एक बार किसी गांव में एक सन्त आये और झोपड़ी बना कर रहने लगे। लोगों से उनका बहुत मतलब नहीं रहता था, सन्त को प्रपंच से क्या मतलब? अतः वे अपनी साधना में ही रमे रहते थे।
गांव वालों ने जब सन्त को देखा तो वे पूरे गांव में कौतूहल का विषय बन गये। लोग कहने लगे कि बहुत पहुँचे हुए महात्मा हैं, किसी से कोई मतलब नहीं रखते। अपनी धुन में ही मस्त हैं। गांवों वालों ने सन्त का खूब आदर सत्कार किया। सन्त बिल्कुल शांत रहे, गांव वालों के आदर सत्कार का उनके ऊपर कोई प्रभाव न हुआ।
सन्त की झोपड़ी पर दिन भर भीड़ रहती, आरती करने वालों की संख्या भी बहुत बढ़ गयी, संत की खूब वाहवाही होती। सन्त उस गांव में लगभग छ: माह तक रहे फिर अन्यत्र यात्रा पर निकल गये। पीछे उनकी झोपड़ी वहीं वैसे ही रह गयी।
इसी बीच गांव में एक कुँवारी कन्या को बच्चा हो गया। जब लोगों ने पूछा कि बच्चा किसका है? तब लड़की ने उसी सन्त का बता दिया। गांव वाले संत के ऊपर बहुत क्रोधित हुये, उनके झोपड़े को जला दिया।
कुछ समय बीतने के बाद सन्त उसी स्थान पर आकर, फिर झोपड़े को ठीक कर अपनी साधना करने लगे। जब गांव वालों को इस बात की जानकारी हुई तब सब उन्हें मारने के लिए लाठी-ठंडे लेकर उनकी कुटिया पर पहुँचे। सब कहने लगे ‘इस पाखंडी को मारो।’ इतने में गांव के एक वृद्ध व्यक्ति ने कहा ‘मारने से समस्या का हल नहीं होगा।’
समस्या यह छोटा बच्चा है, बच्चे को इस पापी, पाखंडी को सौंप दो, इसका यही पालन-पोषण करे तब इसे अपने किये पाप का एहसास होगा।
सन्त अभी भी मौन थे। गांव वाले बच्चे को कुटिया पर छोड़कर चले गये। सन्त बच्चे के रोने की आवाज सुनकर उठे और बच्चें को लेकर गांव की तरफ चल दिये। वह घर-घर बच्चे के लिए दूध मांग रहे थे पर किसी ने भी उन्हें दूध तो नहीं दिया अलबत्ता गाली देता रहा व कहता रहा ‘राम-राम पापी पाप लेकर द्वार पर आ गया है’ उन्हें देखते ही लोग किवाड़ बन्द कर ले रहे थे।
सन्त उस बच्चे को लेकर घूमते-घूमते उस घर पहुँचे जिस घर का वह बच्चा था। सन्त ने कहा – माँ मेरे बच्चे को थोड़ा दूध दे दीजिये, भूखा है, रो रहा है। जिस कन्या का बच्चा था बच्चे का रुदन सुन कर उसका मातृत्व जागृत हो उठा। उसने बच्चे को गोदी में उठा लिया, सन्त के पैरों में गिर कर क्षमा मांगने लगी। बाबा मैंने अपने प्रेमी की जान बचाने के लिए आप का नाम ले लिया था। मुझे क्या पता था कि आप फिर आ जाएंगे।
गांव वाले जब बच्चे की असलित जाने फिर क्या, सब लोग मिल कर गाजे-बाजे के साथ बाबा की झोपड़ी पर क्षमा मांगने और उनका आदर करने पहुँचे। सन्त अब भी मौन थे। फिर गांव वालों का पूजन कीर्तन शुरू हो गया।
गांव के एक वृद्ध ने सन्त से कहा – बाबा आप अब भी मौन हैं, कुछ कहिये।
बाबा बोले – बच्चा, यह लोगों का भाव में है। इनका भाव किया सम्मान तो कर लिया और भाव बदला तो अपमान। इन पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। मेरा ध्येय अलग है यदि प्रपंच, मान, अपमान, सम्मान की इच्छा ही होती तो सन्त क्यों बनते?
लोग अपनी तरह के हैं, उनको अपना कुछ हित दिखा तो जयकारा लगाने लगते है। थोड़ा नुकसान नहीं हुआ कि गाली, मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। क्योंकि वे भावना में हैं इसलिए समझ नहीं रहे हैं कि आखिर वह क्या कर रहे हैं और उनका आचरण किस प्रकार का है।
हे मनुष्य! ईश्वर ने आप को विवेक दिया है, उसका प्रयोग करिये। भावना में किसी को अच्छा या बुरा न बनाइये। गुरु सदा जानकर ही बनाइये, स्वार्थ की पतंग न उड़ाइए।
नोट: प्रस्तुत लेख, लेखक के निजी विचार हैं, यह आवश्यक नहीं कि संभाषण टीम इससे सहमत हो।
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