीन सागर में फिलीपींस,
जापान, कोरिया, इंडोनेशिया आदि से विवादों को हवा देकर वह दक्षिणी चीन सागर पर अपना प्रभुत्व चाहता है। व्यापारिक हित को देखते हुए उसकी दबी मंशा हिन्द महासागर पर प्रभुत्व की है लेकिन हिन्द महासागर में उसे अमेरिका और भारत की चुनौती है।
भारत के चीन के साथ सांस्कृतिक रिश्ते प्राचीन समय से रहे है लेकिन भूसामरिक रिश्ते भारत से कभी अच्छे नहीं रहे। चीन की ललचाई दृष्टि धार्मिक एकता के बाद भी चीन को भारत से अलग कर देती है।
एकबात तो स्पष्ट है कि चीन भारत से अपनी स्थिति 1962 के युद्ध के कारण मजबूत समझता है। मौजूदा हालत से यह लगता है कि चीन बिना युद्ध किये नहीं मानने वाला है। चीन भारत की सीमाओं पर दादागिरी करने के साथ – साथ अपने धन की बदौलत पड़ोसी देशों श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, मालदीव आदि को भी शह दे रहा है।
चीन भारत को 1962 वाला ही मानने की भूल बार – बार कर रहा है। भारत चीन युद्ध होता है तो इसकी चिंगारी को विश्वयुद्ध बनने में देर न लगेगी। क्योकि युद्ध की आड़ में बहुत से देशों के एक – दूसरे से हिसाब करना बाकी है।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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