धर्म और विज्ञान

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भारतीय संस्कृति के इतिहास का विवादों से बड़ा ही पुराना नाता रहा है, भले ही उस इतिहास का विषय भूगोल, गणित, विज्ञान या कुछ भी हो।

शून्य की खोज :

शून्य का अविष्कार 5वीं सदी में आर्यभट्ट ने किया, यह सभी जानते हैं, विश्व भी इसे मानता है। भारतीय भी इतने पर ही खुश हो लेते हैं कि कम से कम विश्व इसे भारत की उपलब्धि तो मानता है। ‘संख्यास्थाननिरूपणम्’ में आर्यभट्ट ने लिखा:

एकं च दश च शतं च सहस्रं तु अयुतनियुते तथा प्रयुतम्।
कोट्यर्बुदं च वृन्दं स्थानात्स्थानं दशगुणं स्यात् ॥

दबी जुबान में लोगों ने कहा कि अगर 5वीं सदी में शून्य का अविष्कार हुआ तो हजारों वर्ष पूर्व रावण के दस सिर कैसे हुए? लेकिन बड़े वर्ग ने यही सोच कर कि विश्व ने इसे मान लिया है, इसको छोड़ दिया।

लेकिन यह तो एक कड़ी थी, अगर विश्व इसे और प्राचीन मानता तो मुख्य बात कि सनातन धर्म कितना प्राचीन है यह बात सामने आ जाती।

यजुर्वेद 17/2 की ऋचा कहती है:

इमा मे अग्नऽ इष्टका धेनवः सन्त्वेका च दश च दश च शतं च शतं च सहस्रं च सहस्रं चायुतं चायुतं च नियुतं च नियुतं च प्रयुतं चार्बुदं च न्यर्बुदम् समुद्रश् च मध्यं चान्तश् च परार्धश् चैता मे अग्नऽ इष्टका धेनवः सन्त्व् अमुत्रामुष्मिंल् लोके।।

अब यहाँ बड़ा प्रश्न उठता है कि यजुर्वेद अधिक प्राचीन है कि ‘आर्यभट्ट’? आप कहेंगे कि इससे क्या फर्क पड़ता है? जब विश्व ने यह मान लिया है कि शून्य भारत कि खोज है।

लेकिन साहब! एक ‘शून्य’ की आपने क्या कीमत चुकाई? यह सोचिये।

पहले तो वो कहते हैं कि:

The Vedas are a collection of hymns and other ancient religious texts written in India between about 1500 and 1000 BCE. –  Ancient History Encyclopedia

लेकिन जाहिर तौर पर अब इस पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिया गया क्योंकि तब तो इसका श्रेय ईश्वर को देना पड़ता जिन्होंने श्रुतियों के माध्यम से ‘ब्रह्मा’ को वेदों का बोध कराया या कम से कम यजुर्वेद अध्याय 17 के ऋषि ‘विश्वकर्मा भौवन’ को तो देना पड़ता जिन्होंने यह ऋचा ‘निचृत आर्षी त्रिष्टुप’ छंद में संकलित की।

वेदों का काल:

लगे हाथ इस पर भी एक बार विचार कर लें कि वेदों के रचना का काल क्या है?

सनातन धर्म के शास्त्रीय मान्यता के अनुसार ईश्वर ने सृष्टि की उत्पत्ति के बाद मनुष्यों की रचना की, बुद्धि और विवेक की क्षमता प्रदान की, सोचने और समझने की शक्ति प्रदान की। फिर इसे सही प्रकार से समझने और इसका लाभ को लेने के लिए के लिए वेदों की रचना की।

इसका अर्थ यह हुआ कि मानवोत्पत्ति के साथ ही वेद आये। महर्षि दयानन्द के अनुसार आज (2019 के वर्ष से) वेद रचना का 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हजार 120वाँ वर्ष चल रहा है।

लेकिन बात है अभिलेखीय प्रमाण की, भारत में सुनियोजित तरीके से इतिहास से छेड़ – छाड़ की गई। वास्तविक जानकारियों को भ्रष्ट करने के उद्धेश्य से एक योजना चलाई गई जिसमें तरह – तरह के दावे, पहले तो विरोधियों द्वारा किये गए फिर लोगों ने बिना किसी जानकारी के उसे फैलाना शुरू कर दिया लेकिन उस एक फर्जी दावे ने पूरे आधार को हिला कर रख दिया। आप इसे “NASA द्वारा कंप्यूटर प्रणाली में संस्कृत भाषा के होते प्रयोग” वाली खबर से समझ सकते हैं। भविष्य पुराण की तो मान्यता ही शून्य हो गई।

चमनलाल की लिखी किताब “India mother of us all” के अनुसार 1932 में चीन की दीवार से मिले चीनी भाषा की पांडुलिपियों, जिन्हें Sir Augustus Fritz ने ब्रिटिश म्यूजियम में रखवा दिया था, बाद में Prof. Anthony Graeme ने उनका अनुवाद कराया तो उनके हस्तलेखों में से एक में लिखा मिला ‍कि मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है, जो वैदिक संस्कृत में लिखा है, उसके अनुसार आज से 12236 वर्ष पूर्व मनुस्मृति उपलब्ध थी, उनमें मनु स्मृति के श्लोकों की संख्या 680 बताई गई थी जो कि आज 2400 के आस-पास है, जाहिर है भ्रष्ट करने के उद्देश्य से बाद में जोड़े गए हैं।

