मुस्लिम मज़हब एक जिहादी सोच पर आधारित है, जिसमें ईश निंदा के तहत लोगों का कत्ल किया जाता है। मुस्लिमों में यह पैटर्न लगभग पूरे विश्व में है, वह भी जुम्मे के दिन। यह विचारणीय है कि क्या वास्तव में इस्लाम मनुष्यता की तालीम देता है? यदि देता तो ऐसे नरपिशाच अल्लाह के नाम पर, रसूल के नाम पर लोगों का कत्ल न करते।
यदि इस्लाम मजहब है तो इसमें कट्टरपंथ कैसे आया? पुरखे जिसका बीज डाले हैं, वही तो निकलेगा।
कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की सामूहिक हत्या करने वाले, आतंकवादी संगठन हिजबुल के प्रमुख सैयद सलाउद्दीन के परिवार वाले हो, बिट्टा की बीबी को सरकारी नौकरी से आज ही बर्खास्त किया गया है। इकोसिस्टम को समझिये, आतंकवाद को पूरा कश्मीरी सरकारी तंत्र और सेकुलर पार्टियों का पूरा समर्थन रहा है। मुस्लिम जमात में मुस्लिम जिहादी आतंकवादी को हीरो की तरह सम्मान है।
ऐसी व्यवस्था के बाद कोई जिहादी रुश्दी, तस्लीमा, अबुल कलाम की हत्या क्यों नहीं करेगा? मामले को समझिये, ‘द सेटेनिक वर्सेज’ (The Satanic Verses) पुस्तक की दो वेश्याओं के नाम इत्तेफ़ाक़ से मुहम्मद की दो बीबियों के नाम पर है। बस फिर क्या 1989 में इस पुस्तक पर सबसे पहले प्रतिबंध राजीव गांधी की सरकार ने लगाया। देखते-देखते पूरे इस्लामिक देशों में प्रतिबंधन होने लगा।
मुंबई और कश्मीर में इस पुस्तक पर दंगे हुए जिसमें 20 लोग पुलिस से झड़प में मारे गये और सैकड़ों घायल हुए। पाकिस्तान, लंदन और न्यूयार्क में भी विरोध प्रदर्शन हुए। ईरान के मुख्य नेता अयतुल्लाह खुमैनी ने रुश्दी को मारने के लिए दो बार फ़तवा जारी किया जिसका समर्थन दिल्ली के जामा मस्जिद के प्रमुख बुखारी ने भी किया।
सलमान रुश्दी विश्व के उन मशहूर लेखकों में से हैं जिन्हें बुकर पुरस्कार के साथ बुकर का बुकर पुरस्कार भी मिला है। वह विश्व के एक अद्भुत राइटर हैं जिनकी कलम कुछ बहुत अलग लिखती है। उनकी इसी कला का कायल पूरा पश्चिमी जगत है। समस्या हम दो हमारे दस वालों की है। इसीलिए रुश्दी लिखते हैं कि इस्लाम में बहन का कॉन्सेप्ट ही नहीं है क्योंकि माँ का पेट खाली नहीं रहता, बच्चे न जाने कैसे जवान हो जाते हैं और इनके पास रहने के घर कम पड़ जाते हैं, एक ही कमरे में कई भाई-बहन के साथ सोने से बहुत दिनों तक भाई-बहन का रिश्ता नहीं बच पाता। समझाने वाली अम्मा तो लगातार पेट से है।
1989 में द सेनेटिक वर्सेज के जापानी अनुवादक इगाराशी की हत्या कर दी गयी। इतावली अनुवादक इत्तोरी कैपरियो बोलो के फ्लैट पर हमला किया गया। यूरोपीय देशों ने सलमान रश्दी की बौद्धिकता को संरक्षण दिया। ईरान से लगभग सभी यूरोपीय देशों ने अपने राजनयिक वापस बुला लिए थे। गौरतलब है विरोध, दंगे और प्रतिबंध की शुरुआत भारत से हुई थी। ताज्जुब की बात यह है कि रुश्दी पर हुए हमले पर भारत और भारतीय नेताओं की अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
अभी कुछ दिनों पूर्व ही उदयपुर, अमरावती और कर्नाटक में नवी पर गुस्ताख़ी में जुम्मे के दिन सिर काटे गये हैं। आतंकवाद का इस्लाम से नाता नहीं है तो चार्ली हेब्दो, जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी और अब अमेरिका में सलमान रुश्दी के साथ यह कायराना हरकत नहीं होती।
एक के बाद एक कई नाम जुड़ते चले जा रहे हैं जिनका कत्ल कुरानी पैटर्न पर जिहादी कर रहे हैं। भारत, चीन, अमेरिका, यूरोपीय आदि देशों ने अब भी इन इस्लामिक जिहादियों के खिलाफ बड़ी कार्यवाही नहीं की तो निश्चित ही इसमें नया नाम बांग्लादेश से निर्वासित और भारत में रह रही तस्लीमा नसरीन का जुड़ सकता है।
स्पष्ट है कि जिस मज़हब में इंसान का कत्ल, उसके पैंगबर के नाम पर किया जा रहा है, वह कबीला, गिरोह, संगठन, दस्ता या टीम हो सकता है मज़हब नहीं! पूरे विश्व को एकजुट होकर इस्लाम का बॉयकाट करना चाहिए वरना ये जाहिल, नरपिशाच, आदमखोर बकरे की तरह जिबह करके मानवता को खा जायेगा।