मनुस्मृति वेदों के आधार पर ही लिखी गई है जिससे इतना तो स्पष्ट है कि वेद, कम से कम 12236 वर्षो से भी पूर्व के हैं। यह तो वो प्रमाण हैं जो आज कल दिखाए जा रहे हैं जबकि वास्तविकता विश्व को भी पता है। वेदों और शास्त्रों का वह भाग जो भारत से लुप्त हो चुका है या नष्ट किया जा चुका है, वह विश्व के अलग – अलग देशों में आज भी मौजूद है, जिसके आधार पर नए – नए शोध हो रहे हैं। निश्चित तौर पर वह ये तो नहीं बताएँगे कि उन शोधों का आधार भारतीय ग्रन्थ हैं।

कुल मिला कर देखा जाय तो वो अपने इस प्रयास में करीब – करीब सफल तो हुए हैं जो उन्होंने सनातन धर्म के जनक वेदों को ही सनातनियों से दूर कर दिया।

वैदिक विज्ञान :

भारतीय गो – मूत्र के कैंसर रोधी होने के गुण का भी यही हाल है। आपको ऑनलाइन ऐसे तमाम शोध पत्र मिल जायेंगे जो गोमूत्र के कैंसर रोधक गुण के बारे में बताएँगे। लेकिन बात हल्दी तक थी तब तक तो ठीक थी लेकिन गाय पर आने के साथ ही सांप्रदायिक हो गई। भारत में धर्मनिरपेक्षता ही सबसे बड़ा विषय है। जगद्गुरु  शंकराचार्य विरचित वैदिक गणित का प्रयोग विश्व के देश अपने शोधों में करते है लेकिन भारत में वह गणित भी सांप्रदायिक बता कर किनारे कर दिया गया है।

गो – मूत्र के कैंसर रोधी गुण के बारे में समझते हैं, वास्तव में शोध यह प्रमाणित करते हैं कि गोमूत्र कैंसर पर प्रभावी है, लेकिन अगर बात करें कैंसर समाप्त करने की तो इसके लिए इस पर अभी और शोध होने की आवश्यकता है। लोग कुछ ग्रंथों में ऐसा लिखा बता कर ग्रंथों कि प्रमाणिकता पर भी प्रश्न उठाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि ग्रन्थ के लिखे जाने के समय और आज के वातावरण में काफी बदलाव आ चूका है। आज अगर भारत के भूगर्भीय जल के ताज़ा रिपोर्ट को देखें तो यह जानकारी मिलती है कि जाने – अनजाने समाज का हर व्यक्ति पानी के माध्यम से एंटीबायोटिक्स का सेवन कर रहा है, जो बेकार हो चुकी दवाओं के गलत तरीके से निस्तारण से उपजी समस्या है। इसके अलावा आज कल चिकित्सकों द्वारा दी जा रही जरुरत से अधिक की दवा भी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में छेड़ – छाड़ करती है जिससे एक सामान्य बुखार के लिए भी दवाओं की जरुरत से अधिक की डोज देने की आवश्यकता बनती जा रही है।

वातावरण में बदलाव, जड़ी – बूटियों, वनस्पतियों आदि सभी प्रकार के कृषि में बढते मानवीय हस्तक्षेप, पौधों के संकरण (क्रास पालीनेशन) से उनके जीन के डीएनए में स्थाई परिवर्तन कर उनमें उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) को बढ़ावा दे रहे हैं जिनसे उनके गुण – दोष – प्रकृति में बदलाव आने शुरू हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में आयुर्वेदिक और प्राकृतिक दवाइयां कम असरकारक या बेअसर साबित हो रही हैं।

यही वह कारण है जिससे गोमूत्र और इस तरह की दवाओं पर और शोध कर यह पता लगाना आवश्यक है कि इनके किस रूप से हम आज के समय में अधिक फायदा उठा सकते हैं।

सनातन धर्म का विज्ञान इतना विकसित रहा है कि आज तक भी आधुनिक विज्ञान केवल उनके किसी सूत्र को सुलझा ले, इतने तक का ही खोज कर पाया है। यह भी तय है कि विश्व के सभी धर्म, धर्म – गुरु और विज्ञान अगर विकास के मार्ग पर बढ़ेंगे तो वह मार्ग सनातन धर्म का मार्ग ही होगा, भले ही वह इसे माने या न माने।

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GEET GOVIND SAHU
GEET GOVIND SAHU
4 years ago

आपके लेख पूर्णतया तथ्यपूर्ण एवं तर्क संगत हैं किन्तु कुछ मूर्ख यह समझना ही नहीं चाहते और पता नहीं कहाँ कहाँ से ढूंढ कर ऐसे दृष्टांत लाते हैं के पढ़ सुनकर किसी भी राष्ट्रवादी का खून खौल जाए।क्या इस सम्बंध में कोई लेख या विचार है?कि इतनी घृणित बातें आ कहाँ से रही हैं और इनका उपचार क्या है?भीतर ही भीतर राम कृष्णा दुर्गा शिव वेदों पर ऐसा घृणित प्रहार किया जा रहा है की… Read more »

Usha
Usha
4 years ago

Dharm aur vigyan ki bahut achhi va gyanvardhk jankari di.

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